कब किस इंसान की किस्मत चमक जाए, ये कोई नहीं जानता है। एक पल में इंसान फर्श से अर्श पर पहुंच सकता है तो अगले ही पल कोई इंसान अर्श से फर्श पर आ जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ था बॉलीवुड के मशहूर एक्टर जैकी श्रॉफ के साथ। मुंबई की गलियों में गुंडागर्दी कर लोगों को डराने-धमकाने वाले जग्गू दादा ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन पर हिंदी सिनेमा के लोकप्रिय अभिनेता बन जाएंगे। उन्हें कभी सपने में भी यह ख्याल नहीं आया होगा कि एक दिन पूरा देश उन्हें प्यार करेगा।
जग्गू दादा यानि जैकी श्रॉफ अपना खर्चा पानी चलाने के लिए ट्रक ड्राइवर की नौकरी करते थे और मुंबई की गलियों में गुंडागर्दी करते थे। एक फिल्म की शूटिंग के वक्त देव आनंद की नजर उन पर पड़ी और किस्मत चमक गई। देव साहब 1982 में एक फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में उन्हीं गलियों में गए जहां जैकी श्रॉफ अपना धंधा चलाते थे। जब देव आनंद पहुंचे तो बहुत सारे लोग उनके चारो तरफ जमा हो गए। उन्हीं में एक अलग तरह के गुंडे की तरह दिखने वाले जग्गू दादा भी खड़े थे।
देव साहब ने जग्गू दादा को अपने पास बुलाया और फिल्म में गुंडे का रोल दे दिया। जैकी श्रॉफ की तो जैसे लॉटरी लग गई। वह तुरंत राजी हो गए। यह फिल्म थी स्वामी दादा। देव आनंद, मिथुन चक्रवर्ती, रति अग्निहोत्री, नसीरुद्दीन शाह, पद्मिनी कोल्हापुरे के अभिनय से सजी इस फिलम में जैकी श्रॉफ का बेहद छोटा सा रोल था। वह एक फाइट सीन में नजर आए थे।
इस फिल्म के निर्देशक खुद देव साहब ही थे। देव साहब को भी यकीन नहीं था कि जिस लड़के को वह छोटा सा रोल दे रहे हैं वह अगले ही साल बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त हिट फिल्म देगा और एक दिन बड़ा स्टार बन जाएगा। 1983 में जैकी श्रॉफ की पहली फिल्म हीरो रिलीज हुई और 1984 में उनकी दो, 1985 में छह, 1986 में छह और 1987 में सात फिल्में रिलीज हुई। 1989 में उन्हें फिल्म परिंदा में अपने रोल के लिए बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला।
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