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क्‍या मलाला यूसुफजई के बाद इस किशोरी को मिलेगा सबसे कम उम्र में नोबेल शांति पुरस्‍कार?

Updated Feb 04, 2020 | 14:04 IST

मलाला यूसुफजई को 2014 में नोबेल शांति पुरस्‍कार मिला था। तब उनकी उम्र केवल 17 साल थी। अब इसी उम्र की ग्रेटा थनबर्ग का नाम इसके लिए आगे आ रहा है। क्‍या वह रच पाएगी इतिहास?

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तस्वीर साभार:&nbspAP, File Image
ग्रेटा थनबर्ग जलवायु परिवर्तन के लिए दुनिया को जागरूक करने के लिए कैंपेन चला रही हैं

स्‍टॉकहोम : पाकिस्‍तान की मलाला यूसुफजई ने 2014 में इतिहास रच दिया था, जब वह सबसे युवा नोबेल पुरस्‍कार विजेता के तौर पर सामने आई थीं। उन्‍होंने महज 17 साल की उम्र में यह उपलब्‍ध‍ि हासिल की थी। अगर सबकुछ ठीक रहता है तो इस कतार में इस उम्र की एक और लड़की का नाम सामने आ सकता है, जिसे 2020 के नोबेल शांति पुरस्‍कार के लिए नामित किया गया है।

यह किशोरी आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। जलवायु परिवर्तन के खतरों को लेकर पहले ही दुनिया को आगाह कर चुकी और अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप व रूप से राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन जैसे दुनिया के दिग्‍गज नेताओं की नजर में आ चुकी यह किशोरी कोई और नहीं, स्‍वीडन की जलवायु कार्यकर्ता ग्रेट थनबर्ग हैं, जिनका सितंबर 2019 में संयुक्‍त राष्‍ट्र में दिया गया भाषण 'how dare you' खूब लोकप्रिय हुआ था।

अपने इस संबोधन में ग्रेटा ने पर्यावरण को लेकर वैश्विक चिंताओं जिक्र करते हुए कहा था कि अगर जल्‍द ही धरती पर इको-सिस्टम को बचाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाली पीढ़ियां मौजूदा पीढ़ी के लोगों को कभी माफ नहीं कर पाएंगी। ग्रेटा ने पिछले एक साल से स्‍कूल की पढ़ाई से छुट्टी ले रखी है और दुनियाभर में पर्यावरण का लेकर जागरुकता फैला रही हैं।

स्‍वीडन के दो सांसदों ने ग्रेटा को 2020 के नोबेल शांति पुरस्‍कार के लिए नामित किया है। इन सांसदों का कहना है कि ग्रेटा ने अपनी गतिविधियों और भाषणों से जलवायु संकट को लेकर दुनिया के नेताओं को जागरूक किया है और उनकी आंखें खोलने का काम किया है। उसने अपने कैंपेन की शुरुआत अकेले ही स्वीडन की संसद के बाहर प्रदर्शन से की थी और आज उसकी आवाज दुनियाभर में सुनी जा रही है।

जब मलाला ने दी थी तालिबान को चुनौती
अगर ग्रेटा को 2020 का नोबेल शांति पुरस्‍कार मिलता है तो वह सर्वाधिक कम उम्र में यह बड़ी उपलब्धि हासिल करने वाली पाकिस्‍तान की मलाला यूसुफजई की कतार में शामिल हो जाएंगी, जिन्‍हें 2014 में भारत में बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्‍यार्थी के साथ यह सम्‍मान दिया गया था। मलाला साल अक्‍टूबर 2012 में तालिबान के हमले के बाद चर्चा के बाद सुर्खियों में आई थीं।

पाकिस्‍तान के पख्‍तूनख्‍वाह प्रांत के स्वात जिले में 1997 में जन्‍म लेने वाली मलाला लड़कियों की शिक्षा की जबरदस्‍त पैरोकार रही हैं। वर्ष 2007 से मई 2009 तक जब स्वात घाटी में तालिबान का कब्‍जा था तो उसने लड़कियों का स्कूल जाना बंद कर दिया था। लेकिन मलाला रुकी नहीं। वह लगातार बच्‍चों, खासकर लड़कियों के लिए मौलिक शिक्षा के अधिकार का मुद्दा उठाते हुए तालिबान पर हमला बोलती रहीं।

इस मासूम की दिलेरी ने तालिबान को भी खौफजदा कर दिया और उसने 9 अक्टूबर, 2012 को मलाला के सिर में गोली मार दी, जब वह स्‍कूल जा रही थीं। गंभीर रूप से घायल मलाला का इलाज ब्रिटेन में हुआ। वह अब भी लड़कियों की शिक्षा को लेकर लगातार मुखर हैं।