- कालापानी इलाके में नेपाली नागरिकों का अवैध प्रवेश
- पिथौरागढ़ जिला प्रशासन ने नेपाली प्रशासन के सामने मुद्दा उठाया
- नेपाल ने सुगौली संधि का दिया हवाला
नई दिल्ली। नेपाल इन दिनों भारत से टकराव को न्यौता दे रहा है। कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को अपने नक्शे में शामिल करने के बाद अब वो नेपाली नागरिकों को कालापानी इलाके में भेज रहा है। नेपाल की इस हरकत पर भारत की तरफ से कड़ा ऐतराज जताया गया है। लेकिन नेपाल ने सुगौली संधि का हवाला देते हुए कहा कि कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख उस संधि के हिसाब से नेपाल का हिस्सा है, यदि नेपाली नागरिक उस इलाके में जाते हैं तो नियमों का उल्लंघन नहीं है।
कालापानी इलाके में नेपाली नागरिकों का घुसपैठ
भारत ने नेपाली नागरिकों को कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख में अवैध तरीके से घुसने पर रोक लगाने की मांग की है। इस सिलसिले में धारचूला के एसडीएम ने कुछ दिन पहले नेपाली प्रशासन को एक पत्र लिखा था। लेकिन जो जवाब आया वो हैरान करने वाला था। नेपाल के धारचुला इलाके के मुख्य जिला अधिकारी ने अपने पत्र में दावा किया कि कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा नेपाली इलाके हैं।
नेपाली प्रशासन ने सुगौली संधि का दिया हवाला
नेपाली प्रशासन की तरफ से कहा गया है कि अगर सुगौली संधि के आर्टिकल 5, नक्शे और ऐतिहासिक साक्ष्यों को देखें तो कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख नेपाली क्षेत्र है लिहाजा भारत इन इलाकों में नेपाली लोगों के प्रवेश पर रोक नहीं लगाए। नेपाली इलाकों में जाने के लिए किसी नागरिक को दस्तावेज की जरूरत कहां है। इससे पहले 14 जुलाई को भारतीय अधिकारी अनिल कुमार शुक्ला ने एक ईमेल भेजकर नेपाली लोगों की अवैध घुसपैठ पर रोक लगाने के लिए कहा था।
भारत ने नेपाली नागरिकों के प्रवेश को बताया अवैध
भारत की तरफ से तर्क दिया गया है कि इस तरह की अवैध घुसपैठ से दोनों देशों के लिए संकट का निर्माण होता है। भारत ने साफ किया है कि अगर नेपाली नागरिक भारतीय इलाके की तरफ आते हैं तो उसकी जानकारी देनी चाहिए। नेपाल ने अपने नए नक्शे में नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा के कुल 395 वर्ग किलोमीटर के भारतीय इलाके पर अपना दावा किया है। लेकिन भारत ने साफ कर दिया है कि नेपाल के नए नक्शे का कोई आधार नहीं है।
1815 में नेपाली राजा और ईस्ट इंडिया के बीच समझौता
1814-16 के दौरान ईस्ट इंडिया और और नेपाल के बीच युद्ध हुआ था उसके बाद 2 दिसम्बर 1815 को बिहार के सुगौली में नेपाल की ओर से राज गुरु गजराज मिश्र और कंपनी ओर से लेफ्टिनेंट कर्नल पेरिस ब्रेडशॉ हस्ताक्ष्रर किये। 4 मार्च 1816 काे इस समझौते पर अंतिम मुहर के साथ इसे अमल में लाया गया। इस संधि के अनुसार नेपाल के कुछ हिस्सों को ब्रिटिश भारत में शामिल करने के साथ काठमांडू में एक ब्रिटिश प्रतिनिधि की नियुक्ति शामिल थी। इसके साथ ब्रिटेन की सैन्य सेवा में गोरखाओं को भर्ती करने की अनुमति दी गई। संधि में ये साफ था कि नेपाल अपने खुद के लिए किसी सेवा में अमेरिकी या यूरोपीय कर्मचारी को नियुक्त नहीं कर सकता है।