नई दिल्ली : राजधानी दिल्ली में कोरोना संकट की मार यहां के सेक्सवर्करों पर भी पड़ी है। लॉकडाउन की वजह से इनके पास कमाई का जरिया नहीं बचा है। इन परिवारों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है। जीबी रोड पर सेक्स वर्करों के परिवारों में करीब 800 लोग रहते हैं। लॉकडाउन की मुश्किल घड़ी में इन तक राशन पहुंचाने की जिम्मेदारी सेक्स वर्करों के बच्चों ने उठाई है। सेक्स वर्कर के बच्चे फंड जुटाकर इन तक राशन और जरूरत की अन्य चीजें पहुंचा रहे हैं।
लॉकडाउन ने खत्म किया कमाई का जरिया
दिल्ली में गत 19 अप्रैल को लॉकडाउन लागू हुआ। लॉकडाउन के दौरान आय का कोई जरिया नहीं होने के बाद जीबी रोड पर काम करने वाली ज्यादातर सेक्स वर्कर अपने गांवों की तरफ लौट गईं। लॉकडाउन के दौरान जिन्होंने रुकने का फैसला किया उन्हें अपनी बचत और घर में रखे गए राशन पर निर्भर होना पड़ा। टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक एक सेक्स वर्कर ने कहा, 'पुलिस ने हमसे अपना काम बंद करने के लिए कहा। पुलिस को आशंका थी कि यहां लोग आ सकते हैं और संक्रमण फैल सकता है। चूंकि सब कुछ बंद है तो मुझे अपने और बच्चों के राशन के लिए लोन लेना पड़ा। मेरी तबीयत भी ठीक नहीं है लेकिन दूसरा कोई उपाय नहीं है।'
मदद के लिए आगे आए सेक्स वर्कर्स के बच्चे
एक दूसरे सेक्स वर्कर ने बताया कि 'हम अच्छे मास्क और सेनिटाइजर का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे। सरकार से मदद नहीं मिल पा रही है। हमारे पास साबुन और घरेलू गैस नहीं है।' एक सेक्स वर्कर के लड़के रमेश (बदला हुआ नाम) और उसके दोस्त ने मिलकर मुश्किल घड़ी में सेक्स वर्कर से जुड़े परिवारों की मदद करने की सोची। रमेश का कहना है, 'हमने एक एनजीओ के पास जाने का फैसला किया। इस एनजीओ ने घर की जरूरत की सभी चीजें चावल, दाल, तेल, चीनी, आटा, हल्दी, धनिया, लाल मिर्च का पाउडर जुटाने की हमें सलाह दी।'
जीबीरोड पर हैं करीब 800 सेक्स वर्कर
रमेश जिसने अभी 12वीं क्लास की परीक्षा उत्तीर्ण की है, उसने कहा कि पुलिस ने पहले राशन कि इन सामग्रियों को वितरित करने की इजाजत नहीं दी लेकिन बाद में उन्हें अहसास हुआ कि हम दोनों वाकई अपने समुदाय के लोगों की मदद करना चाहते हैं। रमेश ने कहा, 'हमारी योजना जीबी रोड के करीब 800 सेक्स वर्करों को राशन पैकेट बांटने की है। अभी हमारे पास 200 लोगों के लिए राशन किट है। हम इसका वितरण करेंगे और एक बार फिर राशन जुटाएंगे।'
एनजीओ भी कर रहे मदद
उसने बताया, 'हम पीपीई किट पहनकर प्रत्येक घर जाएंगे और उन्हें राशन सौपेंगे। लोगों को अपने घर पर बुलाने से ज्यादा उनके घर जाकर राशन देना ज्यादा सुरक्षित है। हमें लाइट अप जैसे एनजीओ एवं कई सिविल सोसायटी का समर्थन मिला हुआ है।' रमेश इस साल दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेने की तैयारी कर रहा है।
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