नई दिल्ली। अरविंद केजरीवाल सरकार की कुछ खास योजनाओं में से एक का नाम है घर घर राशन योजना। दिल्ली सरकार का दावा था कि इस योजना ने करीब 72 लाख लोगों सीधे तौर पर फायदा होता क्योंकि उन्हें राशन लेने के लिए कोटेदारों के पास नहीं जाना पड़ता। दिल्ली सरकार इसे औपचारिक तौर पर अगले हफ्ते से लागू करने की योजना बना ली थी। लेकिन लेफ्टिनेंट गवर्नर ने रोक लगा दी है। रोक के पीछ तर्क दिया गया है कि केंद्र से मंजूरी नहीं ली गई है। हालांकि इस संबंध में एलजी ऑफिस की तरफ से तथ्यों के साथ सफाई भी आई है।
दिल्ली सीएम दफ्तर ने दी जानकारी
दिल्ली सीएम कार्यलाय के मुताबिक दिल्ली सरकार 1-2 दिनों के भीतर पूरे दिल्ली में 'राशन की डोरस्टेप डिलीवरी' योजना शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार थी। एलजी ने दो कारणों का हवाला देते हुए योजना के कार्यान्वयन के लिए फाइल को खारिज कर दिया है - केंद्र ने अभी तक योजना को मंजूरी नहीं दी है, और दूसरा कि इस विषय पर केस अदालत के विचाराधीन है।
दिल्ली सरकार के आरोप पर एलजी ऑफिस की सफाई
एक निजी विक्रेता/विक्रेताओं के माध्यम से लागू करने के लिए प्रस्तावित 'टीडीपीएस के तहत संसाधित और पैकेज्ड राशन की होम डिलीवरी पर अधिसूचना' से संबंधित फाइल माननीय उपराज्यपाल द्वारा माननीय मुख्यमंत्री को पुनर्विचार के लिए वापस कर दी गई है।20 मार्च, 2018 को पहले की तरह फिर से यह सलाह दी गई है कि चूंकि प्रस्ताव वितरण के तरीके को बदलने का प्रयास करता है, इसलिए इसे अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय की धारा 12 (2) (एच) के अनुसार भारत सरकार की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता होगी।
इसके अतिरिक्त, यह ध्यान में लाया गया था कि उक्त मामले में एक रिट याचिका WP (C) 2037/2021 "दिल्ली सरकार राशन डीलर्स संघ" द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर की गई है, जिसमें डोर स्टेप डिलीवरी की प्रस्तावित व्यवस्था को चुनौती दी गई है। GNCTD द्वारा राशन जिसमें भारत संघ भी एक पार्टी है। उक्त याचिका पर 20 अगस्त, 2021 को सुनवाई होनी है।
यहां ध्यान देने वाली बात है कि माननीय उपराज्यपाल ने प्रस्ताव को अस्वीकार नहीं किया है जैसा कि चित्रित किया जा रहा है। उन्होंने बड़े पैमाने पर लोगों को सहज निर्णय और निर्बाध लाभ सुनिश्चित करने के एकमात्र उद्देश्य के साथ चीजों की संवैधानिक योजना का अक्षरश: पालन करने की सलाह दी है।
पहले इस योजना का नाम था मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना
पहले इस योजना का नाम मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना था और मार्च में ही इसे लॉन्च किया जाना था। यह बात अलग है कि केंद्र सरकार ने आपत्ति जताई थी। केंद्र सरकार का तर्क था कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सब्सिडी पर मिलने वाले खाद्यान्न का इस योजना के दायरे में नहीं लाया जा सकता है। योजना में किसी तरह के बदलाव के लिए संसद अधिकृत है। इस तरह से केंद्र के ऐतराज के बाद दिल्ली सरकार ने योजना में से मुख्यमंत्री शब्द हटा लिया।
क्या कहते हैं जानकार
अब सवाल यही है कि अगर दिल्ली सरकार की इस योजना से 72 लाख लोगों को राशन की दुकानों पर नहीं लगना पड़ता। 72 लाख लोगों को सीधे सीधे घर पर ही हर महीने राशन मिलता तो परेशानी वाली बात क्या है। इस बारे में जानकार कहते हैं कि बेशक दिल्ली सरकार की योजना को जनकल्याणी कहा जा सकता है। लेकिन उसमें सियासत भी छिपी है। दरअसल दिल्ली के नगर निगमों पर बीजेपी का पिछले 15 वर्ष से कब्जा है, ऐसे में दिल्ली सरकार की तरफ से लगातार कोशिश की जा रही है कि यह दबदबा टूटे।
हाल ही में एमसीडी के लिए पांच सीटों पर उपचुनाव हुए थे तो उसमें आम आदमी पार्टी को जबरदस्त कामयाबी मिली थी। उन नतीजों के बाद बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बज गई कि अगर केजरीवाल सरकार इस लोकप्रिय योजना को जमीन पर उतारने में कामयाब हो जाती है कि बीजेपी की निगम से भी सूपड़ा साफ हो सकता है।
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