‘चाणक्य’ ने कहा था- ‘ शिक्षक कभी साधारण नहीं होता । प्रलय व उत्पत्ति दोनों उसकी गोद में पलते हैं ।’ और ये बात आज भी उतनी ही सच है । ये शिक्षा ही है जो सही दिशा में मिले तो मनुष्य को देवता बना देती है और गलत दिशा में मिले तो ... आप समझ ही गए होंगे ।
लेकिन एक साथ कई सारे सवाल दिमाग में कौंधते हैं- क्या वाकई हमारे पास आज विश्व स्तरीय शिक्षक और शिक्षण संस्थान हैं ? क्या बच्चों के हिसाब से हमारे पास पर्याप्त व योग्य शिक्षक हैं ? बात सिर्फ संख्या की ही नहीं, शिक्षा की गुणवत्ता की भी है । और इन सबसे भी ऊपर, एक शिक्षक कैसा होना चाहिए और क्या हमारे पास उस मानक पर खरे उतरने वाले शिक्षक हैं ?
आईये पहले भारत के स्वर्णिम काल में चलते हैं । वैदिक काल में शिक्षा पूर्णतः निशुल्क थी और पूरी तरह से दान से मिले धन से चलती थी । राजा हो या साधारण प्रजा , सबके बच्चे एक ही वातावरण में रहकर साथ पढ़ते थे । राज परिवार हो या सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुए अन्य प्रभुत्वशाली लोग, सबके लिए एक ही गुरूकुल थे । शिक्षा के स्तर पर कोई भेद न था ।
आज की शिक्षा विभेदकारी है
आज की शिक्षा व्यवस्था की सारी समस्याओं की जड़ भी यही है कि आज की शिक्षा विभेदकारी है । जहाँ पैसे वालों के लिए पाँच सितारा सुविधा वाले कॉन्वेन्ट और पब्लिक स्कूल हैं , वहीं मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए सरकारी व पब्लिक स्कूल के नाम पर धन बटोरने वाले नाम भर के पब्लिक स्कूल । बाकी गाँव- देहात के स्कूलों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है । यही हाल शिक्षकों के स्तर पर भी है । वैदिक काल तो छोड़िए , नालन्दा विश्वविद्यालय में प्रवेश विश्वविद्यालय के द्वारपाल द्वारा लिए साक्षात्कार के आधार पर ही किया जाता था।
आज भी ऐसे टीचर हैं जो अपनी पूर्ण क्षमता से बच्चों को पूरे मनोयोग से पढ़ाने में लगे हैं
अब इसी से कल्पना कीजिए, कि अपने समय के विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय में जब प्रवेश द्वारपाल द्वारा लिए साक्षात्कार से लिया जाता हो, उसके शिक्षक कितने विद्वान रहे होंगे, इसकी कल्पना भी मुश्किल है । आज जहाँ पाँच सितारा पब्लिक स्कूलों व टॉप कोचिंग में बेहतरीन शिक्षक हैं, वहीं गाँव- देहातों के शिक्षकों के वीडियो वास्तविकता बयाँ करते समय- समय पर वायरल होते रहते हैं, इसलिए उसके विषय में लिखना निरर्थक है । यद्यपि आज भी बहुत से ऐसे भी शिक्षक हैं, जो सुविधा – असुविधाओं से प्रभावित हुए बिना मौन साधक की भाँति अपनी पूर्ण क्षमता से बच्चों को पूरे मनोयोग से पढ़ाने में लगे हैं । आश्यकता है वो जज्बा प्रत्येक शिक्षक में लाने की ।
'संस्कार अब हमारी शिक्षा व्यवस्था में कहीं हैं ही नहीं'
इसके अलावा जो बात उल्लेखनीय है वो ये कि शिक्षक व शिक्षण का स्तर जो हो, लेकिन किसी भी स्तर पर अब संस्कारों की ओर कोई ध्यान नहीं । सच तो ये है कि संस्कार अब हमारी शिक्षा व्यवस्था में कहीं हैं ही नहीं । हाँ, विद्या भारती के विद्यालयों में अब भी संस्कारों पर जोर देने की परम्परा है, लेकिन विद्या भारती के विद्यालय बहुत न्यून है और उनका प्रभाव हिन्दी बेल्ट में ही अधिक है । इण्टरमीडिएट स्तर पर भले ही विद्या भारती के विद्यालय संस्कारों का बीजारोपण कर लें, लेकिन विश्वविद्यालय स्तर पर क्या ?
