- जुलाई 2018 में जब इमरान खान सत्ता में आए थे, तो वह भ्रष्टाचार और महंगाई के खात्म के वादे के साथ प्रधानमंत्री बने थे।
- पिछले 3 साल में बदहाल इकोनॉमी, सेना से खराब रिश्तों ने इमरान खान की मुश्किलें बढ़ी दीं।
- इमरान खान को 342 सीटों वाली नेशनल एसेंबली में बहुमत साबित करने के लिए 172 सदस्यों के समर्थन की जरूरत है।
नई दिल्ली दिल्ली: पाकिस्तान में मचे सियासी भूचाल में अब करीब-करीब साफ हो गया है कि प्रधानमंत्री इमरान खान नंबर गेम में पिछड़ गए हैं। पहले तो उनके पार्टी के सांसद बागी हुए अब उनके प्रमुख समर्थक दल मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पाकिस्तान (एमक्यूएम पी) ने सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया है। इस फैसले के बाद इमरान खान के पास 342 सीटों वाली नेशनल एसेंबली में बहुमत नहीं रह गया है। एमक्यूएम पी के 7 सदस्य थे और उसके समर्थन लेने के बाद इमरान खान के पास 164 सदस्यों का समर्थन रह गया है। जबकि बहुमत के लिए 172 सदस्यों के समर्थन की जरूरत है।
विपक्ष के पास दिख रहा है बहुमत
वैसे तो अभी अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होने के बाद आधिकारिक तौर पर पता चलेगा कि इमरान खान के पास कितने वोट हैं। लेकिन जिस तरह उनकी पार्टी के 24 सांसद बागी हो गए हैं और सहयोगी भी उनका साथ छोड़ रहे हैं। उससे यह साफ है कि विपक्ष के पास 172 से ज्यादा सांसदों का समर्थन है। ऐसे में इस बात की भी चर्चा है कि इमरान खान की सरकार गिरने के बाद विपक्ष एक संयुक्त सरकार बनाएगा। जिसकी कमान पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) की पार्टी के नेता और नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ के पास आ सकती है।
3 साल में ऐसे बिगड़ गए हालात
जुलाई 2018 में जब इमरान खान सत्ता में आए थे, तो वह भ्रष्टाचार और महंगाई के खात्म के वादे के साथ प्रधानमंत्री बने थे। और उस वक्त उन्हें सेना का इस कदर समर्थन प्राप्त था कि उनकी सरकार को इलेक्टेड की जगह सेलेक्टेड कहा जाता था। लेकिन इन तीन साल में जिस तरह पाकिस्तान पर कर्ज बढ़ा, विदेश में उसकी साख कम हुई और महंगाई बेलगाम हुई। और उस पर सोने पे सुहागा यह हुआ कि इमरान खान और सेना के बीच दरार आई, उससे इमरान खान के लिए हालात बेकाबू हो गए।
पाकिस्तान की इकोनॉमी इस समय उधार पर टिकी हुई है। पाकिस्तान द्वारा लिया गया उधार और देनदारी पहली बार सितंबर 2021 में यह देनदारी 50.5 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये पर पहंच गई। जो कि अभी 51 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये के करीब है। पाकिस्तान के कर्ज में करीब 20 लाख करोड़ पाकिस्तान रूपये की बढ़ोतरी इमरान खान सरकार के दौर में हुई है। इसी तरह फरवरी में उपभोक्ता महंगाई दर 12.2 फीसदी पर पहुंच गई और खाद्य महंगाई दर 14.73 फीसदी पर पहुंच गई। इसी तरह फरवरी 2022 में पाकिस्तान का चालू खाता घाटा 2 अरब डॉलर से ज्यादा रहा है। यह सब आंकड़े बेकाबू अर्थव्यवस्था की तस्वीर बयां कर रहे हैं। उससे भी उनके खिलाफ नाराजगी बढ़ गई है।
अगर विपक्ष ने बनाई सरकार तो इनके हाथों में होगी कमान
अगर इमरान खान की सरकार गिर जाती है और मध्यावधि चुनाव नहीं होते हैं तो पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) और बिलावल भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) सहित दूसरे विपक्षी दल मिलकर सरकार बना सकते हैं। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) की नेता मरियम नवाज (नवाज शरीफ की बेटी) ने सोमवार को कहा है इमरान खान! आपका खेल खत्म हो गया है। इमरान खान मानते हैं कि उनके खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय साजिश है, लेकिन वह खुद के खिलाफ साजिश करते हैं। अगर उन्होंने अपनी जिम्मेदारी पूरी री होती तो लाखों लोगों को लामबंद करने का कोई कारण नहीं होता।
पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार विपक्ष की मिली-जुली सरकार का नेतृत्व नवाज शरीफ के भाई और नेता प्रतिपक्ष शाहबाज शरीफ कर सकते हैं। जबकि उसमें मरियम नवाज और बिलावल भुट्टो को अहम जिम्मेदारी मिल सकती है। बुधवार को बिलावल भुट्टो ने शाहबाज शरीफ की दावेदारी का समर्थन किया है। ऐसे में साफ है कि शाहबाज शरीफ के पास विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त है। लेकिन एक बात तो साफ है कि इमरान खान के बाद अगर विपक्ष खिचड़ी वाली सरकार बनाता है तो उसके लिए पाकिस्तान के सूरत-ए-हाल को सुधारना आसान नहीं होगा।
भारत पर असर
वैसे तो इमरान खान की सरकार के साथ भी भारत के रिश्ते सामान्य नहीं है। लेकिन अगर पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) की पार्टी का इतिहास देखा जाय तो 1998 में नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री रहते ही करगिल युद्ध हुआ था। उस वक्त सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने करगिल युद्ध की साजिश रची थी। इसी तरह विलावल भुट्टों की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी 2008 में मुंबई हमले के समय सत्ता में थी।
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