- इजरायल और यूएई के बीच 15 सितंबर को ऐतिहासिक समझौता होने जा रहा है
- यूएई के अतिरिक्त बहरीन ने भी इजरायल के साथ संबंध सामान्य बनाने पर सहमति जताई है
- इजरायल और यूएई समझौते में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भूमिक अहम मानी जा रही है
वाशिंगटन : इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने पिछले दिनों अपने संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में सहमति जताई थी और इसमें अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका काफी अहम मानी जा रही है। दोनों देशों के बीच इसके लिए 13 अगस्त को सहमति बनी थी, जिसके बाद अब 15 सितंबर को व्हाइट हाउस में इस समझौते पर दोनों देशों के बीच हस्ताक्षर होने हैं। यूएई ही नहीं, बहरीन ने भी इजरायल के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाने को लेकर सहमति जताई है, जिसकी घोषणा अमेरिका के राष्ट्रपति ने शुक्रवार को की थी।
क्यों खास है इजरायल-यूएई समझौता?
इजरायल-यूएई समझौता किस कदर महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नार्वे के एक सांसद ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इसके लिए 2021 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित भी किया। माना जा रहा है कि यह समझौता इजरायल-फिलीस्तीन विवाद में मील का पत्थर साबित होगा और समाधान की दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा। अब तक अरब देशों को इस विवाद में फिलीस्तीन समर्थक के तौर पर देखा जाता रहा है, लेकिन इजरायल के साथ यूएई और बहरीन के संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों से गणित बदलते दिख रहे हैं।
यूएई-इजरायल के बीच 15 सितंबर को जो समझौता होने जा रहा है, उसी परिप्रेक्ष्य में देखें तो यूएई तीसरा अरब देश है, जो इजरायल के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाने के लिए समझौता करने जा रहा है। इससे पहले 1979 में मिस्र और 1994 में जॉर्डन ने इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के लिए समझौते किए थे। यूएई के बाद बहरीन ने भी इजरायल के साथ संबंध सामान्य बनाने को लेकर सहमति दी है, जिसकी घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति ने की है। अमेरिका भले ही इसे बड़ी कामयाबी के तौर पर पेश कर रहा है, पर इसका विरोध भी शुरू हो गया है।
समझौते का विरोध
फिलीस्तीन के साथ-साथ ईरान ने भी बहरीन के इजराइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की योजना की कड़ी निंदा की है और इसे खाड़ी अरब देश का शर्मनाक और घृणित कदम बताया है। ईरान के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि बहरीन के इजराइल के साथ संबंध सामान्य होना फिलीस्तीन के दबे और वंचित लोगों की इतिहास की स्मृति में बना रहेगा। ईरान के अर्द्धसैनिक बल रिवॉल्यूशनरी गार्ड ने भी बहरीन के कदम की निंदा की और इसे फिलीस्तीन की जनता के साथ विश्वासघात कहा।
इससे पहले फिलीस्तीन के विदेश मंत्री रियाद अल-मलिकी ने भी अरब देशों से आह्वान किया था कि वे इजरायल-यूएई समझौते को अपनी स्वीकृति न दें। उन्होंने इजरायल-यूएई के बीच समझौते को 'भूकंप' जैसा करार दिया और कहा कि यह फिलीस्तीन को लेकर अरब जगत की एकजुटता को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने यह यह आरोप भी लगाया कि अमेरिका मध्य-पूर्व और अरब देशों पर इजरायल के साथ संबंध सामान्य बनाने के लिए दबाव बना रहा है।
इस समझौते के बाद क्या बदलेगा?
यहां उल्लेखनीय है कि अब तक अरब जगत के अधिकांश देश इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंधों खारिज करते रहे हैं, लेकिन इजरायल से संबंध बेहतर बनाने की दिशा में यूएई और बहरीन के प्रयासों के बाद अब हालात बदलते दिख रहे हैं। इजरायल और यूएई के बीच 15 सितंबर को जो समझौता होने वाला है, उससे दोनों देशों के बीच न केवल राजनयिक संबंध स्थापित होंगे, बल्कि सीधी उड़ानें भी शुरू होंगी। साथ ही स्वास्थ्य, व्यवसाय, प्रौद्योगिकी, शिक्षा, सुरक्षा और कृषि समेत व्यापक क्षेत्रों में सहयोग के लिए पहल की जाएगी। यही स्थिति बहरीन के साथ इजरायल के संबंधों में भी होगी।
यही वजह है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने इसे ऐतिहासिक करार देते हुए भरोसा जताया है कि आपसी रिश्तों के सामान्य होने के बाद क्षेत्र और अधिक स्थिर, सुरक्षित एवं समृद्ध होगा।