Kangana Ranaut starrer Thalaivii Review in hindi: कई फिल्में ऐसी होती हैं जिनका इंतजार उनकी घोषणा के साथ ही होने लगता है और ऐसी फिल्मों से दर्शकों की उम्मीदें भी काफी अधिक होती हैं। साल में इक्का-दुक्का ही इस तरह की फिल्में आती हैं जिनका दर्शकों को बेसब्री से इंतजार होता है। एक ऐसी ही फिल्म का इंतजार आज खत्म हो गया है। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता (Jayalalitha Biopic) के जीवन पर बनी फिल्म थलाइवी आखिरकार रिलीज हो गई है। बॉलीवुड की दिग्गज अदाकारा कंगना रनौत ने इस फिल्म में जयललिता के किरदार को बेहद खूबसूरती के साथ निभाया है। यह फिल्म में एक आम महिला के राजनीतिक रसूख को शानदार तरीके से प्रदर्शित करती है।
कोई भी फिल्म बेहतरीन तब होती है जब उसकी कहानी और कलाकारों की अदाकारी प्रशंसा बटोरे। थलाइवी के साथ ये दोनों बातें हुई हैं। फिल्म जयललिता के जीवन के कई ऐसे पहलुओं को दिखाती है जो अभी तक अनछुए थे और हर मोर्चे पर कंगना ने खुद को साबित किया है, चाहे वो अभिनेत्री जयललिता वाली सीक्वेंस हो या राजनेता वाली। निर्देशक ए.एल. विजय ने इस फिल्म में वो सब कुछ दिखाया है जो दर्शक देखना चाहते थे। छवि चमकाने या किसी विवाद से बचने के लिए मेकर्स ने चीजों को बदलाव के साथ पेश नहीं किया है।
निर्देशक ए.एल. विजय ने दिखाया है कि कैसे जयललिता अपनी मां की इच्छा के आगे तमिल फिल्मों की अदाकारा बनती हैं। कैसे एम.जी. रामचंद्रन उनकी जिंदगी में आते हैं और दोनों के बीच एक रिश्ते की शुरुआत होती है। राजनीति की वजह से दोनों के बीच में कैसे दूरी आती है और फिर कैसे दोनों एक ही मंच पर आते हैं। एक नाजुक महिला के सशक्तिकरण की कहानी को इस बायोपिक में दिखाया गया है। वह आत्मसम्मान की लड़ाई पूरी मजबूती से लड़ती हैं और अम्मा कहलाती हैं।
एमजीआर करुणानिधि (नासिर) की पार्टी डीएमके में शामिल होकर राजनीति में उतरते हैं। कुछ समय बात वह अपनी पार्टी बनाते हैं। लंबे अरसे बाद एमजीआर और जयललिता की मुलाकात होती है और वह पार्टी में शामिल होने के लिए कहते हैं लेकिन जया इनकार कर देती हैं। एक घटना से जया का इरादा बदलता है और वह राजनीति में उतर जाती हैं।
‘थलाइवी’ तमिल भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है-नेता, लीडर। इस फिल्म में ए.एल. विजय का निर्देशन असरदार है। वह दृश्यों को प्रभावी ढंग से गढ़ पाए हैं। कंगना रनौत ने ऐसा अभिनय किया जो अभी तक का सबसे शानदार कहा जा सकता है। जया के किरदार के लिए जो तेवर चाहिए थे, उसे वो बखूबी निभा गईं। चलने, बोलने से लेकर देखने का अंदाज हूबहू जया जैसा है। एक अर्से बाद भाग्यश्री और मधु को देखना सुखद लगा। एमजीआर के रोल में अरविंद स्वामी कमाल कर गए।
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