नई दिल्ली: रविवार (12 दिसंबर) जब लखनऊ में बहुजन समाज पार्टी से निकाले गए नेताओं और भाजपा नेता को शामिल कर रहे थे, तो उनका अलग रुप ही दिखा। उस वक्त उनके एक हाथ में शंख और दूसरे हाथ में चक्र था। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव का यह रूप ब्राह्मणों वोटरों को लुभाने के लिए था। क्योंकि रविवार के दिन वह पूर्वांचल के प्रमुख ब्राह्मण नेताओं को समाजवादी पार्टी में शामिल कर रहे थे।
कौन से नेता हुए शामिल
योगी आदित्यनाथ के कर्म क्षेत्र गोरखपुर के प्रमुख और बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के पुत्र और विधायक विनय शंकर तिवारी, दूसरे पुत्र और पूर्व सांसद भीष्मशंकर तिवारी और उनके भांजे और पूर्व एमएलसी गणेश शंकर पांडेय, ब्लाक प्रमुख संतोष पांडेय शामिल हुए। इसके अलावा संतकबीर नगर से भाजपा के विधायक जय चौबे भी समाजवादी पार्टी में शामिल हुए। इस मौके पर अखिलेश यादव ने कहा कि आज के दिन हमारी पार्टी में कई महत्वपूर्ण नेता शामिल हुए। यह बहुत खुशी की बात है कि पंडित हरिशंकर तिवारी का परिवार समाजवादी पार्टी से जुड़ा है। पंडित हरिशंकर तिवारी हमारे साथ नेताजी के साथ काफी लम्बे समय से जुड़े हैं। अब तो समाजवादी पार्टी का परिवार अब काफी बड़ा होता जा रहा है, जीत पक्की है।
हरिशंकर तिवारी परिवार की क्या है राजनीतिक हैसियत
हरिशंकर तिवारी एक समय दबंग की हैसियत रखते थे। और उनकी स्थानीय नेता और बाहुबली वीरेंद्र शाही के साथ उनकी बिजनेस और राजनीतिक रसूख की लड़ाई काफी चर्चा में रही थी। दोनों की बीच गैंगवार का पूर्वांचल गवाह रहा है। वह 80 के दशक में जेल में रहते हुए चिल्लूपार विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनावी जीते थे। वह 22 साल चिल्लूपार क्षेत्र से चुनाव जीत रहे थे। वह केवल 2007 और साल 2012 में चुनाव हारे। और इस समय उनकी उम्र 80 वर्ष से ज्यादा है।
इस दौरान वह भाजपा, सपा, बसपा सभी सरकारों मंत्री पद पर भी रहे। यह वह दौर था जब प्रदेश में किसी एक राजनीतिक दल को बहुमत मिलना मुश्किल था। ऐसे में हर विधायक की अपनी अहमियत होती थी। इसके बाद 2017 में उनके बेटे विनय शंकर तिवारी बसपा के टिकट पर चिल्लूपार सीट से विधानसभा पहुंचे। वहीं उनके दूसरे बेटे भीष्म शंकर तिवारी उर्फ कुशल तिवारी दो बार संतकबीर नगर से सांसद रहे हैं। वह 2008 और 2009 में सांसद रहे थे। लेकिन वह 2014 और 2019 में चुनाव हार गए। इस समय वह बसपा के सदस्य थे।
2009 में ही हरिशंकर तिवारी के दूसरे बेटे विनय शंकर तिवारी को बसपा ने गोरखपुर तो महराजगंज लोकसभा सीट से गणेश शंकर पांडेय चुनाव मैदान में उतारा। लेकिन दोनों चुनाव हार गए । 2012 में विनय तिवार को बसपा ने सिद्धार्थनगर के बांसी से प्रत्याशी बनाया हालांकि वह चुनाव जीत नहीं पाए। और 2017 में चिल्लूपार विधानसभा से विधायक बने। जबकि गणेश शंकर पांडेय 2017 में बसपा से पनियरा से चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं मिली।
बसपा से निष्कासित
हरिशंकर तिवारी के परिवार का पूर्वांचल में राजनीतिक रसूख का इतिहास रहा है। लेकिन करीब 2007 और 2012 में हरिशंकर तिवारी की लगातार हार और फिर 2014 और 2019 में उनके बेट भीष्म शंकर तिवारी की हार ने उनके राजनीतिक रसूख पर सवाल जरूर उठाए हैं। सूत्रों के अनुसार इसीलिए बसपा इस बार चिल्लूपार से उनके बेटे विनय शंकर तिवारी को टिकट देने के लिए तैयार नहीं दिख रही थी। इस कारण तिवारी परिवार की सपा से नजदीकियां भी बढ़ी। जिसको देखते हुए बसपा ने भीष्म शंकर तिवारी , विनय तिवारी और गणेश शंकर पांडेय को पार्टी ने निष्कासित कर दिया ।
ब्राह्मण और ठाकुर के बीच चलती है खींचतान
पूर्वांचल में गोरखपुर, संतकबीर नगर, बस्ती देविरया, महाराजगंज के क्षेत्रों में ब्राह्मण और ठाकुरों के बीच वर्चस्व की लड़ाई हमेशा से चलती रही है। इसकी वजह से सपा प्रमुख अखिलेश यादव हरिशंकर तिवारी परिवार को सपा में शामिल कर यह संदेश देना चाहते हैं, कि योगी आदित्यनाथ की सरकार से ब्राह्मण नाराज हैं। प्रदेश में करीब 10-11 फीसदी और पूर्वांचल में करीब 20 फीसदी ब्राह्मण आबादी है। इसलिए वह किसी भी राजनीतिक दल के लिए अहम होते हैं।
15 साल से भाजपा विरोधी रही है राजनीति
2007 में हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्म शंकर तिवारी ने बसपा का दामन थामा था। और वह उसी समय से बसपा में ही रहे। वहीं उनके भाई विनय शंकर तिवारी भी बसपा से ही जुड़े रहे। ऐसे में तिवारी परिवार की छवि भाजपा विरोधी रही है। हालांकि हरिशंकर तिवारी कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री भी रहे। ऐसे भाजपा सूत्रों का मानना है कि उनके जाने से पार्टी को कोई खास नुकसान नहीं होने वाला है। हालांकि ऐसी भी खबरें है कि पार्टी ने तिवारी परिवार को भाजपा में शामिल करने के लिए पूर्वांचल के एक ब्राह्मण नेता के जरिए संपर्क साधा था।