नई दिल्ली। हम सबकी सांस पर स्मॉग का पहरा है, सरकारें अपने अपने अंदाज में दावा और वादा दोनों करती हैं वर्ल्ड क्लॉस सिटी में वायु की गुणवत्ता के लिए कोशिश जारी है। लेकिन सफर जो आंकड़े जारी कर रहा है उससे पता चलता है कि दावे और वादे एक तरफ अपनी दिल्ली और एनसीआर का हाल ठीक नहीं है। अदालत की नजर तिरछी है तो केंद्र सरकार ने कहा कि पराली और प्रदूषण के मुद्दे पर गंभीरता से सामना करने के लिए वो नए कानून पर विचार कर रहे हैं और जल्द ही कानून के साथ सामने होंगे।
दिल्ली में वायु की गुणवत्ता खराब
दिल्ली में वायु की गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है दिल्ली और एनसीआर के वातारण में पीएम 2.5 और पीएम 10 का कब्जा है। गाजीपुर इलाके की तस्वीर अपने आप में बहुत कुछ कहती है कि सरकारी दावों पर किस हद तक विश्वास करें। आनंद विहार में एक्यूआई का स्तर 377 है जो खराब श्रेणी में है। रोहिणी में 346,आरके पुरम में 329, मुंडका में 363 है।
आखिर कौन है जिम्मेदार
सवाल यह है कि सर्दियों के शुरू होने से पहले स्मॉग अपने साम्राज्य को इतना मजबूत कैसे कर लेता है। इस सवाल के कई जवाब हैं, लेकिन सरकारें अपने तर्कों के आधार पर खारिज करती हैं, मसलन दिल्ली सरकार के मुताबिक प्रदूषण के लिए पड़ोसी राज्यों में पराली का जलाया जाना जिम्मेदार है, तो केंद्र सरकार का तर्क है कि पराली की दिल्ली के प्रदूषण में महज 4 फीसद योगदान है। इस विषय पर दोनों सरकारें आमने सामने थीं। इस विषय पर जानकारों का कहना है कि यह बात सही है कि प्रदूषण में पराली का रोल है, लेकिन मुख्य वजह उसे नहीं माना जा सकता है। दरअसल पराली साल के दो महीनों में ही जलाई जाती है। लेकिन दिल्ली में प्रदूषण के स्तर को देखें तो साफ हवा 365 दिनों में से कम समय के लिए ही मिल पाती है।
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