लाइव टीवी

Yogi Prahlad Jani: योगी प्रहलाद जानी की जिंदगी के कुछ अनसुलझे रहस्य, दुनिया के वैज्ञानिक भी हो गए थे फेल

Updated May 27, 2020 | 10:38 IST

Prahlad Jani interesting Facts: प्रहलाद जानी उर्फ चुनरी वाली माताजी करीब 70 सालों से ज्यादा बिना खाना खाए पिए जिंदा रहे वैज्ञानिकों के लिए ये एक हैरतअंगेज सवाल बना रहा उनके जीवन से जुड़े कई रोचक तथ्य हैं। 

Loading ...
प्रह्लाद जानी दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए चर्चा का विषय थे (फाइल फोटो)
मुख्य बातें
  • योगी प्रह्लाद जानी उर्फ चुनरीवाला माताजी का गुजरात के गांधीनगर जिले में निधन हो गया
  • प्रहलाद जानी उर्फ चुनरी वाली माताजी करीब 70 सालों से ज्यादा बिना खाना खाए और पानी पिये जिंदा रहे
  • प्रह्लाद जानी केवल भारतीय वैज्ञानिकों के लिए ही नहीं बल्कि दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए चर्चा का विषय थे

नई दिल्ली: सत्तर साल से भी अधिक समय से अन्न-जल ग्रहण किये बिना जीवित रहने का दावा करने वाले योगी प्रह्लाद जानी उर्फ चुनरीवाला माताजी का मंगलवार को गुजरात के गांधीनगर जिले में निधन हो गया, वह 90 साल के थे जानी ने अपने पैतृक गांव चराड़ा में अंतिम सांस ली।

गुजरात में बड़ी संख्या में उनके अनुयायी हैं। बिना अन्न-जल ग्रहण किये जीवित रहने के जानी के दावे को 2003 और 2010 में वैज्ञानिकों ने परखा था।

वह दावा किया करते थे कि उन्हें अन्न-जल ग्रहण करने की इसलिए जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि देवी मां ने उन्हें जीवित रखा है। इस बीच, जानी का पार्थिव शरीर बनासकांठा जिले में अंबाजी मंदिर के समीप उनके आश्रम सह गुफा में ले जाया गया है। 

देवी मां अंबे में अटूट विश्वास रखने वाले जानी हर समय चुनरी पहना करते थे और महिला की तरह रहते थे। इसके कारण वह चुनरीवाला माताजी के नाम से चर्चित थे उन्होंने आध्यात्मिक अनुभव की तलाश में बहुत ही कम उम्र में अपना घर छोड़ दिया था।

वैज्ञानिकों के लिए वो एक हैरतअंगेज सवाल बने रहे

प्रह्लाद जानी केवल भारतीय वैज्ञानिकों के लिए ही एक पहेली नहीं थे, बल्कि दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए चर्चा का विषय थे। उन्‍हें लोग 'चुनरी वाली माता' के नाम से पुकारते थे। सात दशकों तक वह बिना खाना खाए और पानी पिये जिंदा रहे। वैज्ञानिकों के लिए ये एक हैरतअंगेज सवाल बना रहा। इतना ही नहीं इस दौरान प्रह्लाद जानी ने मूत्र त्‍याग भी नहीं किया था। ये किसी के लिए भी अजूबा हो सकता है।

उनके अनुयायियों का दावा है कि महज 14 साल की उम्र में उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया था। जानी ने बहुत कम उम्र में अंबाजी मंदिर के समीप एक छोटी सी गुफा को अपना घर बना लिया था। बाद में, वह एक ऐसे योगी के रूप में लोकप्रिय हो गये जो बस हवा पर जीवित रहते थे।

उनके कई मेडिकल टेस्ट भी हुए

जानी के दावे को 2003 और 2010 में वैज्ञानिकों ने परखा था, देश की जानी-मानी संस्था डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की टीम ने सीसीटीवी कैमरे की नजर में 15 दिनों तक 24 घंटे उन पर नजर रखी थी साथ ही उनके आश्रम के पेड़-पौधों का भी टेस्ट किया गया था, लेकिन कोई इस पहेली को सुलझा नहीं सका।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन से संबद्ध डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ फिजियोलोजी एंड एलाइड साइंससेज (डीआईपीएएस) के वैज्ञानकों एवं संबंधित डॉक्टरों ने यह जानने के लिए जानी का 15 दिनों तक निरीक्षण किया था कि वह कैसे बिना अन्न-जल के जीवित रहते हैं। डीआईपीएएस ने बाद में कहा था कि जानी में भूख और पानी से बचने के लिए कुछ अतिरेक प्रकार का अनुकूलन है।

प्रहलाद जानी को मल मूत्र भी नहीं बनता

प्रहलाद जानी के पीने और उत्सर्जन की क्रिया से पूर्ण मुक्त रहने के दावे का बार-बार चिकित्सकीय और वैज्ञानिक परीक्षण किया जा चुका है। इतना ही नहीं मल-मूत्र त्यागने जैसी दैनिक क्रियाओं को योग के जरिए उन्होंने रोक रखा है। डॉक्टर बताते हैं कि जानी के ब्लैडर में मूत्र बनता है, लेकिन कहां गायब हो जाता है इसका पता करने में विज्ञान भी अभी तक विफल ही रहा है।

प्रहलाद जानी महिलाओं के वेषभूषा में ही रहते थे

देवी अम्बा के भक्त होने के नाते वे हर समय लाल साड़ी (चुनरी) पहनकर रहते थे और एक महिला की तरह कपड़े पहनते थे, इस कारण उन्हें चुनरीवाला माताजी के नाम से जाना जाता था। उन्होंने आध्यात्मिक अनुभव के अनुसरण में बहुत कम उम्र में अपने माता-पिता का घर छोड़ दिया था। उनके अनुयायियों ने दावा किया कि उन्होंने 14 साल की उम्र में भोजन और पानी लेना बंद कर दिया था।

वो स्वयं कहते थे कि यह तो दुर्गा माता का वरदान हैं, 'मैं जब 12 साल का था, तब कुछ साधू मेरे पास आए। कहा, हमारे साथ चलो, लेकिन मैंने मना कर दिया। करीब छह महीने बाद देवी जैसी तीन कन्याएं मेरे पास आयीं और मेरी जीभ पर अंगुली रखी। तब से ले कर आज तक मुझे न तो प्यास लगती है और न भूख।'


 
योगी प्रहलाद जानी  ने महज 10 वर्ष की आयु में ही उन्होंने अध्यात्मिक जीवन के लिए अपना घर छोड़ दिया था। एक साल तक वह माता अंबे की भक्ति में डूबे रहे, जिसके बाद वह साड़ी, सिंदूर और नाक में नथ पहनने लगे। वह पूरी तरह से महिलाओं की तरह श्रृंगार करते हैं। जानी गुजरात के अहमदाबाद से 180 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर अंबाजी मंदिर की गुफा के पास रहते थे।