- वैश्विक खाद्यान्न संकट को देखते हुए भारत ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है
- विकसित देशों के समूह जी-7 ने भारत के इस कदम की आलोचना की है
- चीन का कहना है कि इस मसले पर भारत की आलोचना करना ठीक नहीं है
Global food crisis : अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन ज्यादातर भारत का विरोध करता आया है लेकिन गेहूं निर्यात के मुद्दे पर उसने नई दिल्ली का साथ दिया है। दरअसल, यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से खाद्यान्न पर मंडरा रहे संकट को देखते हुए भारत ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई है। दुनिया के विकसित देशों के समूह जी-7 ने भारत के इस कदम की आलोचना की है। वहीं, इस आलोचना के बाद चीन ने कहा कि भारत को दोष देने से वैश्विक खाद्य संकट का समाधान नहीं होगा।
गेहूं के निर्यात पर भारत ने रोक लगाई है
दरअसल, भारत सरकार ने पिछले सप्ताह अपनी निर्यात नीति में बदलाव करते हुए गेहूं को निर्यात के 'निषेध' श्रेणी में डाल दिया। वाणिज्य मंत्रालय ने अपने इस कदम के बारे में कहा कि सरकार ने गेहूं के निर्यात पर 'तत्काल प्रभाव' से रोक लगा दी है। पश्चिमी देशों ने जहां इस कदम की आलोचना की तो वहीं चीन की प्रतिक्रिया नई दिल्ली के लिए हैरान करने वाली रही। चीन के सरकारी मुख पत्र 'ग्लोमबल टाइम्स' ने कहा कि 'भारत को दोष देने से खाद्यान संकट की समस्या का समाधान नहीं होगा।'
पश्चिमी देश खुद क्यों नहीं कदम उठाते?
'ग्लोबल टाइम्स' ने सवाल किया, 'जी-7 के कृषि मंत्री भारत से गेहूं के निर्यात पर रोक न लगाने का अनुरोध कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि वे खुद गेहूं का निर्यात बढ़ाते हुए खाद्य आपूर्ति स्थिर करने में कोई कदम क्यों नहीं उठाते?' अखबार ने आगे लिखा कि यह सही है कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं का उत्पादन करने वाला देश है लेकिन दुनिया में गेहूं के निर्यात में उसकी हिस्सेदारी बहुत थोड़ी है जबकि अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया बड़े पैमाने पर गेहूं का निर्यात करते हैं।
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'भारत की आलोचना नहीं करनी चाहिए'
'ग्लोबल टाइम्स' के मुताबिक दुनिया पर मंडरा रहे खाद्य संकट को देखते हुए जी-7 के देशों ने अपने गेहूं के निर्यात में यदि कटौती करने का फैसला किया है तो उन्हें भारत की आलोचना नहीं करनी चाहिए क्योंकि भारत को अपने यहां खाद्य संकट की आपूर्ति बहाल रखने की चुनौती है। चीन का कहना है कि मौजूदा खाद्य संकट की चुनौती से निपटने के लिए पश्चिमी देशों को आगे आना चाहिए और उन्हें भारत एवं अन्य विकासशील देशों की आलोचना करने से बचना चाहिए।