2017 की तरह एक बार फिर यूपी में 'कमल' खिलाने की तैयारी, दिल्ली में महामंथन के मतलब को समझिए

इलेक्शन
ललित राय
Updated Jan 12, 2022 | 08:19 IST

यूपी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नई दिल्ली में महामंथन हुआ जिसमें समग्र तौर पर सातों चरण पर चुनावी चर्चा हुई। इस मंथन में गृहमंत्री अमित शाह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे।

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2017 की तरह एक बार फिर यूपी में 'कमल' खिलाने की तैयारी, दिल्ली में महामंथन के मतलब को समझिए 
मुख्य बातें
  • 2017 में यूपी में बीजेपी को 300 से अधिक सीटें मिलीं थी
  • 2017 के चुनाव में बीजेपी ने छोटे छोटे दलों से गठबंधन किया था
  • इस दफा सुभासपा यानी कि ओमप्रकाश राजभर की पार्टी बीजेपी के साथ नहीं है

यूपी विधानसभा चुनाव के लिए रणभेरी बज चुकी है। तारीखों का ऐलान भी हो चुका है। सात चक्र के मतदान के बाद 10 मार्च को फैसला हो जाएगा कि यूपी की सत्ता किसके हाथ में होगी। 2022 का चुनाव राजनीतिक दलों के लिए सिर्फ यूपी तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसका असर राष्ट्रीय राजनीति यानी 2024 पर भी पड़ेगा लिहाजा राजनीतिक दल किसी तरह की कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। उसी क्रम में दिल्ली में अमित शाह की अगुवाई में करीब 10 घंटे तक बैठक चली और चुनावी रणनीति पर मंथन किया गया।

बीजेपी-एसपी में सीधी टक्कर की संभावना
बताया जा रहा है कि 2022 में बीजेपी और एसपी में सीधी टक्कर हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो बीजेपी के सामने अलग तरह की चुनौतियां होंगी। जानकार कहते हैं कि अगर आप 2017 को देखें तो बीजेपी ने जिस तरह से रणनीतिक तौर पर छोटे छोटे दलों से गठबंधन किया था उसका जबरदस्त फायदा उसे चुनावी नतीजों में दिखाई भी दिया। ठीक उसी तर्ज पर समाजवादी पार्टी प्रयोग कर रही है और इस तरह गैर बीजेपी मतों में बिखराव रोकने की कोशिश की जा रही है। 

बीजेपी के लिए 2022, 2017 से क्यों है अलग
अब सवाल यह है कि बीजेपी इस तरह की चुनौती से कैसे निपटेगी। बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर आप बीजेपी के साथ सहयोगी दलों के जुड़ाव को देखें तो 2017 की अपेक्षा उसमें इजाफा ही हुआ है। जहां तक कुछ लोगों द्वारा पार्टी छोड़ने की बात सामने आई है उनका फैसला जनता खुद ब खुद कर देगी। यहां पर अहम सवाल है कि 2022 बीजेपी के लिए 2017 से अलग क्यों है। इस सवाल के जवाब में जानकार कहते हैं कि 2017 में बीजेपी के खिलाफ तत्कालीन सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी करने के विकल्प थे। उसके पास सरकार पर निशाना साधने के लिए तरह तरह के मुद्दे थे। यानी कि वो आक्रामक अंदाज में निशाना साध  सकती थी। लेकिन 2022 में उसे अपनी सरकार की खूबियों को गिनाना है। लेकिन जिस तरह से सरकारी गुंडागर्दी दिखी जिसका जिक्र विपक्षी लखनऊ, गोरखपुर, हाथरस, लखीमपुर खीरी के जरिए करते हैं उसका काउंटर करना बीजेपी के लिए चुनौती भरा साबित होगा। 

अब सवाल यह है कि इन परिस्थितियों में बीजेपी के सामने विकल्प क्या है तो बीजेपी के पास योगी आदित्यनाथ का चेहरा है जिनका दामन पाक साफ है, पीएम मोदी का चेहरा है जो साहसिक फैसलों के लिए जाने जाते हैं। बीजेपी के पास राम मंदिर का मुद्दा है जिसे उसने जमीन पर साबित कर दिखाया। बीजेपी के पास कामयाबी के तौर पर यूपी में सड़कों के विकास की कहानी है, बीजेपी के पास शौचालयों को जमीन पर उतारने का मुद्दा है। यानी कि जिन विषयों पर विपक्ष, बीजेपी को घेरने का काम कर सकता है उन्हीं मुद्दों पर बीजेपी के पास आंकड़ों के जरिए विपक्ष को झुठलाने का विकल्प है।

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