नई दिल्ली। दिल्ली सरकार- केंद्र सरकार एक बार फिर आमने सामने हैं। सवाल वही कि दिल्ली का बॉस कौन। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के संबंध में लोकसभा में बिल पेश किया है जिसमें सरकार का मतलब उपराज्यपाल है, कहने का अर्थ यह है कि अगर बिल संसद के दोनों सदनों से पारित होगा तो दिल्ली सरकार यानी सीएम के अधिकारों से ज्यादा अधिकार उपराज्यपाल के हाथ में होगी। इसका अर्थ यह है कि केंद्र की दखल दिल्ली के मामलों में ज्यादा होगी। लोकसभा में जैसे ही गृहराज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने इस बिल को पेश किया उसका विरोध बाहर हुई। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा कि जब यही सब करना है तो चुनाव कराने की जरूरत ही क्या है।
बीजेपी और आप आमने सामने
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने इस बिल को 'अंसवैधानिक और अलोकतांत्रिक' करार दिया है। हालांकि बीजेपी का कहना है कि इससे सामांजस्य आसान हो जाएगा। बीजेपी नेताओं का कहना है कि दिल्ली सरकार के साथ यही सबसे बड़ी परेशानी है कि वो संवैधानिक व्यवस्थाओं के हिसाब से चलना ही नहीं चाहते हैं। अगर आप के नेता सभी क्लॉज को पढ़ते और संविधान में यकीन होता तो वो इस बिल का विरोध नहीं करते।
बिल के खास अंश
क्या कहते हैं जानकार
जानकार कहते हैं कि अगर इस बिल को देखा जाए तो वास्तविक तौर पर दिल्ली के मुखिया उपराज्यपाल ही होंगे। निर्वाचित सरकार सिर्फ कहने के लिए होगी। दरअसल हर महत्वपूर्ण फैसले में एलजी की दखल होगी। अगर एलजी को कोई कानून पसंद नहीं आएगा तो उसे दिल्ली सरकार जमीन पर नहीं उतार सकेगी।
मनीष सिसोदिया का क्या कहना है
दिल्ली की जनता द्वारा विधानसभा और एमसीडी उपचुनाव में खारिज किये जाने के बाद केंद्र में बैठी भाजपा सरकार ने दिल्ली की जनता द्वारा चुनी गई दिल्ली सरकार के अधिकारों को छीन कर उपराज्यपाल को देने के बिल को लाने की तैयारी कर ली है। केंद्र सरकार द्वारा लाया गया यह बिल लोकतंत्र और संविधान की आत्मा के खिलाफ होगा। इस बिल के माध्यम से बीजेपी उपराज्यपाल के साथ पिछले दरवाजे से दिल्ली की जनता पर शासन करने की तैयारी में है।
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