- पाकिस्तान को एक बार फिर FATF की ग्रे लिस्ट में रखा गया है, जो उसकी अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका है
- आर्थिक मोर्चे पर पहले ही कई परेशानियों का सामना कर रहे पाकिस्तान की मुश्किलें इससे और बढ़ सकती हैं
- FATF की ग्रे लिस्ट में होने के कारण पाकिस्तान को मिलने वाले विदेशी निवेश पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है
नई दिल्ली : आतंकवाद के वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम को लेकर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) द्वारा तय किए गए सभी 27 बिंदुओं पर अब तक ठोस कदम नहीं उठाए जाने के कारण पाकिस्तान को एक बार फिर से ग्रे लिस्ट में डाल दिया गया है। आर्थिक मोर्चे पर पहले से ही कई मुश्किलों का सामना कर रहे पाकिस्तान के लिए इसे बड़ा झटका माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि इससे आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान की परेशानियां और बढ़ सकती हैं। आखिर FATF की ग्रे लिस्ट में होना पाकिस्तान को किस तरह प्रभावित कर रहा है?
क्या है FATF और इसका ग्रे लिस्ट?
FATF एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जिसका मकसद दुनियाभर में हो रही मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए नीतियां बनाना है। इसकी स्थापना 1989 में G7 देशों की पहल पर की गई थी, जिसका मुख्यालय पेरिस में है। हालांकि 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका के न्यूयार्क शहर में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद इसके उद्देश्यों में आतंकवाद की फंडिंग को रोकना भी शामिल किया गया। पाकिस्तान को जून, 2018 में FATF ने अपनी ग्रे लिस्ट में शामिल किया था, जिसकी वजह वैश्विक चरमपंथ फैलाने वाले आतंकी संगठनों को बिना रोक-टोक मिलने वाली फंडिंग बताई गई।
जिन देशों में आतंकवाद की फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग का जोखिम सबसे अधिक होता है, उन्हें ग्रे लिस्ट में रख दिया जाता है। FATF की इस लिस्ट में पाकिस्तान सहित दुनिया के 18 देश शामिल हैं। इस संबंध में यह भी महत्वपूर्ण है कि ये देश आतंकवाद की फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए FATF के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार होते हैं। जो देश इसके लिए तैयार नहीं होते और इस दिशा में कदम नहीं उठाते, उन्हें ब्लैक लिस्ट यानी काली सूची में डाल दिया जाता है। इस वक्त उत्तर कोरिया और ईरान, दो देश FATF की ब्लैक लिस्ट में हैं।
कोई भी देश आतंकवाद के वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम को लेकर कितना गंभीर है, यह जिम्मेदारी FATF से जुड़ी एजेंसी देखती है। पाकिस्तान और एशिया में यह नजर एशिया पैसिफिक ग्रुप (एपीजी) रखती है। उसी तरह यूरोप, दक्षिण अमेरिका और दुनिया के अन्य क्षेत्रों में FATF से जुड़ी इसी तरह की एजेंसियां हैं।
पाकिस्तान को कैसे नुकसान पहुंचा रहा ग्रे लिस्ट में होना?
पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान का पिछले दो साल से लगातार FATF की ग्रे सूची में रहना उसे बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। FATF की ग्रे लिस्ट में होने के कारण उसे मिलने वाले विदेशी निवेश पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। साथ ही आयात, निर्यात और IMF तथा ADB जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज लेने की उसकी क्षमता भी प्रभावित हो रही है। यह ई-कॉमर्स और डिजिटल फाइनेंसिंग के लिए भी एक गंभीर बाधा है। यही वजह है कि पाकिस्तान इस लिस्ट से बाहर आने के लिए हर तरह के पैंतरे अपना रहा है और जगह-जगह हाथ-पांव मार रहा है।
FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर आने के लिए पाकिस्तान को 39 में से कम से कम 12 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता है। भारत और इसके सहयोगी देश आतंकवाद को होने वाली फंडिंग के मसले को उठाते हुए जहां पाकिस्तान को 'ब्लैक लिस्ट' तक करने की मांग उठाते रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष कूटनीतिक माध्यमों से अपना पक्ष रखते रहे हैं, वहीं चीन जैसे पाकिस्तान के सहयोगी देश भी हैं, जो मानते हैं कि पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की है। हालांकि पाकिस्तान एक बार फिर इस मसले पर बेनकाब हुआ और उसे अब भी FATF की ग्रे लिस्ट में रखा गया।