छोटे पर्दे के लोकप्रिय धारावाहिक महाभारत के हर किरदार को यूं तो दर्शकों का भरपूर प्यार मिला है। लेकिन इसमें कर्ण का किरदार निभाने वाले पंकज धीर के साथ दर्शकों का एक अलग ही जुड़ाव है। पंकज धीर खुद भी इस बात को मानते हैं और इस बात के शुक्रगुजार हैं कि ये किरदार उनको निभाने का मौका मिला।
पंकज धीर बताते हैं कि महाभारत में कर्ण के रोल की तैयारी के लिए कोई ठोस रिसोर्स नहीं था। इस महाभारत से पहले इस ग्रंथ पर दो घंटे की एक फिल्म बनी थी जिसमें कर्ण का ज्यादा उल्लेख नहीं था। ऐसे में एक कलाकार के तौर पर अपनी संवेदनशीलता का प्रयोग करते हुए उन्होंने इस किरदार को पर्दे पर उतारा। पंकज धीर बताते हैं कि उनके अधिकतर दृश्य दुर्योधन और शकुनि के साथ थे जो ड्रमैटिक करैक्टर थे। ऐसे में उनके बीच अपनी उपस्थिति बनाए रखना उनके लिए काफी मुश्किल था। लेकिन महाभारत के कर्ण यानी पंकज धीर को इस बात की खुशी है कि वह दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाने में सफल रहे और यहां तक कि किताबों में उनकी तस्वीर के साथ ही कर्ण का उल्लेख किया जाता है।
देश में दो जगह ऐसे मंदिर हैं जहां कर्ण की पूजा होती है। ये है करनाल और बस्तर में। पंकज धीर ने बताया कि जब भी वह यहां जाते हैं, लोग प्यार और श्रद्धा से उनसे मिलते हैं। यही नहीं, यहां पंकज धीर की भी 8 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है और लोग इसकी भी पूजा करते हैं।
पंकज धीर बताते हैं कि इस महाभारत के बाद दूसरे शोज में उनके पास कई बार दोबारा कर्ण बनने के ऑफर आए लेकिन उन्होंने इनको स्वीकार नहीं किया। पंकज धीर का कहना है कि बात पैसे की नहीं है क्योंकि पैसे तो वह कैसे भी कमा लेते। बात लोगों के प्यार और विश्वास की है जो वह महाभारत के इस कर्ण को देते हैं। अगर वह कहीं और कर्ण का किरदार निभाते तो यह दर्शकों की भावनाओं के साथ अन्याय होता।
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