- 70 साल पुराने निजाम फंड केस में भारत को मिली जीत भारत को मिले 325 करोड़ रुपये
- भारत-पाक के बीच निजाम के खजाने को लेकर लंदन में चल रहा था मुकदमा
- भारत को केस लड़ने में खर्च हुए पैसे की 65 फीसदी रकम पाकिस्तान को चुकानी होगी
ब्रिटेन: कंगाली से जूझ रहे पाकिस्ताने के लिए एक और बुरी खबर आई है। लंदन में चल रहे निजाम फंड मामले में भारत ने न केवल पाकिस्तान को मात दी है बल्कि केस में खर्च हुई रकम भी पाकिस्तान को चुकानी होगी। हैदराबाद के निजाम के खजाने को भारत ने जीत लिया है जिससे 70 साल इस पुराने केस में भारत को 325 करोड़ रुपये मिले हैं। वहीं इस मुकदमे के दौरान खर्च हुई रकम का 65 फीसदी हिस्सा भी पाकिस्तान को देना पड़ा है जो लगभग 26 करोड़ रुपये है।
क्या है केस
18 सिंतबर 1948 को हैदराबाद का भारत में विलय हुआ था। हैदराबाद के आखिरी निजाम ने पाकिस्तान के लिए 10 लाख से अधिक पाउंड्स की रकम ब्रिटेन स्थित पाकिस्तानी राजदूत हबीब इब्राहिम रहीमतुल्ला को ट्रांसफर की थी। कहा जाता है कि निजाम का झुकाव उस समय पाकिस्तान की तरफ ज्यादा था। बाद में यह रकम नेशनल वेस्टमिंस्टर बैंक की लंदन शाखा में जमा हो गई।
निजाम ने तब दी थी सफाई
जैसे ही तत्कालीन भारत सरकार को जब इसका पता चला तो उन्होंने तुरंत निजाम से पूछताछ की क्योंकि भारत में विलय के बाद निजाम ऐसा नहीं कर सकते थे। तब निजाम ने अपनी सफाई में कहा था कि यह रकम उनके मंत्री ने उनकी जानकारी के बगैर ट्रांसफर कर दी थी। बाद में फिर मामला कोर्ट में चले गया।
बढ़ते- बढ़ते यह रकम तकरीबन 325 करोड़ रुपये हो गई थी। आजादी के बाद पाकिस्तान ने इस पर अपना दावा ठोक दिया था। कई वर्षों की सुनवाई के बाद पिछले साल अक्टूबर में इस पर फैसला आया था औ पाकिस्तान को हार मिली थी। लंदन की कोर्ट ने भारत और मुकर्रम जाह (हैदराबाद के 8वें निजाम) के पक्ष में फैसला सुनाया था।
मुकदमे का खर्च भी चुकाया
बैंक पहले ही यह पैसा कोर्ट को ट्रांसफर कर चुका है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक पाकिस्तान ने भी भारत सरकार को 2.8 मिलियन (करीब 26 करोड़ रुपये) चुकाए हैं। यह भारत द्वारा लंदन हाई कोर्ट में इस केस पर आए खर्च की 65 फीसदी लागत है। खबर के मुताबिक पाकिस्तान ने पूरा पैसा चुका दिया है।'
देखा जाय तो यह केस सिर्फ 325 करोड़ रुपयों का नहीं था बल्कि एक देश के स्वाभिमान और सम्मान की थी एक ऐसा मुकदमा था जो भारत और पाकिस्तान की धरती से बहुत दूर लड़ा जा रहा था। वो केस दोनों देशों के लिए अहम था। लेकिन पहले की ही तरह पाकिस्तान को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी।