जकार्ता : एक भिक्षु को शर्मिंदा करते हुए उन्हें एक मेंढक की तरह चलने पर मजबूर किया, एक लेखा अधिकारी को बिजली के झटके दिए गए और एक कलाकार के सिर पर तब तक चोट की गई जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गया। म्यांमा में इस साल फरवरी में तख्तापलट किए जाने के बाद से सेना उन लोगों को यातनाएं दे रही है जिन्हें उसने देशभर से बड़े ही सुनियोजित तरीके से हिरासत में लिया था।
म्यांमा में सेना ने युवाओं और लड़कों समेत हजारों लोगों को अगवा किया, शवों और घायलों का इस्तेमाल आतंक फैलाने के लिए किया और वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के दौरान चिकित्साकर्मियों पर जानबूझकर हमले किए। फरवरी से अब तक सुरक्षा बलों ने 1,200 से अधिक लोगों की हत्या की जिनमें से अनुमानत: करीब 131 लोगों को यातनाएं देकर मार डाला। सेना द्वारा प्रताड़ित किए गए कुछ लोगों की कहानियां:
मेंढ़क की तरह चलने पर मजबूर किया
सेना की पकड़ से भागते समय 31 वर्षीय भिक्षु को गोली मारी गई, उन्हें हथकड़ी लगाई गई और डंडों तथा राइफलों से पीटा गया। सुरक्षा बलों ने उनके सिर, छाती और पीठ में लात मारी। उन्होंने आपराधिक इरादे के सबूत बनाने के लिए भिक्षु और अन्य प्रदर्शनकारियों की गैसोलीन की बोतलों के साथ फोटो खिंचवाई। सैनिकों ने भिक्षु को आम लोगों जैसे कपड़े पहनने को मजबूर किया और उन्हें मांडले पैलेस में बनाए गए उत्पीड़न केंद्र भेज दिया।
भिक्षु कहते हैं, 'वह पूछताछ केंद्र किसी नर्क की तरह था।' भिक्षु को मेंढ़क की तरह चलने पर मजबूर किया गया, उन्हें ऐसे बंदीगृह में रखा गया जहां शौचालय नहीं था। कैदियों को एक कोने में पेशाब करना पड़ता था और प्लास्टिक की थैलियों में मल त्याग करना होता था। छह दिन बाद भिक्षु को पुलिस थाने भेजा गया, जहां उन्हें 50 अन्य कैदियों के साथ एक काल कोठरी में रखा गया। वहां भी यातनाएं जारी रहीं।
लेखापाल की लात-घूंसों से पिटाई
पुलिस थाने में 21 साल के लेखापाल की पूछताछ शुरू हुई, उसे लात घूंसों से पीटा गया उसके सिर पर मारा गया। फिर उसकी आंखों पर पट्टी बांधकर उसे यंगून के पूछताछ केंद्र ले जाया गया। एक सैनिक ने उससे पूछा कि श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों से उसका क्या संबंध है। जब उसने किसी भी संबंध से इनकार किया तो उसे फिर बुरी तरह से पीटा गया। सैनिकों ने पीवीसी पाइप से उसकी पीठ पर मार की और छाती पर लात मारी।
वह उसे शरीर के केवल उन्हीं हिस्सों पर मारते थे, जिन्हें कपड़ों से छिपाया जा सके। वह बेहोश हो चुका था। उसके सिर पर बर्फ का पानी डालकर उसे जगाया गया। इसके बाद उसे बिजली के झटके दिए गए। उसे पूछताछ केंद्र से तब जाकर छोड़ा जब उसके परिजनों ने अधिकारियों को पैसे दिए। लेकिन इसके तुरंत बाद सैनिक उसे एक अन्य पूछताछ केंद्र ले गए, जहां उसे बुरी तरह से फिर मारा पीटा गया और गहरे काले अंधेरे कमरे में रखा गया। आखिरकार उसे उस बयान पर हस्ताक्षर करने पड़े जो पहले से तैयार किया जा चुका था। लेखापाल के पिता ने फिर से पैसे दिए जिसके बाद उसे छोड़ा गया।
कलाकार की बेहोश होने तक पिटाई
एक युवा कलाकार के अनुभव भी कुछ ऐसे ही रहे। सुरक्षा बलों ने एक प्रदर्शन के दौरान 21 साल के कलाकार को गिरफ्तार किया और उसके सिर पर तब तक मार की जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गया। जब वह जागा तो उसने सुना की एक सैनिक कह रहा था, 'तीन लड़कों को मौत के घाट उतार चुका हूं।' कलाकार बताता है, 'वह हमें जान से मारने वाले थे।' लेकिन तभी स्थानीय पुलिस वहां आ गई और उसने सैनिकों से कहा कि वह इस युवक की हत्या नहीं कर सकते हैं।
इसके बाद कलाकार को पुलिस थाने और उसके बार यंगून के पूछताछ केंद्र ले जाया गया जहां उसे चार दिन रखा गया। उसने कहा, 'पूछताछ केंद्र जाने के बाद मैंने कोशिश की कि कोई उम्मीद न रखूं।' वहां एक पुलिस अधिकारी ने उसे बैठने को कहा। जब वह बैठ गया तो एक सैनिक ने उससे कहा कि वह क्यों बैठा और इसके बाद उसे पीटा। उस पूरे कमरे में खून की बू आ रही थी। रात के वक्त लोगों को पीटने की आवाजें आती थीं।
उसने कहा, 'जब भी दरवाजा खोलने की आवाज आती थी तो कोठरी के सभी लोग चौकन्ने हो जाते, सोचते कि अब पूछताछ के लिए किसे ले जाया जाएगा। कुछ लोग तो कभी लौटकर आए ही नहीं।' चार दिन बाद, उसे एक जेल में भेजा गया जहां उसे तीन महीने तक रखा गया। उसके बाद उसे छोड़ दिया गया।
तख्तापलट का विरोध करने वाले छात्र को यातना
सैन्य तख्तापलट का विरोध कर रहे लोगों के साथ तीन मार्च को 23 वर्षीय छात्र को भी गिरफ्तार किया गया था। वह भी अन्य लोगों की तरह ही यातनाओं और प्रताड़नाओं से गुजरा। छात्र कहता है, 'यह बहुत ही सुनियोजित तरीके से किया गया, इसका एक पैटर्न है।' वह करीब चार महीने उनकी गिरफ्त में रहा। उसे वहां एक बुजुर्ग व्यक्ति मिला, जिसकी एक आंख सैनिकों की मारपीट के कारण खराब हो चुकी थी। छात्र को 30 जून को छोड़ा गया।