- कनाडा, अमेरिका और चीन के बीच होस्टेज डिप्लोमेसी
- सदियों से चीन बंधक नीति को अपनाता रहा है
- चीन इस नीति का प्रयोग पहली बार नहीं कर रहा है
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब कोई देश अपने राजनीतिक फायदे के लिए किसी देश के महत्वपूर्ण नागरिक को बंदी बना लेता है,जिसका उपयोग दूसरे देश से आपने राजनीतिक तथा कूटनीतिक लाभ के लिए किया जाता है, मानव अधिकारों के सम्बंध में इस प्रकार की नीति की कई देशों के द्वारा निंदा भी की जाती है,परन्तु कई देशों के द्वारा इसका समय सापेक्ष उपयोग भी देखा गया है।
होस्टेज डिप्लोमेसी में चीन-कनाडा-अमेरिका में द्वन्द
मामला है चीन की बड़ी टेक्नोलॉजी नेटवर्क कंपनी हुवेई की मुख्य वित्तीय अधिकारी और कंपनी के संस्थापक की बेटी मेंग वानजोऊ का, जिनके पिता का चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में अहम ओहदा है, वह चीनी राष्ट्रपति Xi Jinping के करीबी भी बताये जाते हैं। हुवेई की मुख्य वित्तिय अधिकारी और कम्पनी के संस्थापक की बेटी मेंग वानजोऊ को अमेरिका के अनुरोध पर दिसम्बर 2018 में कनाडा के वैंकुवर हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया गया था। डोनाल्ड ट्रम्प की अगुआई में अमेरिका ने उनपर धोखाधड़ी का आरोप लगाकर, कनाडा सरकार से गिरफ्तारी का अनुरोध किया, जिसके बाद कनाडा सरकार ने मेंग वानजोऊ को गिरफ्तार किया।
मेंग की गिरफ्तारी के पीछे की वजह
गिरफ़्तारी के दौरान कहा गया कि मेंग ने हुवेई कम्पनी के स्काई कॉम नाम की एक कंपनी से रिश्ते के स्वरूप के बारे मे HDFC बैंक को गुमराह किया, हालांकि मेंग को पूरी दुनिया मे Xi Jinping की करीबी के रूप में देखा जाता है और इसी वजह से चीनी सरकार ने इस मामले को उच्च प्राथमिकता से लिया था।मेंग की गिरफ्तारी कनाडा ने अमेरिका के शह पर किया। की गिरफ़्तारी के एक हफ्ते तक चीन की कमजोर नस अमेरिका की उँगलियों तले दबी हुई थी।तिलमिलाया चीन अपनी नाक बचाने के लिए किसी भी स्तर तक जाने को तैयार था, और हुआ भी कुछ वैसा ही।
होस्टेज डिप्लोमेसी या बंधक नीति
चीन ने अपनी सदियों पुरानी बंधक नीति अपनाई। मेंग की गिरफ्तारी के केवल 10 दिन बाद चीन ने, देश में रह रहे 2 कनाडाई नागरिकों माइकल स्पवोर और माइकल कोरिग को गिरफ्तार कर लिया। इन्हें बेहद अमानवीय हालात में जेल की कोठरी में रखा गया था और बाद में अदालत द्वारा हुवेई के मामले में जासूसी के अपराध में माइकल स्पवोर को 11 साल की सजा सुना दी थी एवं दूसरे को भी जल्दी ही सजा सुनाये जाने की उम्मीद की जा रही थी। इस कदम को चीनी सरकार द्वारा कनाडाई सरकार पर होस्टेज डिप्लोमेसी के तहत धमकी के द्वारा दवाब बढ़ाने के रूप में पूरी दुनिया में देखा गया था
पूरे विश्व भर में यह खबर आग की तरह फ़ैल गयी चीन की खूब किरकिरी हुई। लेकिन वैश्विक और आंतरिक दबाव के चलते कनाडा और चीन दोनों को समझौते के तहत लगभग 1000 दिन के बंधक स्टैंड- ऑफ को ख़त्म करना पड़ा। इस समझौते से अमेरिका, यूरोप और कनाडा बैकफुट पर है। विश्व में सन्देश यही दिख रहा है किचीन अब यूरोप, अमेरिका और कनाडा पर चीन अपने टर्म्स डिक्टेट कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है की कनाडा ने अपने वर्षों पुराने चीन से गहरे सम्बन्ध को अमेरिका की वजह से बर्बाद कर दिया।बंधकबाज़ी के 1000 दिन तक वर्ल्ड आर्डर में कोल्ड वॉर यानि शीत युद्ध के आसार बने हुए थे। जिसे आज भी नाकारा नहीं जा सकता। चीन अब भी जवाबी करवाई की ताक में है।
क्या मामला ठंडा पड़ चुका है?
ज़्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि मुद्दा ठंडा पड़ चुका है, परन्तु असल मे चीन को लगातार एक के बाद एक अपनी बंधक नीति में मिलती हुई सफलताओं से ये नहीं कहा जा सकता कि चीन इस नीति के उपयोग को बंद करेगा।होस्टेज डिप्लोमेसी का इस्तेमाल करके चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों को लागू करने में बड़ी आसानी से किसी भी देश के समक्ष इसका उपयोग कूटनीतिक रूप से कर सकता है, क्योंकि हिन्द महासागर में चीन के खिलाफ बढ़ती हुई गुटबंदी औऱ अमेरिका में हुई क्वाड की बैठक से चीन बौखला गया है। अपने खिलाफ हो रहे किसी भी घटना क्रम पर अंकुश लगाने के लिए होस्टेज डिप्लोमेसी का प्रयोग चीन के लिये एक सामान्य सी बात है,इसलिए बंधक नीति का यह मसला कभी ठंडा नही होगा।
क्या चीन इस नीति का प्रयोग पहली बार कर रहा है?
यदि हम बंधक नीति के इतिहास की बात करें तो यह प्रथम वाकिया नहीं है,जब चीन आपने कार्य साधने के लिए इसका उपयोग कर रहा है, इतिहास में ऐसी कई घटनाएं दर्ज है जब चीन ने या चीन के ऐतहासिक राजाओं ने एक दूसरे के वर्चस्व को कम करने के लिए इसका उपयोग किया है। प्राचीन चीन में इस नीति के तहत राज्य के जागीरदारों का आदान प्रदान, अपनी विश्वास को बनाये रखने के लिए किया जाता था, साथ ही बड़े राजवंश छोटे राजवंश पर नियंत्रण के लिए भी इस नीति का उपयोग करते थे। इस नीति के तहत चीन ने 1967-69 तक लगभग 20 से 25 ब्रिटिश राजनायिकों को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के द्वारा बंधक बनाया था और इस बंधक नीति का उपयोग चीन से 1969 से 2018 तथा 2021 तक किया है, परतुं विश्व पटल पर सदैव चीन अपनी छवि साफ रखने हेतु इसके उपयोग को नकारा है।
चीन ने बंधक नीति का प्रयोग 2018 में एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक यांग के खिलाफ भी किया, यांग चीन में लोकतांत्रिक गतिविधियों के समर्थन में ब्लॉग लिखता था, जिससे खफ़ा हो कर चीन ने उसे बंधक बना लिया। बाद में ऑस्ट्रेलिया के साथ चीन के संबंधों में खटास भी देखने को मिली और कई मामलों में ऑस्ट्रेलिया को समझौता भी करना पड़ा।
(लेखक, कुंवर हरिओम TIMES NOW नवभारत में न्यूज एनालिस्ट हैं )