Shikara: मकबूल भट्ट की फांसी का बदला लेने के लिए की गई जज नीलकंठ गंजू की हत्या, दो घंटे तक सड़क पर पड़ी थी लाश

Kashmiri Pandit Exodus: साल 1990 में कश्मीरी पंडितों का पलायन भारत के इतिहास का काला पन्ना है। फिल्म शिकारा के जरिए पहली बार कश्मीरी पंडित की कहानी पर्दे पर आने वाली है। जानिए जज नीलकंठ गंजू की हत्या की कहानी।

Neelkanth Ganjoo
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मुख्य बातें
  • फिल्म शिकारा कश्मीरी पंडितों के दर्द को पहली बार बड़े पर्दे पर लाने वाली है।
  • कश्मीरी पंडितों के हत्या की शुरुआत साल 1989 से हो गई थी। इसमें सबसे नृशंस रिटार्यड जज नीलकंठ गंजू की थी।
  • नीलकंठ गंजू ने ही जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के आतंकी मकबूल भट्ट को फांसी की सजा सुनाई थीं।

मुंबई. विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म शिकारा कश्मीरी पंडितों के दर्द को पहली बार बड़े पर्दे पर लाने वाली है। साल 1990 में कश्मीरी पंडितों का घाटी का पलायन भारत के इतिहास का एक काला पन्ना है। कश्मीरी पंडितों के हत्या की शुरुआत साल 1989 से हो गई थी। इसमें सबसे नृशंस रिटार्यड जज नीलकंठ गंजू की थी।

बीजेपी नेता टीका लाल टपलू की हत्या के सात हफ्ते बाद ही नीलकंठ गंजू की 4 नवंबर 1989 को श्रीनर हाई स्ट्रीट मार्केट के पास स्थित हाईकोर्ट के पास गोली मारकर हत्या कर दी थी। हत्या के बाद दो घंटे तक उनका शव सड़क पर ही पड़ा रहा था।  

नीलकंठ गंजू ने ही जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के आतंकी मकबूल भट्ट को फांसी की सजा सुनाई थीं। बाद में बीबीसी को दिए इंटरव्यू में जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के लीडर और अलगाववादी नेत यासिन मलिक ने इस हत्याकांड की जिम्मेदारी ली थी। इसे आतंकी मकबूल भट्ट की मौत का बदला बताया था। 

 

 

कौन था मकबूल भट्ट? 
मकबूल भट्ट जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट का संस्थापक था। मकबूल भट्ट को पुलिस ने साल 1968 में गिरफ्तार कर लिया था और सेशन जज नीलकंठ गंजू ने फांसी की सजा सुनाई थी। मकबूल भट्ट तिहाड़ जेल से भाग गया और पाकिस्तान चला गया था। 

साल 1976 में वह कश्मीर के कुपवाड़ा स्थित एक बैंक में डाका डाला और मैनेजर की हत्या की। इस दौरान वह पकड़ा गया और दोबारा उसे फांसी की सजा सुनाई। मकबूल के आतंकी संगठन ने उसे जेल से छुड़ाने के प्रयास में इंग्लैंड स्थित भारतीय उच्चायोग रविंद्र म्हात्रे का अपहरण कर हत्या कर दी। इसके बाद साल 1984 में उसे फांसी पर लटका दिया। 

 

 

19 जनवरी 1990 को किया पलायन 
नीलकंठ गंजू के बाद 13 फरवरी 1990 को श्रीनगर के टेलिविजन केंद्र के डायरेक्टर लासा कौल की भी हत्या कर दी गई थी। इसके अलावा कश्मीरी पंडित गिरजा टिक्कू के साथ गैंगरेप हुआ और फिर उन्हें मार दिया गया। 

 

 

 4 जनवरी 1990 को  हिज्बुल मुजाहिदीन ने उर्दू अखबार आफताब में  छपवाया कि सारे पंडित कश्मीर की घाटी छोड़ दें। इसके बाद चौराहों और मस्जिदों में लाउडस्पीकर लगाकर कहा जाने लगा कि पंडित यहां से चले जाएं, नहीं तो बुरा होगा। आखिरकार कश्मीरी पंडितों ने 19 जनवरी 1990 को घाटी से पलायन कर लिया था।  
 

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