'अखिल भारतीय शिक्षा सेवा की स्थापना की जाए'
विश्वविद्यालय स्तर पर तो संस्कारों का रोपण, पल्लवन कहीं है ही नहीं । जबकि संस्कारविहीन शिक्षा मनुष्य को बिना पूँछ का पशु बनाने के समान है । इसलिए अब ऐसे शिक्षक तैयार करने की आवश्यकता है जो अपने विषय के ज्ञाता तो हों ही , इसके साथ- साथ नैतिक शिक्षा व सुसंस्कारों से ओत- प्रोत भी हों । जिस तरह से सिविल सेवा में जाने के लिए मुख्य परीक्षा में नैतिकता व सत्यनिष्ठा का प्रश्नपत्र लगाया गया है, उसी तरह से जो भी शिक्षक सरकारी सेवा में आएँ , उनके लिए नैतिकता व संस्कारों पर आधारित पेपर की व्यवस्था की जाए । आवश्यकता है कि विश्वविद्यालय स्तर पर अखिल भारतीय सिविल सेवा की तर्ज पर अखिल भारतीय शिक्षा सेवा की स्थापना की जाए, और अपने विषय के विशेष ज्ञान के साथ- साथ सिविल सेवा की तरह सामान्य ज्ञान व नैतिकता का प्रश्नपत्र अनिवार्य़ करके विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर स्तर पर भर्ती की व्यवस्था की जाए ।
...तो बेहतरीन शिक्षक भी हमें मिल पाएँगे
एक सुझाव यह भी अमल में लाया जा सकता है, कि जो अभ्यर्थी सिविल लेवा परीक्षा में साक्षात्कार तक पहुँचें, उनको चयनित विषय में शिक्षक बनने का सीधा मौका दिया जाए, ताकि किसी कारण से जो अन्तिम रूप से सिविल सेवा में चयनित ना हो पायें हों, उनको शिक्षक के रूप में देश की सेवा का मौका मिले, इससे उनके अन्दर निराशा भी नहीं आएगी और इसके साथ- साथ बेहतरीन शिक्षक भी हमें मिल पाएँगे । राज्य सिविल सेवा में पी.सी.एस. परीक्षा में अन्तिम रूप से चयनित ना होने वाले अभ्यर्थियों को भी राज्य सरकारें सीधे शिक्षक बनाकर उन ज्ञानवान अभ्यर्थियों को सेवा का मौका दे सकती हैं । इससे ना केवल बेहतरीन शिक्षक मिल पाएँगें, बल्कि युवाओं में और अधिक परिश्रम करने का जज्बा भी जागेगा ।
अन्त में एक प्रश्न जो अधूरा रह गया कि शिक्षक कैसा होना चाहिए, के लिए इन पंक्तियों को उद्धृत करना चाहूँगा-
“एक सामान्य शिक्षक पढ़ाता है,
एक औसत शिक्षक समझाता है,
एक अच्छा शिक्षक प्रयोग करके दिखाता है,
लेकिन एक बेहतरीन शिक्षक वो हो जो,
प्रेरित करता है ।”
हाँ, एक बेहतरीन शिक्षक वो है जो ना केवल बच्चे के अन्दर छिपी प्रतिभा को पहचानता है , बल्कि पहचानने के साथ- साथ उसे पुष्पित- पल्लवित करता है, और उसे इतना अधिक प्रेरित कर देता है कि संघर्षों की आँधियाँ भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाती । सुसंस्कारों की मजबूत बुनियाद पर टिके ज्ञान से भरे ऊर्जावान व अपने आचरण से प्रेरणा भर देने वाले शिक्षक ही किसी देश की अमूल्य थाती होते हैं, और अब इस देश को ऐसे ही शिक्षकों की घोर आवश्यकता है , तभी भारत को फिर से विश्वगुरू बनाने का सपना पूरा हो पाएगा ।
डॉ. श्याम सुन्दर पाठक अनन्त ( लेखक उत्तर प्रदेश वस्तु एवं सेवा कर विभाग में असिस्टेंट कमिश्नर पद पर कार्य़रत हैं और प्रसिद्ध मोटीवेशनल स्पीकर भी हैं )
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