- आज देशभर में मनाई जा रही है श्रीकृ्ष्ण जन्माष्टमी
- एक दूसरे को सोशल मीडिया पर बधाई दे रहे हैं लोग
नई दिल्ली: देशभर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है। तमाम मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। कई मंदिरों में कोविड की वजह से मंदिर के अंदर आने पर रोक लगी हुई है। वहीं लोग सोशल मीडिया के जरिए भी एक दूसरे को जन्माष्टमी की बधाई दे रहे हैं। श्रीकृष्णजन्माष्टमी पर पर भगवान श्री कृष्ण और राधा जी को समर्पित एक कविता हम आपके लिए पेश कर रहे हैं जिसे पढ़कर आपका रोम- रोम खिल जाएगा। कविता का शीर्षक है "तुम बिन, मैं नहीं ”
राधा !
मैं कैसे कहूँ कि,
तुम बिन, मैं नहीं ?
आधार हो तुम मेरा,
तुमने ही तो,
अस्तित्व पाता हूँ मैं,
तेरे लिये ही तो,
धरा पर आता हूँ मैं,
यूँ तो धर्म की स्थापना,
अधर्म का नाश, भक्तों का उद्धार,
करने का गुरुतर दायित्व भी,
है कन्धों पर मेरे,
लेकिन इस दायित्व को,
वहन करने का बल कहाँ से आता है-
तुमसे
वो निधि- वन जो साक्षी है महारास का,
तभी तो मैं प्राप्त हुआ पूर्णता को,
ये महारास-
एक तन, एक मन, एक प्राण,
हो जाना ही तो है,
तो फिर तुम ही बताओ,
कब अलग हुआ मैं तुमसे,
मेरा प्राण, मेरी आत्मा,
सब तुम ही तो हो – राधा !
किसी अन्य को मेरा प्रेम करना,
मेरे प्रेम के अधूरेपन का प्रतीक नहीं,
बल्कि तुमसे मिले प्रेम की शक्ति से ही,
उनके अन्तर्मन को, उनके संकल्प को,
बदल पाता हूँ मैं,
तुमसे प्रेम करना,
स्वयं को भर लेना है- प्रेम से,
उसी दिव्य प्रेम की,
दिव्य तरंग से भर पाता हूँ मैं,
प्रेम की उमंग- तरंग,
संसार के मन में,
ताकि समाप्त हो सके,
दुनिया में ईर्ष्या और द्वेष,
राधा !
क्या जानो तुम मेरा दर्द,
क्या मेरा मन नहीं करता,
प्रेम करने को ?
अरे प्रेम ही तो है, जिसके कारण,
कृष्ण- कृष्ण है,
और मेरा वो प्रेम- तुम ही तो हो,
सिर्फ़ तुम,
लेकिन कर्म की प्रधानता का,
जो संदेश मैं देता हूँ,
तो स्वयं को भी,
कर्म की उस भट्टी में झोंकना पड़ता है,
राधा !
तुम ही बताओ,
क्या राधा के बिना
कृष्ण सम्भव है ?
हम दोनों तो,
एक मन, एक तन, एक प्राण हैं,
तुम्हारे ही कारण तो,
प्रेम से पूरा हूँ मैं,
इसी कारण तो प्रेम बाँट पाता हूँ मैं,
राधा !
भले ही प्रश्न करे दुनिया,
कि क्यों ना हुआ मेरा तुमसे विवाह ?
अरे ! हमारा विवाह तो तब होता,
जब हम दो तन होते ?
जब तुम मुझसे और मैं तुमसे,
अलग हैं ही नहीं,
तो भला कैसा पाणिग्रहण ?
राधा !
तुमने ही सिखाया है, दुनिया को,
कि प्रेम कैसा हो
और यदि प्रेम राधा जैसा है तो,
कृष्ण के साथ,
अभंग हो जाता है,
तुम्हारा नाम- राधा !
और प्रेम का उद्देश्य,
प्रेम में ड़ूबे रहना नहीं है,
बल्कि प्रेम से स्वयं को भरकर,
अनन्त ऊर्जस्वित हो,
निर्धारित कर्म को,
पूर्ण निष्ठा से करने से है,
और बस,
यही तो करता हूँ मैं,
तुमसे ही- मेरा प्रेम है,
मेरा ज्ञान है, मेरा नाम है,
मेरा अस्तित्व है,
राधा !
प्रेम सीखना हो तो,
संसार तुमसे सीखे,
निस्वार्थ, निर्लेप,
ना कोई आशा, ना प्रत्याशा,
है तो सिर्फ़,
समर्पण, पूर्ण समर्पण,
स्वयं को मिटा लेने का नाम है- राधा !
एकाकार कर लेने का नाम है- राधा !
कृष्ण का आधार है- राधा !
प्रेम का दूसरा नाम है- राधा !
(लेखक डॉ. श्याम सुन्दर पाठक ‘अनन्त’ उत्तर प्रदेश वस्तु एवं सेवा कर विभाग में असिस्टेंट कमिश्नर पद पर कार्य़रत हैं )