- बढ़ती आबादी पर रोक के लिए चीन ने लाया था 'वन चाइल्ड पॉलिसी'
- जनसंख्या से जुड़े चीन में जो आंकड़े आए हैं उसने कम्यूनिस्ट सरकार के होश उड़ा दिए हैं
- चीन में घटती जन्मदर और बूढ़ी होती आबादी ने उसके लिए एक बड़ा संकट उत्पन्न कर दिया है
नई दिल्ली: चीन क्या संकट के रास्ते पर बढ़ रहा है। यह सवाल उसकी तीन बच्चों की नीति की घोषणा होने के बाद उठने लगे हैं। सवाल है कि 1979 में 'वन चाइल्ड पॉलिसी' को सख्ती से लागू करने वाली कम्यूनिस्ट सरकार को तीन बच्चों की नीति के साथ आने की जरूरत क्यों पड़ी। क्या उसकी एक बच्चे की नीति के दुष्परिणाम अब सामने आने लगे हैं? क्या एक बच्चे की नीति को लागू करना उसकी एक बड़ी चूक साबित हुई है? बच्चे पैदा करने की अपनी नीति के जरिए क्या वह भूल सुधार की कोशिश कर रहा है? इन सब सवालों के जवाब हम यहां जानने की कोशिश करेंगे।
बढ़ती आबादी पर रोक के लिए लाया 'वन चाइल्ड पॉलिसी'
1979 से पहले चीन की जनसंख्या तेजी के साथ बढ़ रही थी। चीन को कम्यूनिस्ट सरकार को ऐसा लगा कि आबादी तेज गति से बढ़ती रही तो उसके यहां जनसंख्या विस्फोट हो जाएगा। जनसंख्या विस्फोट होने पर कम्यूनिस्ट सरकार को चीजें अपने नियंत्रण से बाहर जाने का खतरा महसूस होने लगा। इस पर रोक लगाने के लिए उसने 1979 में एक बच्चे की नीति लागू कर दी और इसे सख्ती से लागू कराया। चीन में इस नीति का अगर कोई उल्लंघन करता तो उसे कड़ी सजा दी जाती थी। दो या उससे अधिक बच्चे पैदा करने पर लोगों की नौकरियां जाने लगीं। उन पर भारी जुर्माना लगाया गया। यहां तक कि महिलाओं का उठाकर उनका गर्भपात और पुरुषों की नसबंदी की गई।
कम हो रही युवा पीढ़ी, बढ़ रहे बुजुर्ग
इस सख्ती का नतीजा और दुष्परिणाम अब चीन के सामने आने लगे हैं। जनसंख्या से जुड़े चीन में जो आंकड़े आए हैं उसने कम्यूनिस्ट सरकार के होश उड़ा दिए हैं। चीन में घटती जन्मदर और बूढ़ी होती आबादी ने उसके लिए एक बड़ा संकट उत्पन्न कर दिया है। चीन में युवाओं की संख्या कम और बुजुर्गों की ज्यादा होने लगी है। जन्मदर में इसी तरह की गिरावट यदि आगे भी जारी रही तो चीन में 2050 तक बुजुर्गों की आबादी युवाओं के बराबर हो जाएगी। यही डर चीन को सता रहा है। चीन की 'वन चाइल्ड पॉलिसी' के दुष्परिणाम सामाजिक और आर्थिक संकट के रूप में सामने आने लगे हैं। वह 'डिक्लाइनिंग पापुलेशन' की तरफ बढ़ने लगा है। जापान, रूस, इटली, बुल्गारिया, लातविया, यूक्रेन, मालदोवा, क्रोएशिया और लिथुयानिआ जैसे देश 'डिक्लाइनिंग पापुलेशन' का सामना कर रहे हैं। 'डिक्लाइनिंग पॉपुलेशन' में बुजुर्गों की संख्या युवा पीढ़ी से ज्यादा हो जाती है।
बुजुर्गों की परिवार एवं सरकार पर बढ़ेगी निर्भरता
दरअसल, विकसित देशों में लाइफ एक्सपेंटेंसी दर गरीब देशों और अविकसित देशों से से ज्यादा होती है। गरीब और भारत जैसे विकास कर रहे देशों में यह कम होती है। यानि एक आदमी 60 साल के बाद रिटायर होने के बाद औसतन 65 से 70 साल के बीच गुजर जाता है। सभी देशों में 60 से ऊपर वाली आबादी को 'नॉन वर्किंग फोर्स' माना जाता है। इनके बारे में माना जाता है कि यह काम नहीं करती है और एक तरह से परिवार एवं सरकार पर इनके भरण-पोषण एवं देखभाल की जिम्मेदारी होती है। वहीं, विकसित देशों में लाइफ एक्सपेंटेंसी 85 से 90 साल तक पहुंच जाती है। यानि कि विकसित देश में 60 साल का बूढ़ा व्यक्ति यदि 90 साल तक जिंदा रहता है तो वह 30 साल तक परिवार और सरकार पर निर्भर रहेगा। ऐसी आबादी ज्यादा होगी तो सरकार और युवा पीढ़ी पर उसका बोझ भी ज्यादा होगा।
एक से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं कर रहे युवा
माना जा रहा है कि 2022 तक चीन में बुजर्गों की आबादी बढ़कर कुल जनसंख्या की 20 प्रतिशत हो जाएगी। चीन की स्थिति यह है कि आने वाले वर्षों में युवा पीढ़ी की आबादी घटती जाएगी और बुजुर्गों का बोझ उस पर बढ़ता जाएगा। चीन ने 2016 में 'टू चाइल्ड पॉलिसी' को लागू किया। इसके बावजूद लोग एक से ज्यादा बच्चे पैदा करने से परहेज कर रहे हैं। मान लीजिए दो शादी-शुदा जोड़े ने एक-एक बच्चा (एक ने लड़का और एक ने लड़की) पैदा किया है। दोनों की शादी होती है तो इस नए जोड़े पर कम से कम चार बुजुर्गों के देखभाल की जिम्मेदारी होगी। यानि कमाने वाले कम और खाने वाले ज्यादा। आम तौर पर यह देखने में आया है कि अकेले बच्चे वाले परिवारों की शादियां ज्यादा सफल नहीं होतीं। ये अपने घरों को लाडले होते हैं। लाडले होने की जगह से इनकी आपस में नहीं बनती और मनमुटाव होने पर ये जल्द ही अपने रास्ते अलग कर लेते हैं। चीन में शादियां टूटने के मामले भी हाल के वर्षों में तेजी से सामन आए हैं।
