संगीत से चिढ़ने वाले भूपेंद्र सिंह ऐसे बने हिंदी सिनेमा के मशहूर गायक, इन गीतों ने दिलाया मुकाम

Bhupendra Singh lesser known facts: प्रसिद्ध सिंगर भूपेंद्र सिंह का निधन हो गया है और वह पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं। मुंबई के अंधेरी स्थित क्रिटिकेयर अस्पताल में कल शाम 7:45 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली।

Bhupinder Singh lesser known facts
Bhupinder Singh lesser known facts 
मुख्य बातें
  • प्रसिद्ध सिंगर भूपेंद्र सिंह का निधन हो गया है और वह पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं।
  • अंधेरी स्थित क्रिटिकेयर अस्पताल में कल शाम 7:45 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली।
  • 82 वर्षीय गायक भूपिंदर सिंह पिछले 6 महीने से अस्वस्थ थे।

लता मंगेशकर के जीवन को पन्नों पर उतारने वाले, मशहूर साहित्यकार और गीत-संगीत की समझ रखने वाले यतींद्र मिश्रा लिखते हैं- एक आवाज जो माइक्रोफोन से निकलकर अपने भारी एहसास में खरज भरती सी लगती थी। कहीं पहुंचने की बेचैनी से अलग, बाकायदा अपनी अलग सी राह बनाती हुई, जिसे खला में गुम होते हुए भी आरकेसट्रेशन के ढेरों सुरों के बीच दरार छोड़ देनी थी। ये भूपी थे... यानी भूपेंद्र सिंह। 

प्रसिद्ध सिंगर भूपेंद्र सिंह का निधन हो गया है और वह पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं। मुंबई के अंधेरी स्थित क्रिटिकेयर अस्पताल में कल शाम 7:45 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। 82 वर्षीय गायक भूपेंद्र सिंह पिछले 6 महीने से अस्वस्थ थे। भूपेंद्र का नाम आता है तो 'आज बिछड़े हैं कल का डर भी नहीं / जिंदगी इतनी मुख्तसर भी नहीं..'(थोड़ी सी बेवफाई), 'करोगे याद तो हर बात याद आएगी..'(बाज़ार), 'एक अकेला इस शहर में' (घरौंदा)', फिर तेरी याद नए दीप जलाने आई'..(आई तेरी याद), 'ज़िंदगी, जिंदगी मेरे घर आना'.. (दूरियां) जैसे गाने याद आते हैं। 

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'राहों पे नज़र रखना/ होठों पे दुआ रखना/ आ जाए कोई शायद / दरवाज़ा खुला रखना..' उनका बेहद लोकप्रिय गीत रहा। फिल्म मौसम का गाना 'दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन' क्लासिक गानों में से एक है। भूपेंद्र सिंह को मोहम्मद रफी, तलत महमूद और मन्ना डे के साथ गाने का मौका मिला फिल्म हकीकत में। इस फिल्म के गाने 'होके मजबूर उसने मुझे बुलाया होगा' को उन्होंने आवाज दी।  

भूपेंद्र के पिता प्रोफेसर नत्था सिंह भी एक बेहतरीन संगीतकार थे और वही अपने बेटे को संगीत की शिक्षा देते थे। भूपेंद्र ने ऑल इंडिया रेडियो पर अपनी पेशकश देना शुरू किया। शुरुआती दिनों में उन्हें संगीत से नफरत थी। साल 1978 में रिलीज एक फिल्म के गुलजार के लिखे गाने ‘वो जो शहर था’ को उन्होंने आवाज दी और उन्हें प्रसिद्धि मिलती चली गई। मदन मोहन ने एक कार्यक्रम के दौरान भूपिंदर सिंह को गाते हुए सुना और उन्होंने इस हीरे की परख कर ली। 

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