- मार्च में श्रीलंका सरकार के खिलाफ प्रदर्शन की शुरूआत हुई।
- लोग घंटों बिजली की कटौती, महंगाई, वस्तुओं की किल्लतों से परेशान थे।
- राजपक्षे परिवार श्रीलंका के लोगों के निशाने पर था और इसी का असर था कि 9 जुलाई को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे देश छोड़कर भाग गए।
Sri lanka Crisis: करीब 17 साल से श्रीलंका की राजनीति में दबदबा रखने वाले राजपक्षे परिवार इस समय, वहां के लोगों के लिए सबसे बड़ा खलनायक है। हालात यह है कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका से भाग गए हैं। लेकिन ऐसा परिवार जिसके छह सदस्य, अभी 4 महीने पहले तक देश के सबसे अहम पदों पर काबिज थे, उनकी सत्ता को किसी राजनैतिक विद्रोह ने नहीं बल्कि आम जनता ने उखाड़ फेंका है। इस आंदोलन को इस मुकाम तक पहुंचाने की शुरूआत चंद युवाओं के जरिए हुई थी। जो घंटों बिजली की कटौती, जरूरी सामानों की किल्लत और महंगाई से परेशान थे। युवाओं के इस समूह में आईटी प्रोफेशनल्स, नाटककार और कैथोलिक पादरी शामिल थे।
मार्च में हुई आंदोलन की शुरूआत
राजपक्षे परिवार के वर्चस्व और श्रीलंका की चरमरा चुकी अर्थव्यवस्था ने इस आंदोलन को जन्म दिया। जिसे 'अरागलया' यानी संघर्ष नाम से बनाए गए एक छोटे से समूह के जरिए शुरू किया गया। मार्च में सैकड़ों लोग 12-14 घंटे बिजली कटौती और बढ़ती कीमतों पर अपना गुस्सा निकालने के लिए सड़कों पर उतरे थे। आंदोलनकारी राजपक्षे परिवार पर भी पद को छोड़ने का दबाव बना रहे थे।
लोगों को जोड़ने के लिए सोशल मीडिया का भी सहारा लिया गया। रॉयटर्स के अनुसार डिजिटल रणनीतिकार, डेडुवेगे ने बताया कि श्रीलंका में लगभग 50 लाख घर और आठ लाख एक्टिव फेसबुक अकाउंट हैं। अरागलया ने ऑनलाइन तरीके से प्रदर्शनकारियों तक पहुंचने का एक बेहद प्रभावी तरीका बनाया। और द कंट्री टू कोलंबो, नौ जुलाई जैसे कैंपेन भी सोशल मीडिया के जरिए शुरू किए गए। लोगों की बढ़ती भागीदारी का नतीजा था कि 31 मार्च को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसमें हजारों की संख्या में लोग पहुंचे। इस आंदोलन में प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। हिंसक झड़प में कई प्रदर्शनकारी घायल हो गए और कइयों को हिरासत में लिया गया। इस बीच प्रदर्शनकारियों ने राजपक्षे परिवार के पुश्तैनी घर को आग के हवाले कर दिया।
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आम लोगों के प्रदर्शन को देखते हुए विपक्षी पार्टियां भी मैदान में उतरी
जिस तरह राजपक्षे परिवार और श्रीलंका सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ रहा था। उसे देखते हुए अब विपक्षी दल भी आंदोलनकारियों के साथ हो गए। और पूर्व राष्ट्रपति आर प्रेमदासा के बेटे सजित प्रेमदासा जो कि समागी जान बालवेगया पार्टी के अध्यक्ष भी है, वह भी प्रदर्शनकारियों के साथ आ गए। इसके बाद फ्रंटलाइन सोशलिस्ट ,तमिल नेशनल अलायंस, जनता विमुक्ति पेरामुना, नेशन ल पीपुल्स पावर जैसे विपक्षी दल भी राजपक्षे सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में उतर गए। अब तक इस आंदोलन को श्रमिक संघठन, छात्र संघठनों, प्रोफेनल्स और विपक्षी दलों का साथ मिल चुका था।
पहली सफलता 9 मई को मिली
आंदोलनकारियों को राजपक्षे परिवार के खिलाफ पहली सफलता 9 मई को मिली। जब राष्ट्रपति गोटबाया के बड़े भाई महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद नौ जून कोछोटे भाई बासिल राजपक्षे ने वित्तमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। सफलता से उत्साहित 'अरागलया' के कार्यकर्ताओं ने नौ जुलाई का दिन राष्ट्रपति गोचबाया राजपक्षे को बेदखल के लिए चुना।
9 जुलाई को राष्ट्रपति भाग गए
और 9 जुलाई के दिन ट्रेन, बसों, लॉरी और वाहनों पर सवार होकर, या पैदल चलते हुए, लाखों लोग कोलंबो पहुंच गए। और कुछ समय बाद गोटा गो होम के नारे के साथ हजारों लोग राष्ट्रपति के आवास में घुस गए और फिर प्रधानमंत्री के आवास में भी घुस गए। इस बीच राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे अपना आवास छोड़ कर भाग गए। वहीं प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे भी सुरक्षित स्थान पर चले गए।
(रॉयटर्स इनपुट के साथ)