- रासायनिक हथियारों को बनाने के लिए खतरनाक चोकिंग एजेंट, ब्लिस्टरिंग एजेंट, ब्लड एजेंट, नर्व एजेंट, रॉयट कंट्रोल एजेंट का इस्तेमाल किया जाता है
- सबसे पहले रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल का उल्लेख 600 ईसा पूर्व मिलता है।
- रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल को रोकने के लिए केमिकल वेपंस कन्वेंशन के तहत पहला वैश्विक समझौता 1993 में हुआ।
Russia-Ukraine War: रूस और यूक्रेन के बीच पिछले 20 दिनों से युद्ध जारी है। रूस, लाख कोशिशों के बावजूद अभी तक यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा नहीं कर पाया है। लंबे खिंचते युद्ध के बीच अब यूक्रेन पर रासायनिक हमले का खतरा बढ़ गया है। बीते रविवार को रूसी विदेश मंत्रालय ने ट्वीट कर कहा कि अमेरिका और यूक्रेन एक गुप्त "सैन्य-जैविक कार्यक्रम" चलाने की तैयारी में हैं। जिसके बाद इन आरोपों पर NATO प्रमुख जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने एक इंटरव्यू में कहा है कि हो सकता है रूस, अमेरिका और यूक्रेन पर जैविक हथियारों के इस्तेमाल का आरोप लगाकर, रासायनिक हमले की तैयारी कर रहा है। इन आरोपों के बीच यही सवाल उठ रहा है कि अगर रूस-यूक्रेन युद्ध में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल हुआ तो क्या होगा ?
क्या होते हैं रासायनिक हथियार
ऑर्गेनाइजेशन फॉर द प्रॉहिबिशन ऑफ केमिकल वेपंस (OPCW) के अनुसार ऐसे हथियार जिनमें जहरीले रसायन का इस्तेमाल लोगों को मारने या नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है, वह रासायनिक हथियार कहलाते हैं। इन हथियारों को बनाने के लिए खतरनाक एजेंट का इस्तेमाल किया जाता है। जिन्हें चोकिंग एजेंट, ब्लिस्टरिंग एजेंट, ब्लड एजेंट, नर्व एजेंट, रॉयट कंट्रोल एजेंट कहा जाता है।
क्या करते हैं असर
ब्लिस्टरिंग एजेंट- इसमें सल्फर मस्टर्ड, नाइट्रोजन मस्टर्ड, लेवीसाइट और फॉस्जीन ऑक्जाइम शामिल हैं। ये आंखों, श्वसन अंगों को प्रभावित करते हैं। इससे घातक फफोले पड़ जाते हैं या शरीर में जलने जैसे घाव बन जाते हैं। इससे आदमी अंधा हो सकता है या मौत भी हो सकती है
नर्व एजेंट- इसे नर्व गैस भी कहते हैं। ये शरीर के नर्वस सिस्टम पर असर डालते हैं।
चोकिंग एजेंट- ये घातक रसायन तत्व श्वसन अंगों पर असर डालते हैं।
ब्लड एजेंट: ये केमिकल ब्लड सेल पर असर डालते हैं और शरीर में ऑक्सीजन ट्रांसफर को रोक देते हैं, जिससे व्यक्ति का दम घुट जाता है।
कब हुआ इस्तेमाल
साइंस हिस्ट्री के अनुसार सबसे पहले रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल का उल्लेख 600 ईसा पूर्व मिलता है। जब एथेनियन सेना ने किरहा की जल आपूर्ति को जहरीले हेलबोर पौधों से बाधित कर दिया था। इसके बाद से कई युद्धों में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल हो चुका है। आधुनिक दौर में प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटने की सेनाओं ने इसका इस्तेमाल किया। इस दौरान क्लोरीन, फॉस्जीन और सल्फर मर्स्टड गैसों जैसे केमिकल हथियार का इस्तेमाल किया गया था। जिसकी वजह से 90 हजार से एक लाख लोग मारे गए। और करीब 13 लाख लोग प्रभावित हुए।
इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने एशिया में मौजूद नाजी कंस्ट्रेशन कैंप में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया। हालांकि दूसरे हिस्सों में इसका इस्तेमाल नहीं हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ईरान-ईराक युद्ध और 2013 के सीरिया युद्ध में रासायनिक हथियार इस्तेमाल किए गए।
इस्तेमाल नहीं करने के लिए समझौता
रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल को रोकने के लिए केमिकल वेपंस कन्वेंशन के तहत पहला वैश्विक समझौता 1993 में हुआ। इस समझौते से युद्ध में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल, उनके डेवलपमेंट, उनके ट्रांसफर पर रोक लगा दी गई थी। ऑर्गेनाइजेशन फॉर द प्रॉहिबिशन ऑफ केमिकल वेपंस के अनुसार इस समझौते के तहत 193 सदस्य जुड़े हुए हैं। जिसमें रूस, अमेरिका, यूक्रेन भी शामिल हैं।
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