- 1961 में बांग्लादेश की कुल आबादी में हिंदुओं की संख्या 22 फीसदी थी। जो कि घटकर केवल 9-10 फीसदी रह गई है।
- मार्च में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा की दौरान भी बड़े पैमाने पर हिंसा की साजिश रची गई थी। उसमें जमात-ए-इस्लामी का हाथ सामने आया था।
- जमात-ए-इस्लामी का गठन 1941 में हुआ था। और उसका भारत को इस्लाम का सबसे बड़ा केंद्र बनाने का एजेंडा था।
नई दिल्ली। बंग्लादेश में दुर्गा पूजा के मौके पर शुरू हुई हिंसा ने हिंदुओं की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। गृह मंत्री असदुज्जमा खान ने इन हमलों को सोची-समझी साजिश बताया है। वहीं एक न्यूज चैलन को इंटरव्यू में पूर्व सूचना मंत्री हसनुल हक इनू ने हमले के पीछे जमात-ए-इस्लामी का हाथ होने का शक जताया है। यह वही जमात-ए-इस्लामी है जिसने बीते मार्च में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की बंग्लादेश यात्रा के दौरान हिंसक घटनाओं की साजिश रची थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक बांग्लादेश में दुर्गा पूजा को लेकर 3,000 से अधिक पंडाल बनाए गए थे। औj 13 अक्टूबर को कुरान के अपमान की कथित पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद से हिंसा भड़की। उपद्रवियों नें पंडाल, मूर्ति, और मंदिर को निशाना बनाया है।
कौन है जमात-ए-इस्लामी
बांग्लादेश जमात ए-इस्लामी को जमात ने नाम से भी जाना जाता है। इसका गठन 1941 में हुआ था, पार्टी के संस्थापक सैयद अबुल अला मौदूदी थे। जमात भारत के विभाजन के खिलाफ था क्योंकि उसका मानना था कि विभाजन से इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग बंट जाएंगे और भारत कभी दुनिया में इस्लाम का सबसे बड़ा केन्द्र नहीं बन पाएगा। विभाजन के बाद मौदूदी पाकिस्तान चले गए और फिर पार्टी के पूर्वी धड़े से बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी का जन्म हुआ। 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पार्टी के कई नेताओं पर आम लोगों पर अत्याचार करने के गंभीर आरोप लगा था। जमात-ए-इस्लामी पर 2013 में बांग्लादेश की हाई कोर्ट ने को अवैध घोषित कर दिया था। साथ ही भविष्य में इस पार्टी के चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था।
इसके पहले 26-27 मार्च को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा की दौरान भी बड़े पैमाने पर हिंसा की साजिश रची गई थी। उस साजिश में जमात-ए-इस्लामी का ही हाथ बताया गया था। जमात-ए-इस्लामी का पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और तालिबान के साथ रिश्तों के भी आरोप लगते रहे हैं।
9 साल में 3721 हमले
न्यूज एजेंसी एएनआई ने आइन-ओ-सालिश केंद्र (Ain o Salish Kendra)की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया है कि पिछले 9 साल में हिंदु समुदाय के लोगों पर 3721 हमले हुए हैं। यही नहीं ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट कहती है कि साल 2021 सबसे ज्यादा खतरनाक रहा है। उसके अनुसार हिंदुओं के मंदिर, मूर्तियों और पूजा स्थलों पर तोड़-फोड़ और हमले के 1678 मामले सामने आए हैं। इसके अलावा 18 हिंदू परिवारों पर पिछले तीन में हमले हुए हैं। बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई यूनिटी काउंसिल ने दावा किया है कि ताजा हमलों में लगभग 70 लोग घायल हुए हैं। और लगभग 130 घरों, दुकानों, व्यापारिक केंद्रों या मंदिरों में तोड़फोड़ की गई।
बंग्लादेश में घटती जा रही है हिंदुओ की आबादी
बांग्लादेश में लगातार हिंदुओं की आबादी घटती जा रही है। साल वर्ष 1951 में बांग्लादेश की कुल आबादी में हिंदुओं की संख्या 22 फीसदी थी। जो बांग्लादेश बनने के बाद साल 1974 में 13 फीसदी रह गई। और साल 2011 की जनगणना के अनुसार बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी घटकर केवल 9-19 फीसदी रह गई थी।
(एजेंसी इनपुट के साथ)