Bollywood Throwback Rekha and Umrao Jaan: बॉलीवुड की वह अदाकारा जिसकी खूबसूरती के किस्से आज भी कहे और सुने जाते हैं, रेखा। बेहद कम दिखने वाली रेखा कभी कभार जब सार्वजनिक उपस्थिति दर्ज करती हैं तो उनके हजारों मस्तानों के दिल मानो उन्हीं के लिए धड़कने लगते हैं। सिल्क की साड़ी, आंखों में मोटा काजल, सुर्ख लाल लिपस्टिक, बिंदी और मांग में सिंदूर और लंबी चोटी और उसमें लगा गजरा रेखा की पहचान है।
रेखा ने अपने करियर की शुरुआत फिल्म सावन भादो से की थी। यह फिल्म काफी हिट रही। इसके बाद वह फिल्म प्राण जाए पर वचन न जाए में नजर आईं और इसमे रेखा ने न्यूड सीन तक दिया। सुनील दत्त के लीड रोल वाली इस फिल्म ने रेखा को सेक्स सिंबल बना दिया। इस फिल्म के पोस्टर छपे तो खूब हंगामा मचा, लेकिन रेखा के इस हॉट अवतार को देखने के लिए सिनेमाघर भर गए। रेखा इस फिल्म में एक तवायफ के रोल में थी। एक सीन में वह बिना कपड़ों के तालाब में नहाने उतरी थीं।
रेखा को कॉमसूत्र जैसी फिल्में भी करियर के शुरुआत में करनी पड़ीं। कोई नहीं कह सकता था कि यह अदाकारा एक दिन हिंदी सिनेमा की सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली संजीदा अदाकारा बनकर उभरेगी। हालांकि रेखा को सेक्स डॉल की छवि से बाहर लाने का श्रेय जाता है महान डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी को। 1973 की नमक हराम, 1977 की आलाप और 1980 में आई फिल्म खूबसूरत में ऋषिकेश मुखर्जी ने ही रेखा को लिया। इन फिल्मों में रेखा के भीतर छिपी एक खूबसूरत औरत नहीं, बल्कि एक खूबसूरत कलाकार नजर आया।
मिर्जा हादी रुस्वा की किताब से लिया था किरदार
1981 में एक फिल्म आई जिसने रेखा को एक नई पहचान दी, इस फिल्म का नाम था उमराव जान। सवाल यह कि उमराव जान कौन थीं? क्या वह कोई हकीकत थीं या काल्पनिक किरदार। इसके जवाब में दोनों ही बातों को पुख्ता करने वाले लोग हैं। 1857 में मिर्जा हादी रुस्वा ने एक किताब लिखी थी- उमराव जान अदा। इसी किरदार को डायरेक्टर मुजफ्फर अली ने पर्दे पर जीवित किया।
रेखा ही बन गईं 'उमराव जान'
कहा जाता है कि मुजफ्फर अली ने जब इस फिल्म की योजना बनाई तो वह अपनी बेगम साहिबा सुभाषिनी के साथ रेखा की मां के पास पहुंचे। उन्होंने कहा कि वह उमराव जान फिल्म बनाना चाहते हैं लेकिन फीस नहीं दे पाएंगे। रेखा जब घर आईं तो मां ने कहा कि तुम्हें मुजफ्फर की उमराव जान करनी है। रेखा जब कहानी पर बात करने को मुजफ्फर अली से मिलीं तो उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें फीस तो नहीं दे पाऊंगा लेकिन इस फिल्म से तुम्हें अमर कर दूंगा। कहानी सुनकर रेखा काफी देर उसके खुमार में रहीं और फिल्म के लिए तैयार हो गईं। फिल्मों के जानकार राजकुमार केसवानी ने एक लेख में इस बात का जिक्र किया है।
जब बुर्का पहनकर लखनऊ घूमी थीं रेखा
वहीं मौजूद संगीतकार ख्याम साहब भी मौजूद थे। उन्होंने रेखा को कुछ शेर और संगीत सुनाया। संगीत से भी रेखा काफी प्रभावित हुईं। शूटिंग लखनऊ में हुई और अपने रोल के होमवर्क के लिए रेखा बुर्का पहनकर लखनऊ की गलियों में घूमीं। यह फिल्म हिंदी सिनेमा की ऐसी फिल्म बनी, जिसका आज तक कोई मुकाबला नहीं है। आज रेखा ही उमराव जान है और उमराव जान ही रेखा। इस फिल्म ने रेखा को सर्वश्रेष्ठ अदाकारा का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिलाया!
वहीं आशा भोसले को सर्वश्रेष्ठ प्लेबैक सिंगर, ख्याम को सर्वश्रेष्ठ म्यूजिक डायरेक्टर और मंजूर को सर्वश्रेष्ठ आर्ट डायरेक्टर का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला। इस फिल्म को तीन श्रेणियों में फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला। शहरयार के गीतों ने इस फिल्म को कई दर्जा ऊंचा कर दिया। दिल चीज क्या है आप मेरी/इन आंखों की मस्ती के/झूला किन्ने डाला/ये क्या जगह है दोस्तो...जैसे गाने आज भी पसंद किए जा रहे हैं।
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