रियाद : सऊदी अरब को महिला अधिकारों के दृष्टिकोण से अपेक्षाकृत पिछड़ा देश माना जाता है। यहां वर्षों से महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम अधिकार रहे हैं। हालांकि महिला अधिकारों के संबंध में दुनिया के तकरीबन हर समाज और देश में कमोवेश एक जैसी स्थिति ही देखी गई है, लेकिन सऊदी अरब में यह कहीं अधिक है, जिसके कारण यहां जब भी महिलाओं के लिए किसी बराबरी के अधिकार की घोषणा हुई तो दुनियाभर की नजरें उस पर गईं। ऐसा ही एक अधिकार तब सुर्खियों में आया था जब सऊदी अरब में महिलाओं को ड्राइविंग यानी गाड़ी चलाने का अधिकार दिया गया।
सऊदी अरब में महिलाओं को ड्राइव करने की अनुमति देने की घोषणा 26 सितंबर, 2017 को की गई थी, जिसके बाद जून 2018 में उन्हें इसकी अनुमति भी दी गई कि गाड़ी के लाइसेंस के लिए अब महिलाओं को पुरुष अभिभावकों से अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी और वाहन चलाने के लिए उन्हें पुरुष संरक्षक की भी जरूरत नहीं होगी। उसी साल सऊदी महिलाओं को पुरुषों के बगैर अकेले घूमने की स्वतंत्रता भी हासिल हुई, जो उन्हें पहले नहीं थी। यहां महिलाओं को अब खुद पासपोर्ट के लिए आवेदन देने की अनुमति भी मिल चुकी है, जो पहले नहीं थी।
क्राउन प्रिंस को दिया जाता है श्रेय
सऊदी अरब में महिलाओं को लेकर हो रहे ऐसे कई बदलावों का श्रेय क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को दिया जा रहा है। माना जा रहा है कि सऊदी अरब देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए और दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करने की कोशिश में जुटा है और ऐसे में वह महिलाओं को लेकर अपनी रूढ़ीवादी व सख्त छवि को सुधारना चाहता है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए देश में चरणबद्ध तरीके से सुधारों को लागू करने के लिए विजन-2030 तैयार किया गया है, जिसमें महिलाओं को एक-एक कई ऐसे अधिकार दिए जा रहे हैं, जो उन्हें इससे पहले हासिल नहीं थे।
सऊदी अरब में क्राउन प्रिंस की हैसियत बेहद महत्वपूर्ण होती है। क्राउन प्रिंस यहां सुल्तान के बाद सरकार में दूसरे नंबर के पदाधिकारी होते हैं, जिन्हें कई मामलों में निर्णय लेने का अधिकार होता है। क्राउन प्रिंस, सुल्तान का उत्तराधिकारी भी होता है। सऊदी अरब के मौजूदा क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान हैं, जो सऊदी अरब के सुल्तान सलमान बिन अब्दुल्लाजीज अल सऊद के बेटे हैं। सऊदी अरब में महिलाओं को लेकर विगत वर्षों में हुए सुधारों का श्रेय उन्हें दिया जाता है तो क्राउन प्रिंस की औपचारिक नियुक्ति से पहले भी यहां महिलाओं को कुछ अधिकार दिए गए।
जानें कब-कब हुए महत्वपूर्ण बदलाव?
सऊदी अरब में लड़कियों के लिए पहला सरकारी स्कूल 1961 में खोला गया तो उनकी उच्च शिक्षा के लिए यूनिवर्सिटी 1970 में खोली गई। यहां साल 2001 से अभिभावकों की अनुमति लेकर महिलाओं के लिए अलग से पहचान-पत्र जारी किया जाना शुरू किया गया, लेकिन 2006 में इसमें बदलाव किय गया और अब महिलाओं को अलग पहचान-पत्र हासिल करने के लिए किसी से अनुमति की आवश्यकता नहीं है। यहां 2005 में जबरन निकाह पर रोक लगाई गई तो 2009 में सरकार में पहली बार महिला मंत्री की नियुक्ति हुई।
सऊदी अरब ने पहली बार 2012 में महिला एथलीट्स को ओलंपिक की राष्ट्रीय टीम में हिस्सा लेने की अनुमति दी थी, जब वे स्कार्फ पहनकर मैदान पर उतरी थीं। यहां महिलाओं को 2013 में पहली बार साइकिल और मोटरबाइक की सवारी करने की अनुमति दी गई। हालांकि यह शर्त लगाई गई कि वे पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनेंगी और उनके साथ पुरुष रिश्तेदार भी होगा।
सऊदी अरब में क्या वोट डालती हैं महिलाएं?
सऊदी अरब में महिलाओं को लेकर हो रहे इन बदलावों के बीच यह सवाल भी उठता है कि क्या महिलाओं को यहां चुनावों में मतदान का अधिकार है? तो इस संबंध में यहां उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब में महिलाओं ने पहली बार 2015 में नगरपालिका चुनावों में वोट डाला था। उन्हें तब चुनाव में उम्मीदवार बनने का मौका भी मिला था। सऊदी अरब के तत्कालीन सुल्तान अब्दुल्ला बिन अब्दुलाजीज अल-सऊद ने इसकी घोषणा सितंबर 2011 में की थी कि यहां साल 2015 से महिलाओं को वोटिंग का अधिकार होगा और वे चुनाव में उम्मीदवार भी बन सकेंगी।
दुनिया में किस देश में महिलाओं को वोटिंग का अधिकार सबसे पहले दिया गया, अगर उसकी बात करें तो इसमें न्यूजीलैंड सबसे आगे रहा, जहां महिलाओं को 1893 में ही मतदान का अधिकार मिल गया था, जबकि औपनिवेशिक काल में दुनिया के कई देशों पर राज करने वाले और खुद को सभ्य बताने वाले ब्रिटेन में महिलाओं को यह अधिकार 1918 में दिया गया था।