पाकिस्तान में इमरान खान के खिलाफ विपक्ष की ओर से नेशनल असेंबली में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर 3 अप्रैल (रविवार) को वोटिंग होनी है, जिसे पाकिस्तान की सियासत में बेहद अहम व निर्णायक माना जा रहा है। नंबर गेम में पिछड़ने के बावजूद वह इस्तीफा नहीं देने पर अड़े हुए हैं। उनका कहना है कि वह अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने के लिए तैयार हैं। पाकिस्तान में पल-पल बदलते घटनाक्रम के बीच इमरान खान ने 31 मार्च को राष्ट्र को लाइव संबोधित किया था, जिस दौरान उन्होंने एक बार फिर अपनी सरकार को अपदस्थ करने के पीछे 'विदेशी साजिश' का जिक्र किया था और इस क्रम में अमेरिका का नाम लिया था।
इमरान खान ने विपक्ष पर 'विदेशी ताकतों' से हाथ मिलाने का आरोप भी लगाया था। अब जो जानकारी सामने आ रही है, वह हैरान करने वाली है। बताया जा रहा है कि इस लाइव संबोधन के लिए इमरान खान को सेना और ISI के हाथ-पैर जोड़ने पड़े। वह 24 घंटे तक मिन्नतें करते रहे, तब जाकर सेना ने उन्हें रिकॉर्डेड भाषण प्रसारित करने की मंजूरी दी। लेकिन इमरान खान इसे लाइव करना चाहते थे और उनकी हजार मिन्नतों के बाद सेना ने इसके लिए अनुमति दी थी। इस दौरान सेना ने हिदायत भी दी थी कि वह 'विदेशी साजिश' जैसी बात का उल्लेख करते समय किसी देश का नाम न लें, लेकिन इमरान खान अमेरिका का नाम लेकर फंस गए।
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...तो संबोधन में इसलिए हुई देरी!
सेना और आईएसआई के साथ पहले से ही कई मसलों पर मतभेद के बीच इमरान खान की यह गलती उनके लिए और भारी पड़ गई और अब सेना ने एक बार फिर इमरान के नजरिये से खुद को न केवल अलग कर दिया है, बल्कि इमरान के बयानों से उलट अमेरिका के साथ रिश्तों को सुधारने की कवायद करती नजर आई, जब सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा की ओर से जारी एक बयान में रूस से यूक्रेन हमले को तत्काल रोकने का अनुरोध किया गया है तो अमेरिका को पाकिस्तान का 'ऐतिहासिक व सामरिक' सहयोगी भी बताया गया। सेना प्रमुख के बयान से साफ है कि वह इमरान की टिप्पणी से खुश नहीं हैं।
बताया जा रहा है कि इमरान खान ने जिस तरह 31 मार्च के अपने संबोधन से पहले रविवार (27 मार्च) को इस्लामाबाद की रैली में अपनी सरकार को गिराने के लिए 'विदेशी साजिश' का जिक्र करते हुए कागज का एक टुकड़ा हवा में लहराया था और इसे अपने आरोपों का 'सबूत' बताया था, इसके बाद से सेना और आईएसआई इमरान के इरादों को लेकर सशंकित थी और वे प्रधानमंत्री को लाइव संबोधन का मौका नहीं देना चाहते थे। इमरान खान 30 मार्च (बुधवार) को ही राष्ट्र को संबोधित करने वाले थे, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सके, बल्कि इसमें एक दिन देरी हुई तो उसकी वजह सेना का यह रुख ही बताया जा रहा है।
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सेना, ISI को था ये डर
पाकिस्तानी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सेना और आईएसआई को डर था कि इमरान खान को अगर लाइव संबोधन की अनुमति मिली तो वह सियासी फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं, जिसकी बानगी भी उस वक्त देखने को मिली, जब इमरान खान ने अपने संबोधन की शुरुआत में इमोशनल कार्ड खेलने की कोशिश की। सेना और आईएसआई को इसका भी डर था कि अगर इमरान खान किसी देश का नाम लेते हैं तो इससे पाकिस्तान के उन देशों के साथ रिश्ते खराब हो सकते हैं। ऐसे में पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ सकती थीं और फौज व ISI इस बात को भली-भांति समझती है कि सरकार रहे या न रहे पाकिस्तान रहेगा।
सेना और आईएसई में इस बात को लेकर भी सहमति थी कि प्रधानमंत्री आते-जाते रहेंगे, लेकिन अगर किसी देश का नाम लिया जाता है तो इससे पाकिस्तान मुश्किल में पड़ सकता है। ऐसे में वे अपने मुल्क के लिए किसी तरह की मुश्किलें नहीं चाहते थे। पाकिस्तान की सत्ता में जिस तरह सेना व आईएसई की पकड़ है, उसे देखते उन्हें अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का ख्याल था और आशंका थी कि कहीं इमरान खान अपने सियासी फायदे के चक्कर में पाकिस्तान का नुकसान न कर दें। सेना प्रमुख ने आज जिस प्रभावपूर्ण तरीके से यूक्रेन में जंग रोकने और अमेरिका के साथ 'ऐतिहासिक' संबंधों का जिक्र किया है, उससे भी सेना के इस रुख की पुष्टि होती है।