Myanmar : म्यांमार में तख्तापलट के बाद इस देश में लोकतंत्र समर्थकों के उत्पीड़न एवं मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं लगातार सामने आई हैं। अब यहां के सैन्य शासन जुंटा ने कहा है कि उसने लोकतंत्र समर्थक चार एक्टिविस्ट को मौत के घाट उतार दिया है। जुंटा का कहना है कि इन चारों लोगों पर 'आतंकवादी गतिविधियों' के लिए लोगों की मदद करने एवं उन्हें उकसाने का आरोप था। म्यांमार में एक्टिविस्टों के खिलाफ इस तरह की कठोर कार्रवाई दशकों बाद हुई है।
जुंटा की दुनिया भर में आलोचना एवं निंदा
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को मौत की सजा देने पर जुंटा की दुनिया भर में आलोचना एवं निंदा हो रही है। चार लोग जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई उनें पूर्व नेता भी शामिल हैं। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक इन एक्टिविस्टों के खिलाफ बंद दरवाजे के भीतर सुनवाई हुई और इन्हें गत जनवरी में सजा दी गई। बता दें कि दक्षिण पूर्व एशिया के इस देश में एक फरवरी 2001 को सेना ने चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर दिया। सेना का आरोप है कि चुनाव में धांधली की वजह से सेना के समर्थन वाली राजनीतिक पार्टी की हार हुई।
यह अत्यंत पीड़ादायक घटना - NUG
इस तख्तापलट के खिलाफ लोग सड़कों पर आ गए। म्यांमार के कई शहरों में सेना के साथ लोकतंत्र समर्थकों की हिंसक झड़पें हुईं। इन झड़पों में बड़ी संख्या में लोगों के हताहत होने की खबरें सामने आईं। सेना का विरोध करने वाले लोगों को हिरासत में रखा गया है। देश में अपनी कार्रवाई को लेकर जुंटा हमेशा सवालों के घेरे में रहा है। जुंटा पर आरोप लगे हैं कि उसने लोकतंत्र की मांग करने वाले नेताओं एवं लोगों का सख्ती से दमन किया है। वहीं, म्यांमार नेशनल यूनिटी गवर्न्मेंट (एनयूजी) ने चार लोगों के मारने की घटना की निंदा की है। एनयूजी प्रेसिडेंट कार्यालय के प्रवक्ता क्याव जा ने रॉयटर्स को भेजे संदेश में कहा कि 'यह अत्यंत पीड़ादायक घटना है...हम जूंटा की क्रूरता की निंदा करते हैं...इस क्रूरता के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जुंटा को सजा देनी चाहिए।'
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जुंटा के प्रवक्ता ने सजा का बचाव किया
म्यांमार के समाचार पत्र ग्लोबल न्यू लाइट के मुताबिक मौत के घाट उतारे गए लोगों में लोकतांत्रिक नेता क्याय मिन यू (जिम्मी), पूर्व सांसद एवं हिप हॉप कलाकार फ्यो जेया थॉ शामिल हैं। पिछले महीने जुंटा के प्रवक्ता जा मिन टुन ने सजा की इस कार्रवाई का बचाव किया। उन्होंने कहा है कि इस तरह की सजा कई देशों में दी जाती है। सेना की इस कार्रवाई को जायज ठहराते हुए प्रवक्ता ने कहा कि 'आप यह कैसे कह सकते हैं कि यह न्याय नहीं है? जब आवश्यक हो तो इस तरह के जरूरी कदम कदम उठाने पड़ते हैं।'