ममता का जवाब बनेंगे उद्धव ठाकरे, जानें कांग्रेस से क्या चाहती है शिवसेना

इलेक्शन
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Dec 09, 2021 | 19:39 IST

Congress-Shiv Sena Politics: ममता बनर्जी ने जिस तरह से कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं, ऐसे में शिवसेना का साथ कांग्रेस के लिए मरहम साबित हो सकता है। दोनों दल महाराष्ट्र के बाहर गठबंधन के संकेत दे रहे हैं।

Uddhav Thackarey Politics
उद्धव ठाकरे के बहाने ममता पर कांग्रेस साधेगी निशाना ! 
मुख्य बातें
  • कांग्रेस और शिवसेना, उत्तर प्रदेश और गोवा में मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं।
  • शिवसेना, कांग्रेस के साथ गठबंधन कर महाराष्ट्र के बाहर अपना विस्तार करना चाहती है।
  • जबकि कांग्रेस, शिवसेना की हिंदुत्ववादी छवि का फायदा उठाना चाहती हैं।

नई दिल्ली: राजनीति में कब दुश्मन दोस्त बन जाय और दोस्त दुश्मन बन जाय, यह कहावत यू ही नहीं कही गई है। हर बार यह कहावत सच साबित होती है। ताजा उदाहरण ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना का है। एक तरफ ममता ने कांग्रेस से दुश्मनी करने की ठान ली है, तो दूसरी तरफ शिवसेना, कांग्रेस से दोस्ती का विस्तार करने का संकेत दे रही है। यानी वह कांग्रेस से अपनी दोस्ती केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रखना चाहती है। बल्कि उसे राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करना चाहती है।

क्या है संकेत

शिवसेना सांसद संजय राउत ने एक टीवी चैनल के इंटरव्यू में यूपीए के भविष्य को लेकर कहा है कि कि उन्होंने एक बैठक में राहुल गांधी से कहा था कि उन्हें संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) को कांग्रेस के नेतृत्व में पुनर्जीवित करना चाहिए।  उन्होंने यह भी संकेत दिया कि शिवसेना इसमें शामिल हो सकती है। राउत के बयान से साफ है कि ममता बनर्जी जिस यूपीए के अस्तित्व पर सवाल उठा रही हैं। उसी यूपीए को शिवसेना फिर से मजबूत करना चाहती है।

शिवसेना क्यों करना चाहती है गठबंधन

रावत के बयान से साफ है कि जिस तरह महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी ने भाजपा को रोकने के लिए शिवसेना को मुख्यमंत्री पद सौंपा और उसके बाद दो साल से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार चल रही है। उसे देखते हुए, उसे दूसरे राज्यों में अपने विस्तार का मौका मिलेगा।

2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को 105 सीटें मिली थीं। जबकि शिवसेना को 56 सीटें मिली थीं। वहीं एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं। 288 सीटों वाली विधानसभा के लिए भाजपा और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था। लेकिन बाद में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बात नहीं बनने के बाद शिवसेना ने भाजपा से नाता तोड़ लिया। और एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस ने महाअघाड़ी विकास गठबंधन बना लिया और मुख्यमंत्री की कुर्सी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पास आ गई ।

ममता बनर्जी की तरह शिवसेना भी महाराष्ट्र के अलावा दूसरे राज्यों में विस्तार करना चाहती है। नवंबर में आए उप चुनावों के परिणामों में पहली बार शिवसेना का कोई सांसद, महाराष्ट्र के बाहर जीता है। जब उप-चुनाव में शिवसेना ने दादरा एवं नगर लोकसभा सीट जीती । इसके बाद से ही पार्टी ने संकेत दिए थे, कि वह महाराष्ट्र के बाहर भी अपना विस्तार करेगी।

यूपी और गोवा में हो सकता है गठबंधन

इसी योजना के तहत बीते बुधवार को संजय राउत की कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात की। प्रियंका से मुलाकात के बाद राउत ने कहा कि कांग्रेस नेता के साथ उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों के बारे चर्चा हुई। इसके पहले मंगलवार को राउत की राहुल गांधी से मुलाकात हुई थी।  और उन्होंने कहा था कि देश में विपक्ष का एक ही मोर्चा होना चाहिए तथा कांग्रेस के बिना कोई भी विपक्षी गठबंधन नहीं बन सकता। जाहिर है राउत कांग्रेस के साथ मिलकर शिवसेना का विस्तार करना चाह रहे हैं।

कांग्रेस को क्या फायदा

इस समय जिस तरह से ममता बनर्जी ने कांग्रेस और राहुल गांधी की क्षमता पर सवाल उठाए हैं, उसे देखते हुए, कांग्रेस को शिवसेना का साथ मिलना, जख्म पर मरहम लगाने जैसा है। साथ ही उसे हिंदुत्ववादी छवि रखने वाली शिवसेना का साथ लेकर हिंदू वोटरों को अपने साथ जोड़ने में भी मदद मिल सकती है। खास तौर से तब, जब प्रियंका गांधी से लेकर राहुल गांधी, कांग्रेस की हिंदू विरोधी छवि को खुद तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि कांग्रेस और शिवसेना के लिए उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में करना इतना आसान नहीं होगा।

ममता बनर्जी कांग्रेस में लगा रही हैं सेंध

पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी बार जीत के बाद ममता बनर्जी भी राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का चेहरा बनना चाहती है। लेकिन पहले की तरह वह कांग्रेस के नेतृत्व में ऐसा नहीं करना चाहती हैं। बल्कि वह खुद का नेतृत्व चाहती है। इसके लिए उन्होंने  ने गोवा, त्रिपुरा, मेघालय, असम, यूपी, हरियाणा में कांग्रेस नेताओं को तृणमूल कांग्रेस में शामिल कर अपनी पार्टी का आधार बनाने की कोशिश की है। 

विपक्ष में अब भी कांग्रेस के पास 20 फीसदी वोट

2019 के लोकसभा चुनावों में विपक्षी दलों में कांग्रेस को करीब 20 फीसदी वोट मिले थे। जबकि तृणमूल कांग्रेस को 4 फीसदी और शिवसेना को करीब 2 फीसदी वोट मिले थे। इस समय देश में करीब 225 सीटें ऐसी हैं, जहां पर भाजपा की सीधी कांग्रेस से टक्कर है। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना की कोशिशों से साफ है कि  2024 के लिए विपक्ष में दो खेमें बनते दिख रहे हैं। अब देखना यह है कि विपक्ष एकजुट होकर नरेद्र मोदी को चुनौती देता है, या फिर बिखरकर चुनौती देता है।

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