नई दिल्ली: भारत में अंसख्य लोग क्रिकेट में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का सपना देखते हैं, लेकिन इनमें से कुछ ही भाग्यशाली क्रिकेटर होते हैं, जो इसे पूरा कर पाते हैं। टीम इंडिया ने अपने इतिहास में सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर, विराट कोहली और राहुल द्रविड़ जैसे दिग्गज बल्लेबाजों को पाया, जिन्होंने अपने आप को बाकियों से सर्वश्रेष्ठ साबित किया। भारत अंडर-19 टीम, भारत ए और आईपीएल सभी ने भारतीय प्रतिभाओं को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।
जहां बड़ी मात्रा में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का पूल तैयार होना टीम इंडिया के लिए अच्छा है, वहीं हर व्यक्ति के लिए स्क्वाड में जगह बनाना मुश्किल है। टीम में 11 खिलाड़ी खेलते हैं, 4 खिलाड़ी बेंच पर बैठते हैं और 20-25 खिलाड़ी संभावितों में होते हैं। शेष खिलाड़ी इस आस में लगातार मेहनत करते रहते हैं कि उनका नंबर भी आएगा। टीम इंडिया के शीर्ष 15 में पहुंचना भी बड़ी उपलब्धि है और अधिकांश मामलों में खिलाड़ियों को इंटरनेशनल डेब्यू करने को मिल ही जाता है। हालांकि, कुछ ऐसे दुर्भाग्यशाली क्रिकेटर भी हैं, जो स्क्वाड का हिस्सा तो रहे, लेकिन डेब्यू नहीं कर पाए। इन खिलाड़ियों के पास मौका जरूर आया, लेकिन डेब्यू हाथ नहीं लगा।
धीरज जाधव - धीरज जाधव खुद को दुर्भाग्यशाली मान सकते हैं क्योंकि उनके समय में प्रमुख प्रतिस्पर्धी थे दिग्गज सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और वीरेंद्र सहवाग। महाराष्ट्र के बल्लेबाज ने 2003/04 रणजी ट्रॉफी में 12 पारियों में 1066 रन बनाकर राष्ट्रीय टीम के लिए दस्तक दी थी। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2004 में धीरज जाधव को चौथे टेस्ट के लिए राष्ट्रीय टीम का बुलावा भी आ गया। हालांकि, प्लेइंग इलेवन में गौतम गंभीर को डेब्यू का मौका मिला। जाधव को इसके बाद राष्ट्रीय टीम से बुलावा नहीं आया जबकि वह घरेलू क्रिकेट में निरंतर बेहतर प्रदर्शन करते रहे।
पूर्व ओपनर ने 174 फर्स्ट क्लास पारियों में 50.85 की औसत से 7679 रन बनाए। वहीं लिस्ट ए करियर में 52 पारियों में 43.22 की औसत से उन्होंने 2075 रन बनाए। दुर्भाग्यवश धीरज जाधव पर राष्ट्रीय टीम का टैग नहीं लग पाया।
राणादेब बोस - राणादेब बोस घरेलू क्रिकेट में अपनी पीढ़ी के सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाजों में से एक थे, लेकिन उन्हें कभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका नहीं मिला। बंगाल के तेज गेंदबाज ने 2006-07 रणजी ट्रॉफी में केवल 8 मैचों में 57 विकेट झटके और चयनकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया। 2007 इंग्लैंड दौरे के लिए राणादेब बोस का चयन भारतीय टीम में हो गया। मगर जहीर खान, आरपी सिंह और एस श्रीसंत के कारण राणादेब बोस को मैच खेलने का मौका नहीं मिल सका। राणादेब बोस ने 91 फर्स्ट क्लास गेम्स में 317 विकेट चटकाए।
पांडे ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 72 मैचों में 252 विकेट चटकाए। पिछले तीन सीजन से वह आईपीएल का हिस्सा नहीं हैं। 31 साल की उम्र में अब पांडे को कुछ विशेष ही करना पड़ेगा ताकि घरेलू क्रिकेट में उन पर दोबारा नजर पड़े।
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