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- केपी शर्मा ओली बोले- सत्ता में आए तो भारत से कालापानी, लिंपियाधुरा, लिपुलेख को 'वापस ले लेंगे'
- केपी शर्मा ने अपने पीएम कार्यकाल के दौरान जारी किया था विवादित नक्शा
- हम बातचीत के जरिए समस्याओं के समाधान के पक्ष में हैं- ओली
काठमांडू : नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और मुख्य विपक्षी दल सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष के. पी. शर्मा ओली ने शुक्रवार को वादा किया कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वह भारत से कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख क्षेत्रों को बातचीत के जरिए वापस ले लेंगे। लिपुलेख दर्रा कालापानी के पास एक सुदूर पश्चिमी बिंदु है, जो नेपाल और भारत के बीच एक विवादित सीमा क्षेत्र है।
बातचीत के जरिए लेंगे वापस
भारत और नेपाल दोनों कालापानी को अपने क्षेत्र के अभिन्न अंग के रूप में दावा करते हैं। भारत जहां उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले जिले के कालापानी पर दावा करता है तो नेपाल धारचूला जिले के हिस्से पर दावा करता है।काठमांडू से 160 किलोमीटर दक्षिण में चितवन में नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के 10वें आम सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए ओली ने दावा किया कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में वापस आती है तो वह 'लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख जैसे विवादित क्षेत्रों को बातचीत के माध्यम से वापस ले लेगी।'
ऐसे तनावपूर्ण हो गए थे संबध
उन्होंने कहा, 'हम बातचीत के जरिए समस्याओं के समाधान के पक्ष में हैं, न कि पड़ोसियों से दुश्मनी के जरिए'। ओली ने विश्वास जताया कि सीपीएन-यूएमएल अगले साल होने वाले आम चुनाव में सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरेगा। आपको बता दें कि 8 मई, 2020 को भारत द्वारा उत्तराखंड के धारचूला के साथ लिपुलेख दर्रे को जोड़ने वाली रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबी सड़क खोलने के बाद द्विपक्षीय संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। नेपाल ने सड़क के उद्घाटन का विरोध करते हुए दावा किया कि यह उसके क्षेत्र से होकर गुजरती है।
नेपाल ने की थी ऐसी हरकत
कुछ दिनों बाद, नेपाल लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को अपने क्षेत्रों के रूप में दिखाते हुए एक नया नक्शा लेकर आया। भारत ने इस कदम पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। पिछले साल जून में, नेपाल की संसद ने देश के नए राजनीतिक मानचित्र को मंजूरी दी, जिसमें उन क्षेत्रों को दर्शाया गया है, जो भारत के अधीन आते हैं। नेपाल द्वारा नक्शा जारी करने के बाद, भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे 'एकतरफा कार्रवाई' बताया और काठमांडू को आगाह किया कि क्षेत्रीय दावों का ऐसा 'कृत्रिम विस्तार' उसे स्वीकार्य नहीं होगा।