- UNHCR के अनुसार, युद्ध की वजह से अब तक करीब 34 लाख लोगों ने यूक्रेन छोड़ दिया है।
- रविवार तक यूक्रेन में करीब 942 आम नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी है और 1459 लोग घायल हुए हैं।
- द्वितीय विश्व युद्द्ध के बाद, पराजित नाजियों के विरूद्ध मित्र देशों ने युद्ध अपराध, नरसंहार आदि के लिए नूरमबर्ग चार्टर के तहत मुकदमा चलाया था।
Russia-Ukraine War: लगातार 26 दिन से चल रहे रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में आम आदमी के हताहत होने की तादाद बढ़ती जा रही है। रूस के हमले में एक के बाद यूक्रेन के शहर तबाह हो रहे हैं। खारकीव, मरियुपोल, कीव में में सैकड़ों आम नागरिक अपनी जान गंवा चुके हैं, जिसमें बच्चे भी शामिल हैं और लाखों लोग पलायन कर चुके हैं। इन सबके लिए पूरी दुनिया में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को जिम्मेदार माना जा रहा है।
ऐसे में अब पुतिन को सजा देने की भी मांग पूरी दुनिया से उठ रही है। पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पुतिन को युद्ध अपराधी कहा और अब ब्रिटेन के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों ने उन पर निशाना साधा है। प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन और जॉन मेजर ने कहा है कि यूक्रेन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की कार्रवाई की जांच के लिए एक नई अंतरराष्ट्रीय अदालत का गठन किया जाना चाहिए। यही नहीं बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर के 140 से अधिक राजनेताओं, कानूनविद और शिक्षाविदों ने एक याचिका पर हस्ताक्षर करते हुए कहा है कि नूरमबर्ग अदालत की तरह ही कानूनी व्यवस्था बनाकर यूक्रेन पर हमले की जांच की जाय।
34 लाख लोगों ने यूक्रेन छोड़ा
संयुक्त राष्ट्र संघ की शरणार्थी एजेंसी UNHCR के अनुसार, युद्ध की वजह से अब तक करीब 34 लाख लोगों ने यूक्रेन छोड़ दिया है। और एक अनुमान के मुताबिक कुल एक करोड़ लोग यूक्रेन में या यूक्रेन से बाहर शरणार्थी बन चुके हैं।
इसी तरह संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार एजेंसी UNHRC के अनुसार रविवार तक यूक्रेन में करीब 942 आम नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी है और 1459 लोग घायल हुए हैं। हालांकि एजेंसी ने यह भी कहा है कि यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है। इसी तरह एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि इन हमलों में 100 से ज्यादा बच्चों की भी मौत हुई है।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि नूरमबर्ग ट्रॉयल क्या है, जिसकी तरह पुतिन पर ट्रॉयल की मांग हो रही है..
क्या है नूरमबर्ग ट्रॉयल
द्वितीय विश्व युद्द्ध के बाद, पराजित नाजियों के विरूद्ध मित्र देशों ने युद्ध अपराध, नरसंहार आदि के लिए मुकदमा चलाया था। साल 1939 से लेकर 1945 के दौरान युद्ध में नाजी सेना (जर्मनी) ने यूरोप के कई देशों को अपने कब्जे में ले लिया था। अकले सोवियत संघ में 2.4 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। ऐसे में इन अपराधों की सजा के लिए सोवियत संघ, ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर, नूरमबर्ग चार्टर के आधार पर एक संयुक्त ट्रिब्यूनल बनाने पर सहमति जताई। और उसके बाद 20 नवंबर 1945 से एक अक्टूबर 1946 के बीच अंतरराष्ट्रीय सैन्य ट्रिब्यूनल ने जर्मनी के 24 राजनीतिक , सैन्य और आर्थिक क्षेत्र से जुड़े लोगों पर मुकदमा चलाया। इसमें 21 कोर्ट में सुनवाई के दौरान मौजूद रहे। इनके अलावा जर्मनी के 7 संगठनों पर भी मुकदमा चलाया गया।
क्या मिली सजा
ट्रिब्यूनल ने 1 अक्टूबर, 1946 को 24 आरोपियों में से 19 को दोषी ठहराया और तीन को बरी कर दिया। दोषियों में से 12 को मौत की सजा सुनाई गई थी। जबकि 3 को आजीवन कारावास और 4 को 10 से 20 साल तक की कारावास की सजा सुनाई।
यूक्रेन ने भी रूस के खिलाफ दायर कर रखा है केस
इसके पहले यूक्रेन ने 26 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में रूस के खिलाफ युद्ध अपराध को लेकर केस दायर किया था। इसमें यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने रूस को सैन्य कार्रवाई को तत्काल रोकने का आदेश देने के साथ, कोर्ट से रूस को नरसंहार के लिए जवाबदेह ठहराए जाने की अपील की थी।
क्या है युद्ध अपराध
युद्ध अपराध को परिभाषित करने वाले कानून जेनेवा कन्वेंशन कहलाते हैं।अब तक चार कन्वेंशन बनाए गए हैं। पहले तीन कन्वेंशन में युद्ध में लड़ने वाले सैनिकों और युद्ध बंदियों की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है। कन्वेंशन में युद्ध क्षेत्र में आम नागरिकों की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है। 1949 के जेनेवा कन्वेंशन को रूस सहित संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों ने स्वीकार किया था।
आम लोगों को बंधक बनाना, जानबूझ कर हत्या करना, प्रताड़ना या फिर युद्ध बंदियों के साथ अमानवीय व्यवहार और बच्चों को युद्ध में जाने पर मजबूर करना आदि युद्ध अपराध में शामिल होता है।
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