- इमरान खान के करीबियों का नाम पेंडोरा पेपर्स मामले में आया है
- आतंकवाद को लेकर PAK PM की नीतियां भी सवालों के घेरे में है
- विपक्ष इमरान सरकार के खिलाफ आक्रामक तेवर अपनाए हुए है
Pakistan PM Imran Khan : पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान इन दिनों पेंडोरा पेपर्स (Pandora papers) में अपने करीबियों का नाम सामने आने के बाद से विपक्ष के निशाने पर हैं। इसमें 700 पाकिस्तानियों के नाम हैं, जिनमें से कई इमरान खान के करीबी हैं। इसमें इमरान सरकार के कई मंत्रियों, उनके परिजनों और सैन्य अधिकारियों के भी नाम हैं, जिसके बाद विपक्ष ने नैतिकता के आधार पर इमरान खान से इस्तीफा मांगा है। भ्रष्टाचार को लेकर उठ रहे सवालों के बीच इमरान खान पर आतंकवाद के सामने घुटने टेकने के आरोप भी लग रहे हैं और लोग सवाल पूछ रहे हैं कि प्रधानमंत्री आखिर ये किस तरह का 'नया पाकिस्तान' बना रहे हैं?
इमरान खान ने हाल ही में तुर्की के टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में खुलासा किया है कि पाकिस्तान सरकार तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के साथ बातचीत की प्रक्रिया में है, जिसमें मध्यस्थत अफगान तालिबान कर रहे हैं। यह बातचीत अफगानिस्तान में हो रही है। इमरान खान के इस ऐलान ने पाकिस्तान की राजनीति में भूचाल पैदा कर दिया है तो उन लोगों के दिलों में भी शोले भड़क उठे हैं, जिन्होंने TTP के आतंकी हमलों में अपनों को खोया। पाकिस्तान में न केवल पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के लिए इस प्रतिबंधित आतंकी समूह को जिम्मेदार ठहराया जाता है, बल्कि यह समूह पाकिस्तान के पेशावर में 16 दिसंबर, 2014 को सैनिक स्कूल पर हमले का भी जिम्मेदार है, जिसमें 132 मासूम बच्चों समेत 140 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी।
शहीद परिवारों के जख्म पर नमक छिड़ रही इमरान सरकार!
पेशावर के सैनिक स्कूल पर हुए आतंकी हमले ने पूरी दुनिया को सकते में ला दिया था। यह गम आज भी उन परिवारों को सालता है, जिन्होंने उस नृशंस हमले में अपने कलेजे के टुकड़े को हमेशा के लिए खो दिया। ऐसे में पाकिस्तानी समाज में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इमरान सरकार आखिर किस किस्म का 'नया पाकिस्तान' बनाना चाहती है? सरकार आखिर उस आतंकी समूह को कैसे माफ कर सकती है, जो मासूमों की हत्या के लिए जिम्मेदार है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) की नेता शेरी रहमान ने इसे 'शहीद परिवारों के घाव पर नमक छिड़कने' जैसा बताया तो सवाल यह भी उठ रहा है कि इमरान खान ने ऐसे 'संवेदनशील' मसले पर भी संसद को भरोसे में क्यों नहीं लिया?
पीपीपी हो या पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज), पाकिस्तान की ये विपक्षी पार्टियां सवाल कर रही हैं कि टीटीपी से बातचीत का ऐलान प्रधानमंत्री ने एक विदेशी चैनल को दिए इंटरव्यू में क्यों किया, जबकि इस पर संसद और सभी पार्टियों को भरोसे में लेने की जरूतर थी। उनका स्पष्ट कहना है कि ऐसे संवेदनशील मसले पर आगे बढ़ने से पहले पाकिस्तान में इस पर बात होनी चाहिए थी, इसकी शुरुआत संसद से होनी चाहिए थी और पूरी कौम, खासकर उन परिवारों को जरूर भरोसे में लिया जाना चाहिए था, जिन्होंने टीटीपी के हमलों में मासूम बच्चों और अपने करीबियों को खोया है।
ये किस किस्म का 'नया पाकिस्तान' बना रहे इमरान खान?
यह पहली बार नहीं है, जब इमरान खान आतंकवाद को लेकर विवादों में घिरे हैं। इससे पहले भी उन पर आतंकवाद के प्रति नरम रुख अपनाने के आरोप लगते रहे हैं। यह मसला 2018 में भी उठा था, जब पाकिस्तान में आम चुनाव हो रहे थे और जिसमें जीत हासिल कर इमरान खान प्रधानमंत्री बने। आतंकवाद पर इमरान खान तब भी विवादों में आए थे, जब जुलाई 2019 में अमेरिकी दौरे के दौरान उन्होंने पाकिस्तान में 40 आतंकी संगठनों के सक्रिय होने की बात कही थी और यह आरोप भी लगाया था कि उनकी पूर्ववर्ती सरकारों ने अमेरिका को इस बारे में 'सच' नहीं बताया था। इमरान खान के उस बयान पर भी पाकिस्तान में खूब सियासी बवाल हुआ था, जब पीपीपी की एक नेता ने इमरान खान को 'बिना दाढ़ी वाला तालिबान खान' तक कह दिया था।
तालिबान को लेकर इमरान खान के उस बयान ने भी खूब तूल पकड़ा, जिसमें 15 अगस्त, 2021 को अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद उन्होंने कहा कि तालिबान ने मानसिक गुलामी की जंजीरों को तोड़ा है। तालिबान और आतंकवाद को लेकर इमरान खान के ऐसे ही बयान रहे, जिनकी वजह से पाकिस्तान की सियातस में उन्हें तालिबान का समर्थक माना जाता है और विपक्ष इस मसले को लेकर हमेशा इमरान खान के खिलाफ हमलावर रहा है। अब एक बार फिर टीटीपी समूहों से बातचीत को लकर भी इमरान खान सवालों से घिरे हैं। सवाल उठ रहे हैं कि इमरान खान आखिर किस किस्म का 'नया पाकिस्तान' बनाना चाहते हैं, जिसका नारा उन्होंने मुल्क में तीन साल पहले हुए चुनाव के दौरान दिया था।