Gangubai Kathiawadi Movie Review in Hindi: ‘गंगूबाई’, ये नाम बीते कुछ वर्षों में सबने सुना। हिंदी सिनेमा में 25 वर्ष पूरे कर चुके निर्देशक संजय लीला भंसाली ने मुंबई के रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा की मां कही जाने वाली ‘गंगूबाई’ के जीवन को पर्दे पर उतारने की घोषणा की तो एक सवाल सबके मन में उठा, आखिर कौन है ये ‘गंगूबाई’। बहुत तो ‘गंगूबाई' के बारे में जानकारी रखते हैं कि एक ऐसी महिला मुंबई के रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा का कायाकल्प किया और वैश्यावृति में लगी महिलाओं के जीवन को सुधारने की कोशिश की। वह गंगूबाई ही थीं जो वेश्यावृत्ति के व्यवसाय को वैधानिक दर्जा दिलाने की कोशिश के लिए तब के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मिली थीं। उन्होंने कमाठीपुरा की चार हजार महिलाओं को बेघर होने से बचाया और और उनके बच्चों को स्कूलों में प्रवेश दिलाया।
इसी गंगूबाई की कहानी को भंसाली ने ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ बनाकर पेश कर दिया है। यह प्रस्तुति बहुप्रतीक्षित थी क्योंकि कोरोना की वजह से इसका इंतजार लंबा हो चला था। गंगूबाई के किरदार में बॉलीवुड अदाकारा आलिया भट्ट उतरी हैं। गंगूबाई के जीवन काले और सफेद दो रंग में विभाजित करें तो ये फिल्म उनके सफेद भाग को दिखाती है और उन्हें महान बनाती है। फिल्म माफिया क्वीन के नाम से मशहूर महिलाका महिमा मंडन करती है, ये जानते हुए कि वह महिला अवैध शराब बेचती थी और पुलिस को खुलेआम रिश्वत देती थी। यह फिल्म अभिनेत्री बनने का सपना लिए अपने पिता के घर से निकली किशोरी के बड़े होकर कमाठीपुरा की महारानी बनने की कहानी है।
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ऐसी है कहानी
गंगा हरजीवनदास नाम की लड़की अपने प्रेमी के साथ पिता के घर से बंबई आती है क्योंकि वह हीरोइन बनना चाहती है। प्रेमी से धोखा मिलता है और वो उसे 1000 रुपये में कोठे पर बेच देता है। वह खूब रोती है, फिर पिटती है और जब थक जाती है तो वो इस धंधे में शामिल हो जाती है। गंगा कोठे पर गंगू बन जाती है और सोच लेती है कि एक दिन वह कमाठीपुरा की महारानी बनेगी। जिंदगी में जैसे-जैसे आगे बढ़ती है उसे अलग-अलग तरह के लोग मिलते हैं। वह पैसा, रुतबा सब कमाती है और अपने मुकाम को पाने में सफल हो जाती है।
कलाकारों का अभिनय
बीते साल के आखिरी महीने में आई फिल्म 83 में जिस तरह रणवीर सिंह कपिल देव के किरदार में घुसे थे, ठीक वैसे ही इस फिल्म में आलिया पूरी तरह से गंगूबाई बन गई हैं। बॉड़ी लैंग्वेज, अंदाज, बातचीत का तरीका हर तरह से गंगूबाई जैसा है। थोड़ी ओवरएक्टिंग भी लगती है लेकिन बर्दाश्त ना हो, ऐसा नहीं। क्यूट-सी आलिया भट्ट का गंगूबाई के किरदार में ढलना देखने लायक है। उनके डायलॉग जबरदस्त हैं। आलिया इस फिल्म की जान है और अव्वल वही हैं। वह कहानी पर भी भारी हैं। सीमा पाहवा शीला बाई के किरदार में गजब रही हैं। रहीम लाला के रोल में अजय देवगन ने भी कमाल किया है। विजय राज ने इस फिल्म में एक ट्रांसजेंडर रजियाबाई की भूमिका निभाई है और प्रभावित किया है।
फिल्म का रिव्यू
इस फिल्म की कहानी को औसत तरीके से रचा गया लेकिन फिल्मांकन रंगीन है। उत्कर्षिणी वशिष्ठ , प्रकाश कपाड़िया कहानी को बेहतर और गहराई वाली बना सकती थीं। आजाद मैदान में आलिया जो स्पीच देती हैं, वो शानदार रही है। फिल्म गंगा के गंगू और फिर गंगूबाई के दौरान टुकड़ों में प्रभावित करती चलती है। हालांकि कई कमजोर पक्ष हैं इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। संजय लीला भंसाली की फिल्मों का कला निर्देशन प्रभावशाली होता है लेकिन इस फिल्म में यह सबसे कमजोर रहा। उनकी फिल्मों के सेट सबसे श्रेष्ठ होते हैं, बाजीराव मस्तानी और पद्मावत में वह अपने इस मजबूत पक्ष को दिखा चुके हैं लेकिन इस बार उनका कमाठीपुरा नकली सा लगा। हर तरफ खूबसूरत और सजी हुई वैश्याएं, एक जैसे चमकीले रंगों में रंगे कोठे, ऐसा लगा ब्रश लेकर सब एक जैसा रंग दिया गया हो। ‘गुजारिश’ से लेकर ‘पद्मावत’ तक जो संगीत दिल जीतता रहा वो इस बार फीका रहा। फिल्म में जो सबसे अहम कमी खलती है वो ये कि आलिया को एक सीन ऐसा नहीं मिला जहां वो अपनी सोलो अदाकारी दिखा सकें।
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