चीन में सामाजिक संकट बढ़ा, शादियों में भरोसा टूटा
'वन चाइल्ड पालिसी' से चीन में सामाजिक संकट बढ़ा है। चीन में स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग बढ़ने से कॉस्ट ऑफ लिविंग बहुत ज्यादा हो गई है। आज की युवा पीढ़ी को फ्लैट, गाड़ी, क्रेडिट कार्ड, अन्य खर्चों को पूरा करना होता है। खर्चे और आमदनी एवं कमाई में तालमेल बिठाने के लिए उन्हें अच्छी नौकरी की जरूरत है। अच्छी कमाई करने का उन पर दबाव है। यही कारण है कि चीन में युवा शादी की जगह लिव इन रिलेशन को तरजीह देने लगे हैं। शादी अगर हो भी जा रही है तो वे बच्चे पैदा करने से बच रहे हैं। वहां शादी में भरोसा टूटा है। आज की युवा पीढ़ी (पुरुष और महिलाएं) अपने करियर को लेकर ज्यादा संवेदनशील हैं। एक बच्चा पैदा करने के बाद एक कामकाजी महिला के तीन से चार साल प्रभावित होते हैं। अगर वह एक के बाद एक तीन बच्चे पैदा करती है तो उसे कम से कम 10 साल घर पर बैठना पड़ सकता है।
भारत में 'हम दो हमारे दो' से आगे बढ़ने की जरूरत
चीन की देखा-देखी भारत में भी बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण लाने के लिए आवाजे उठती रही हैं। इंदिरा गांधी की सरकार ने यहां आबादी पर रोक लगाने के रास्ते पर आगे बढ़ी लेकिन बाद में उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। इसके बाद 'हम दो हमारे दो' का नारा लंबे समय तक चला। इस नारे का असर भी देखने को मिला। 1960 के समय भारत में एक परिवार में औसतन 5-6 बच्चे होते थे लेकिन इसके बाद के दशकों में जन्मदर घटता गया। भारत में जन्मदर घटकर 2.8 के आस-पास आ गई है। जबकि चीन में यह दर 1.3 के करीब है। विशेषज्ञ मानते हैं कि युवा पीढ़ी और बुजुर्ग की आबादी में तालमेल एवं संतुलन रखने के लिए किसी देश का जन्मदर 2 से ऊपर होना चाहिए।
महंगे श्रम की वजह से चीन से बाहर जाएंगी कंपनियां
चीन में युवा आबादी की कमी का असर उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है। चीन ने अपने सस्ते श्रम की उपलब्धता के चलते दुनिया भर की दिग्गज कंपनियों को अपने यहां आकर्षित किया। कम मजदूरी और कम प्रोडक्शन लागत की चाहत में दुनिया की कंपनियों ने चीन की तरफ रुख किया। विगत दशकों में विदेशी कंपनियों एवं चीन ने दोनों ने खूब पैसा बनाया लेकिन श्रम लागत बढ़ने की वजह से कंपनियां चीन को छोड़ भारत जैसे देशों जहां सस्ते मजदूर उपलब्ध हैं वहां आने लगी हैं। जाहिर है कि चीन में युवा पीढ़ी की संख्या कम होगी तो कामगार वर्ग को कंपनियों को ज्यादा वेतन देना होगा। इससे उनकी प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ेगी। प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ने पर बाजार में उनकी वस्तुएं ज्यादा महंगी होंगी। इससे मांग कम होगी। इसका असर यह होगा कि चीन में काम करने वाली कंपनियां भारत जैसे देशों में आना शुरू करेंगी।
चीन में एक बड़े संकट में उभर सकता है युवाओं का असंतोष
चीन से कंपनियां जाएंगी तो उसे युवाओं को रोजगार देने का संकट खड़ा होगा। बेरोजगारी और आर्थिक संकट की वजह से युवाओं में असंतोष फैलेगा। यह असंतोष देश को बड़े संकट की ओर ले जाएगा। चीन में विरोध-प्रदर्शन और आंदोलन नहीं कर सकते। लोगों की घुटन एवं निराशा बढ़ने पर वह क्रांति एवं विस्फोटक रूप घारण कर सकती है। रूस भी एक कम्यूनिस्ट देश है। जब तक उसकी आर्थिक संपन्नता बनी रही तब तक वह एक रहा लेकिन जैसे ही उसकी आर्थिक शक्ति कमजोर हुई वह 15 भागों में बंट गया। कम्यूनिस्ट सरकारें आर्थिक इंजन पर सवार होकर राज करती हैं। चीन भी ऐसा कर रहा है लेकिन जिस दिन उसका आर्थिक ताना-बाना कमजोर हुआ उस दिन से उसके पतन की उल्टी गिनती शुरू हो सकती है।