- अमेरिका में एक वीडियो क्लिप में एक पुलिस अधिकारी घुटनों से एक अश्वेत आदमी की गर्दन दबाता दिख रहा है
- जार्ज की सांस घुटती रहती है और वो बेबसी में कुछ बुदबुदाता है और कहता है- I Can't Breathe...
- अमेरिकी पुलिस अधिकारी उसकी गर्दन से अपना पैर नहीं हटाता है जिससे उसकी मौत हो जाती है
दुनिया का सबसे शक्तिशाली मुल्क अमेरिका (US) जल रहा है घृणा से, आक्रोश से.. ये मसला महज एक अश्वेत की मौत का नहीं बल्कि ये तो वो आग है जो अमेरिका में कभी ठंडी ही नहीं हुई, गाहे बगाहे बीच-बीच में ये भड़कती है और फिर मद्धिम पड़ जाती है, दरअसल बात अश्वेतों (Black) पर गोरों के अत्याचार की हो रही है, हाल ही में यहां एक गोरे पुलिसवाले ने एक अश्वेत की गर्दन पर पैर रख दिया और जब तक वो निष्प्राण नहीं हो गया तबतक वो उसे दबाए रहा।
ये प्रतीकात्मकता है अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की कि अश्वेत (Black) कैसे श्ववेतों (White) का मुकाबला कर सकते हैं, ये दंभ हैं गोरों का कि हम सर्वश्रेष्ठ हैं और यह मानसिकता सालों से चली आ रही है, जहां भी इसे चुनौती मिलती है तो वहां पर ऐसे घिनौने वाकये सामने आते हैं और जॉर्ज फ्लायड जैसे अश्वेतों को अपनी जान गंवानी पड़ती है।
अमेरिका 'घृणा' और 'आक्रोश' की आग में जल रहा है
लेकिन इस बार जैसी विरोध की बयार बह रही है इसका गुमान गोरे अमेरिकियों को नहीं था कि इस बार आक्रोश ऐसा फटेगा जिसमें अमेरिका के तकरीबन सभी राज्य और खास बड़े शहर हिंसा की आग में झुलस रहे हैं, तमाम जगहों पर आगजनी हो रही है दुकानें,बड़े-बड़े मॉल लूटे जा रहे हैं।
सरकार को इन हिंसक प्रदर्शनों को रोकना भारी पड़ रहा है और इसकी तपिश से दुनिया का सबसे प्रभावशाली शख्स अमेरिका का राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप (Donald Trump) तक हलकान है और उसे भी अपने ही निवास व्हाइट हाउस के बंकर में कुछ देर के लिए छुपना पड़ा, आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आक्रोश और विरोध की तीव्रता कितनी भयावह है।
मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं....वो 8 मिनट 46 सेकेंड का मंजर
अमेरिका में एक वीडियो क्लिप के वायरल होने के बाद से इस घटना की शुरुआत होती है सामने आई एक वीडियो क्लिप में एक पुलिस अधिकारी अपने घुटनों से एक अश्वेत आदमी जिसका नाम जॉर्ज फ्लायड है उसकी गर्दन दबाता दिख रहा है, गर्दन दबाने का ये क्रम तकरीबन 8 मिनट और 46 सेकेंड तक चलता है इस दौरान जार्ज की सांस घुटती रहती है और वो बेबसी में कुछ बुदबुदाता है और कहता है- I Can't Breathe...मगर इस सबसे बेपरवाह अमेरिकी श्वेत पुलिस अधिकारी डेरेक चाउविन की आत्मा नहीं पसीजती है और वो अपना घुटना जार्ज की गर्दन से नहीं हटाता है।
थोड़ी देर बाद एंबुलेंस आती है मगर जार्ज रंगभेद की मार का अगला शिकार हो गया, ये नृशंस घटना उसी मनोवृत्ति को झलकाती है कि अश्वेत निम्न हैं और उनके छोटे से भी गुनाह की सजा इतनी बड़ी हो सकती है।
गोरे यानी बेहतर...अश्वेत यानि निम्न, तुच्छ- यही है मानसिकता
ये घटना अमेरिका में एक बार फिर से अश्वेत समुदाय के खिलाफ सरकार की एजेंसियों के भेदभाव को सामने ला रही हैं, गोरे यानी बेहतर, बड़े लोग.. राज करने वाले, वहीं जो अश्वेत यानि काले हैं वो निम्न..तुच्छ और गुलाम लोग..जी हां कुछ ऐसी ही मानसिकता रही है तमाम अमेरिकियों की हालांकि इसके अपवाद भी वहां दिखते हैं और ओबामा जैसे देश के सर्वोच्च पद भी पहुंचे हैं।
लेकिन अभी भी अधिकांश अमेरिका आज के अतिआधुनिक जमाने में रंगभेद से उबर नहीं पाया है और अपनी श्रेष्ठता को साबित करने के मौके तलाशता रहता है, शायद यही वजह है कि वहां पर ब्लैक को आज भी उतनी आजादी नहीं है जितने और अमेरिकियों को है।
मार्टिन लूथर किंग ने "रंगभेद" के खिलाफ जलाई थी अलख ,मगर नतीजा !
डॉ. मार्टिन लूथर किंग जिन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता है, अमेरिका के एक पादरी, आन्दोलनकारी एवं अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता थे, लूथर किंग ने संयुक्त राज्य अमेरिका में नीग्रो समुदाय के प्रति होने वाले भेदभाव के विरुद्ध सफल अहिंसात्मक आंदोलन का संचालन किया।
सन् 1955 में मॉटगोमरी की सार्वजनिक बसों (Montgomery bus boycott, 1955) में काले-गोरे के भेद के विरुद्ध एक महिला रोज पार्क्स ने गिरफ्तारी दी। इसके बाद ही किंग ने प्रसिद्ध बस आंदोलन चलाया। पूरे 381 दिनों तक चले इस सत्याग्रही आंदोलन के बाद अमेरिकी बसों में काले-गोरे यात्रियों के लिए अलग-अलग सीटें रखने का प्रावधान खत्म कर दिया गया।
बाद में उन्होंने धार्मिक नेताओं की मदद से समान नागरिक कानून आंदोलन अमेरिका के उत्तरी भाग में भी फैलाया। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने 1963 में अफ्रीकी अमेरिकी समुदाय के लिए हकों की मांग के साथ वॉशिंगटन सिविल राइट्स मार्च बुलाया था जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी की अहिंसा और असहयोग की तकनीक को अपनाया था।
अमेरिका के इतिहास में ये आंदोलन काफी सफल माना जाता है लेकिन इतने साल बीतने के बाद भी आज फिर अमेरिका रंगभेद से उपजी हिंसा की आग में झुलस रहा है और इस बार इसकी आग जल्दी ही ठंडी होती नहीं दिख रही।