- अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ ने चीन में मुसलमानों के साथ ज्यादती का मुद्दा फिर उठाया है
- उन्होंने इसे सदी का कलंक करार दिया और हॉन्कॉन्ग के मसले पर भी चीन को आड़े हाथों लिया
- वहीं, चीन ने कहा है कि वह धौंस में नहीं आएगा और 'दुर्भावनापूर्ण लांछन' के खिलाफ पलटवार करेगा
वाशिंगटन : चीन के खिलाफ हमलावर अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ ने एक बार फिर हॉन्गकॉन्ग को लेकर बीजिंग को घेरा है। उन्होंने कहा कि चीन में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पाटी जहां हॉन्गकॉन्ग में स्वतंत्रता का हनन कर रही है, वहीं ताइवान की स्वतंत्रता के लिए भी यह एक बड़ा खतरा है। उन्होंने देश के पश्चिमी हिस्से में चीनी मुसलामनों के साथ ज्यादती का मसला भी उठाया और इसे 'सदी का कलंक' करार दिया।
'हॉन्गकॉन्ग में स्वतंत्रता का दमन'
माइक पॉम्पिओ ने कहा, 'आज चीनी कम्युनिस्ट पार्टी हॉन्गकॉन्ग में स्वतंत्रता का दमन कर रही है, स्वतंत्र ताइवान को भी धमका रही है और वैश्विक संचार नेटवर्क पर हावी होने की कोशिश कर रही है।' चीन में मुसलमानों की खराब स्थिति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, 'कुछ सप्ताह पहले मैंने कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा पश्चिमी चीन में चीनी मुसलमानों के जबरन सामूहिक गर्भपात और नसबंदी के बारे में एक रिपोर्ट पढ़ी। ये कुछ सर्वाधिक जघन्य मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में से हैं। यह सदी के कलंक जैसा है।'
'हम धौंस में नहीं आएंगे'
वहीं, बढ़ती तल्खी के बीच चीन ने कहा है कि वह विश्व की शीर्ष प्रौद्योगिकी ताकत के तौर पर अमेरिका की जगह लेने या उससे टकराने की कोशिश नहीं कर रहा है और किसी भी तरह के धौंस में नहीं आएगा। विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने यह भी कहा कि वह अमेरिका की ओर से लगाए जाने वाले 'दुर्भावनापूर्ण लांछन' के खिलाफ पलटवार करेगा। चीन ने जोर देकर कहा कि उसकी मुख्य चिंता अपने नागरिकों की आजीविका बेहतर करना और वैश्विक शांति एवं स्थिरता को कायम रखना है।
अमेरिका-चीन में बढ़ी तनातनी
यहां उल्लेखनीय है कि बीते कुछ समय में चीन और अमेरिका के बीची तनाव बढ़ा है। दोनों देशों के बीच व्यापार सहित कई मुद्दों पर टकराव की स्थिति बनी हुई है। दुनियाभर में कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच अमेरिका के तेवर चीन के प्रति और हमलावर हुए हैं, जिसके लिए वह बीजिंग को जिम्मेदार ठहराता रहा है। वहीं, दक्षिण चीन सागर में बीजिंग के बढ़ते दखल को लेकर भी अमेरिका लगातार चीन के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाए हुए है।
हॉन्गकॉन्ग पर विवाद
चीन और अमेरिका के संबंधों में तल्खी जून के आखिर में चीनी संसद द्वारा हॉन्गकॉन्ग के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून पारित किए जाने के बाद भी बढ़ी है, जिसे ब्रिटेन ने चीन को 1997 में सौंपा था। तब हॉन्गकॉन्ग के लिए कुछ ऐसे कानून बनाए गए थे, जिसके तहत यहां के लोगों को विशेष तरह की आजादी दी गई थी, जो चीन के लोगों को भी हासिल नहीं है। अब चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति ने सर्वसम्मति से जिस कानून को पारित किया है, उससे हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता में कटौती होगी, जिसकी गिनती दुनिया के कुछ प्रमुख वित्तीय केंद्रों में की जाती है।
अमेरिका का अहम फैसला
चीन का कहना है कि इस कानून को आतंकवाद, अलगाववाद और विदेशी ताकतों के साथ मिलीभगत से निपटने के लिए बनाया गया है। इस कानून पर चर्चा शुरू होने के बाद से ही जहां हॉन्गकॉन्ग में कई बार लोकतंत्र समर्थकों का प्रदर्शन देखा गया है, वहीं इस कानून के चीनी संसद से पारित हो जाने के बाद अब अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों के साथ चीन का टकराव भी बढ़ गया है, जिनके व्यापक आर्थिक हित हॉन्गकॉन्ग में हैं। चीनी संसद से इस कानून के पारित होने के बाद अमेरिका ने हॉन्गकॉन्ग को आर्थिक मामलों में प्राथमिकता देने को खत्म करने का भी फैसला लिया है।