- अफगानिस्तान में तालिबान का पुराना क्रूर शासन का दौर लौटता प्रतीत होता है
- यहां अपहरण के चार आरोपियों के पुलिस फायरिंग में मारे जाने की सूचना है
- बताया जा रहा है कि बाद में तालिबान ने आरोपियों के शव चौराहे पर टांग दिए
काबुल : तालिबान ने एक दिन पहले ही संकेत दिया था कि यहां एक बार फिर अपराधों के लिए क्रूर सजाओं का दौर शुरू होने जा रहा है, ताकि कानून का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जा सके। इसके अगले ही दिन अफगानिस्तान के पश्चिमी शहर हेरात से ऐसी रिपोर्ट सामने आई है, जो इसकी तस्दीक करता है कि तालिबान के राज में क्रूर सजाओं का दौर लौट चुका है और इस सशस्त्र समूह ने अपने मौजूदा शासन के पुराने शासन से अलग होने का जो दावा किया था, वह भरोसेमंद नहीं है।
बताया जा रहा है कि तालिबान ने यहां अपहरण के आरोपों में चार लोगों को मौत की सजा दे दी और फिर उनके शवों को चौराहों पर टांग कर लोगों को यह संदेश दिया कि किसी तरह के आपराधिक कृत्य का अंजाम इसी तरह का होगा। तालिबान का यह कृत्य अफगानिस्तान में 1996-2001 के बीच के उसके पहले के शासन के दौरान की उसी क्रूरता की वापसी को दर्शाता है, जब अपराधियों को खुलेआम स्टेडियम में सजा दी जाती थी और उनके हाथ-पैर तक काट दिए जाते थे।
क्या है मामला?
'एसोसिएटेड प्रेस' की रिपोर्ट में एक प्रत्यक्षदर्शी के हवाले से कहा गया है कि चार शवों को मुख्य चौराहे पर लाया गया, जिनमें से एक को वहां टांग दिया गया, जबकि तीन अन्य को वे लोगों को चेतावनी के तौर पर सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए शहर के अन्य हिस्सों में ले गए। तालिबान ने यहां ऐलान किया कि इन चारों ने एक पिता-पुत्र का अपहरण कर लिया था, जिन्हें पुलिस ने क्रॉस-फायरिंग में छुड़ा लिया। चारों अपहरणकर्ता इसी क्रॉस- फायरिंग के दौरान मारे गए।
यह रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है, जबकि तालिबान के संस्थापक सदस्यों में से एक मुल्ला नूरुद्दीन तुराबी ने अफगानिस्तान में एक बार फिर फांसी और हाथ-पैर काट देने जैसे कठोर दंड का दौर लौटने की बात कही थी। अफगानिस्तान में तालिबान के 1990 के दशक के शासन के दौरान कठोर इस्लामिक कानून के प्रमुख पैरोकारों में रहे तुराबी ने कहा था, 'कोई हमें नहीं बताएगा कि हमारे कानून क्या होने चाहिए। हम इस्लाम का पालन करेंगे और हम कुरान पर अपने कानून बनाएंगे।'