Guru Dutt Birthday: जब भी सिनेमा के बीते दौर का जिक्र आता है तो गुरु दत्त को याद किया जाता है। वह बहुमुखी प्रतिभा वाले शानदार कलाकारों में शुमार रहे। कोरियोग्राफी, निर्देशन और अभिनय के क्षेत्र में उनका कोई सानी नहीं रहा। उन्होंने फिल्म जगत में आकर अपना नाम बदला और वह वसंत कुमार शिव शंकर पादुकोण से गुरु दत्त हो गए। आज उनका जन्मदिन है। 9 जुलाई 1925 को बेंगलुरु में उनका जन्म हुआ था।
वह संघर्ष की प्रतिमूर्ति थे जिसकी जिंदगी कई सारे उतार चढ़ाव से भरी रही। उनका बचपन कई तरह की आर्थिक परेशानियों से होकर गुजरा और बड़ी मुश्किल से पढ़ाई हो सकी। उन्होंने कोलकाता में टेलीकॉम ऑपरेटर की नौकरी की और बाद में वह लौटकर अपने माता पिता के पास मुंबई आ गए थे। यहां तक की जिंदगी में फिल्म जगत में आने का ख्याल किसी भी तरह शामिल नहीं था। जब गुरु दत्त 16 वर्ष के थे उन्होंने 1941 में पूरे पाँच साल के लिये 75 रुपये वार्षिक छात्रवृत्ति पर अल्मोड़ा जाकर नृत्य, नाटक व संगीत की तालीम ली। उन्होंने रवि शंकर के अग्रज उदय शंकर की संगत में रहकर कला व संगीत के कई गुण अवश्य सीख लिये।
ऐसे आए फिल्म जगत में
गुरु दत्त जब मुंबई आ गए तो प्रभात फिल्म कंपनी में चाचा की मदद से नौकरी हासिल कर ली। यहां से उनका फिल्मों से सरोकार होना शुरू हुआ। एक दिन देव आनंद से भेंट हो गई और फिर क्या था, वह फिल्म बनाने और एक्टिंग के क्षेत्र में काम करने लगे। देव आनंद ने दत्त को अपनी नई प्रोडक्शन कंपनी, नवकेतन में निदेशक के रूप में नौकरी की पेशकश की। गुरु दत्त ने फिल्म उद्योग में अपने करियर की शुरुआत फिल्म हम एक हैं में कोरियोग्राफर के रूप में काम करके की थी। उन्होंने सामाजिक रूप से जागरूक फिल्मों का निर्माण किया, जिनमें प्यासा (1957), कागज के फूल (1960), और बाजी (1951) शामिल हैं। बाजी नवकेतन में बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म थी।
अभिनय करियर
उन्हें पूना में सबसे पहले 1944 में चांद नामक फिल्म में श्रीकृष्ण की एक छोटी सी भूमिका अदा की। इसके बाद वह सुहागन, भरोसा, चौदहवीं का चांद, साहिब बीबी और गुलाम, कागज के फूल, प्यासा, आर पार और हम एक हैं जैसी शानदार फिल्मों में अलग अलग भूमिकाएं निभाईं।
जब निजी जिंदगी में आया तूफान
गुरुदत्त की गीता से मुलाकात फिल्म 'बाजी' के दौरान हुई और उस समय गीता रॉय एक गायिका के रूप में मशहूर हो चुकी थीं। मुलाकातों के बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ता रहा और 1953 में गुरु दत्त और गीता रॉय की शादी हो गई। शादीशुदा जिंदगी अच्छी चल रही थी कि इसी दौरान वहीदा रहमान की वजह से दोनों के बीच दरार आनी शुरु हुई। फिल्म ‘सीआईडी’ (1956) के लिए एक नये चेहरे की तलाश थी और इसके लिए वहीदा रहमान को चुना गया। अगले ही साल गुरु दत्त ने फिल्म प्यासा बनाई, जिसमें उन्होंने वहीदा रहमान के साथ लीड रोल किया। दोनों की नजदीकियां बढ़ने लगीं।
नींद की गोलियां खाकर दी जान
कुछ समय बाद गुरु दत्त को वहीदा के नाम से एक पत्र मिला, जिसमें उनसे मुलाकात के लिए कहा गया था। गुरु दत्त को इस पर शक हुआ और वह अपने दोस्त के साथ मौके पर पहुंचे, यहां उनकी पत्नी अपनी किसी दोसत के साथ मौजूद थीं। घर आकर दोनों के बीच जबरदस्त झगड़ा हुआ। यहां से गुरु दत्त और गीता में दूरियां बढ़ती गईं। वह लगातार शराब की लत में डूबते चले गए और उनकी तबीयत भी खराब रहने लगी। एक दिन गिलास में पीसकर नींद की गोलियां खाकर गुरु दत्त ने जान दे दी। यह तारीख थी 10 अक्टूबर 1964।
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