- बूचा नरसंहार की तस्वीरें सामने आने के बाद भारत और चीन ने निष्पक्ष जांच की मांग की है।
- युद्ध अपराध की सुनवाई हेग स्थित इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में होती है।
- रूस इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट का सदस्य नहीं हैं। ऐसे में जांच प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
Russia-Ukraine War: यूक्रेन के बूचा शहर से आई दिल दहलाने तस्वीरों से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन निशाने पर हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने तो एक बार फिर कह दिया है कि पुतिन पर युद्ध अपराध का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। यही नहीं कल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने यहा तक कह दिया कि बूचा में जो कुछ भी हुआ है वह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे बड़ा नरसंहार है। और रूसी सेना को न्याय के कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए।
भारत-चीन ने भी निष्पक्ष जांच की मांग की
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के राजदूत टी. एस. तिरुमूर्ति ने यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में कहा कि भारत बूचा में हुई हत्याओं की निंदा करता है और एक निष्पक्ष जांच की मांग करता है। इसी तरह चीन ने भी बूचा में हुई हत्याओं की निंदा की है, साथ ही उसके लिए निष्पक्ष जांच की मांग की है। साफ है कि भारत और चीन ने रूस का नाम नहीं लिया है। ऐसे में अब यह इंटरनेशल क्रिमिनल कोर्ट की जिम्मेदारी है, कि पूरे मामले की जांच कर सही तथ्य सामने लाए। इस बीच अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन ने युद्ध अपराध की जांच के लिए सहयोग देने की भी बात कही है। फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुअल मैंक्रो ने कहा है कि वह जांच के लिए तकनीकी और विशेषज्ञों का सहयोग देने को तैयार हैं।
क्या होता है युद्ध अपराध
यूक्रेन ने 24 फरवरी को रूस के हमले के 2 दिन बाद 26 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में रूस के खिलाफ युद्ध अपराध को लेकर केस दायर किया था। इसमें यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने रूस को सैन्य कार्रवाई को तत्काल रोकने का आदेश देने के साथ, कोर्ट से रूस को नरसंहार के लिए जवाबदेह ठहराए जाने की अपील की थी। वहीं, रूस ने आम नागरिकों को निशाना बनाने के आरोपों से इनकार किया है।
युद्ध अपराध को परिभाषित करने वाले कानून जेनेवा कन्वेंशन कहलाते हैं। आम लोगों को बंधक बनाना, जानबूझ कर हत्या करना, प्रताड़ना या फिर युद्ध बंदियों के साथ अमानवीय व्यवहार और बच्चों को युद्ध में जाने पर मजबूर करना आदि युद्ध अपराध में शामिल है। जेनेवा कन्वेंशन के अब तक चार कन्वेंशन बनाए गए हैं। पहले तीन कन्वेंशन में युद्ध में लड़ने वाले सैनिकों और युद्ध बंदियों की सुरक्षा की बात की गई है। जबकि चौथे कन्वेंशन में युद्ध क्षेत्र में आम नागरिकों की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है।
इस न्यायालय में होती है युद्ध अपराध की सुनवाई
युद्ध अपराध की सुनवाई इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में होती है। जिसकी स्थापना 1998 में नीदरलैंड्स के हेग में हुई थी। यह युद्ध अपराधों, नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध और आक्रामकता के अपराध की जांच करता है। आईसीसी में 18 जजों होते हैं , जो अंतरराष्ट्रीय आपराधिक मामलों पर फैसला सुनाते हैं। इस समय इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में 123 सदस्य देश हैं, रूस और यूक्रेन इसके सदस्य नहीं हैं। रूस पहले इसका सदस्य था लेकिन 2016 में इससे अलग हो गया। लेकिन यूक्रेन ने रूस द्वारा क्रीमिया को कब्जे में लेने के बाज अदालत के न्याय क्षेत्र को स्वीकार किया है, यानी अब इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट यूक्रेन में अपराधों की जांच कर सकती हैं। चूंकि रूस इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट का सदस्य नहीं है। ऐसे में वह जांच में असहयोग कर सकता है। अहम बात यह है कि अमेरिका, चीन और भारत भी इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के सदस्य नहीं हैं।
कैसे तय होते हैं सबूत
युद्ध अपराध साबित करने में सबसे जरूरी यह होता है कि यह साक्ष्य पेश किए जाएं कि जिस इलाके में हमला किया गया, वहां कोई सैन्य ठिकाना नहीं था और नागरिक निशाने बनाए गए। इसके अलावा हमला गलती से नहीं, बल्कि जान-बूझकर किया गया है। अगर यह साबित हो जाता है तो राष्ट्राध्यक्ष, सैनिक, कमांडर की मंशा भी साबित हो जाती है। इन सबूतों में मंशा को सबसे अहम माना जा सकता है। इसके अलावा इस तरह के सबूत भी पेश किए जा सकते हैं कि नागरिकों के ठिकाने पर हमले की आरोपी को पूरी जानकारी थी, इसके बावजूद उसने कार्रवाई नहीं की।
अब तक किसे मिली सजा
वैसे तो इंटरनेशन क्रिमिनल कोर्ट का गठन 1998 में हुआ था लेकिन उसने अपना काम साल 2002 से शुरू किया। और अब तक उसने 30 मामलों की सुनवाई की है। इसके तहत पांच लोगों को युद्ध अपराधों, मानवता के विरुद्ध अपराधों और नरसंहार के मामलों में दोषी ठहराया गया है। लेकिन युद्ध अपराध को लेकर पहला मुकदमा 1945 में नाजी शासकों पर चला था। गैर सरकारी सगंठन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स (सीएफआर) की रिपोर्ट के अनुसार उन पर बड़ी संख्या में यहूदियों को मौत के घाट उतारने का आरोप था। चार साल तक चली सुनवाई में कुल 25 आरोपियों में से 11 अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई गई थी। इसके जापानी सेना के जनरल यामाशिता तोमोयुकी, ईराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन, कांगो के पूर्व उप राष्ट्रपति जीन पियरे , सूडान के राष्ट्रपति ओमर अल-बशर, लीबीया के मुअम्मर अल कद्दाफी, कोसोव प्रेसिडेंट हाशिम थासी आदि भी जांच का सामना कर चुके हैं।
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