- 31 अगस्त को मिखाइल गोर्बाचेव का हो गया है निधन
- सोवियत संघ के टूटने के लिए जिम्मेदार ठहराए जाते रहे हैं मिखाइल गोर्बाचेव
- मिखाइल गोर्बाचेव की नीतियों के कारण शीत युद्ध हुआ था खत्म
Mikhail Gorbachev: मिखाइल गोर्बाचेव, एक ऐसा नेता जिसके शासन में सख्ती नहीं बल्कि हरेक के लिए जगह थी, जो लोकतंत्र का हिमायती था और अभिव्यक्ति का समर्थक था। जिसने कई ऐतिहासिक काम किए, लेकिन आज वो अपने ही देश में 'विलेन' के तौर पर याद किए जाते हैं।
पुतिन से उलट
मिखाइल गोर्बाचेव जहां विपक्ष से लेकर हर आवाज को तरजीह देते थे या उसके समर्थक थे, उसके ठीक उलट वर्तमान रूसी राष्ट्रपति पुतिन हैं। पुतिन के बारे में कहा जाता है कि जिन्होंने उनके खिलाफ बोला वो किसी न किसी तरह से शांत हो गया। कई बार उनपर विपक्षी नेताओं के मरवाने के आरोप भी लग चुके हैं। मिखाइल गोर्बाचेव से भी उनके रिश्ते ठीक नहीं थे, पुतिन की नीतियों के मिखाइल गोर्बाचेव घोर आलोचक थे। मिखाइल युद्ध से ज्यादा शांति में विश्वास करते थे और इसी विश्वास की विरासत आज भी रूसी राष्ट्रपति पुतिन को जरूर डराती होगी। हालांकि आज मिखाइल की सोच वाले लोगों की संख्या रूस में कम ही है, लेकिन आज भी वो अपनी उपस्थित दर्ज कराते रहते हैं।
शीत युद्ध खत्म
मिखाइल गोर्बाचेव जब सोवियत संघ के राष्ट्रपति बनें तो शीत युद्ध चरम पर था। पूरी दुनिया इस युद्ध की चपेट में थी। गोर्बाचेव ने सबसे पहले इसी शीत युद्ध को खत्म करने का काम किया। अमेरिका से समझौता किया, बर्लिन की दीवार जब गिराई गई तो उसमें भी मिखाइल गोर्बोचेव की नीतियां समर्थक रहीं थीं। अफगानिस्तान से सोवियत सैनिकों की वापसी हो गई। कुछ ही सालों में गोर्बोचेव ने वो कर दिखाया जिससे दुनिया में शांति बहाल होने में मदद मिली। इन्हीं सब कारणों के कारण उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार मिला।
नायक से खलनायक
मिखाइल गोर्बाचेव 'ग्लासनोस्ट' (खुलापन) और 'पेरेस्त्रोइका' (पुनर्गठन) की नीतियों पर चलते थे। उन्होंने इसे सोवियत संघ में लागू कर दिया। इसकी वजह से अर्थव्यवस्था पटरी पर आने लगी, राजनीति कैदियों को रिहा कर दिया गया। चुनाव होने लगे, लोगों और विपक्ष की आवाज सुनी जाने लगी। यहां तक तो सब ठीक था, लेकिन हुआ यूं कि जहां तानाशाही सिस्टम से पहले आवाजें दबीं थीं, वो अब इस खुलेपन में सामने आने लगीं, विरोध होने लगा और सोवियत संघ टूट गया। गोर्बाचेव के खिलाफ तख्तापलट की कोशिश भी हुई। जो गोर्बाचेव पूरी दुनिया के लिए नायक थे, शांति के दूत थे, उन्हें अब अपने ही लोगों की नफरत का शिकार होना पड़ा।
चुनाव में बुरी तरह पराजित
सोवियत संघ के टूटने और तख्तापलट की कोशिशों ने गोर्बाचेव को अंदर से तोड़ दिया। उन्होंने इस्तीफा दे दिया और चुनावी मैदान में उतर गए, लेकिन तबतक खेल हो चुका था, रूस का नायक, अब खलनायक बन चुका था। चुनाव में उन्हें बहुत ही कम वोट मिले और वो सातवें स्थान पर रहे। एक समय दुनिया का सबसे ताकतवर नेता गुमनामी में धीरे-धीरे खोने लगा। आज रूस में बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो गोर्बाचेव के समर्थक हैं या उन्हीं की तरह सोचते हैं।
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