नई दिल्ली : कोरोना वायरस से ठीक हो रहे या ठीक हो चुके कई मरीजों में 'ब्लैक फंगस' संक्रमण का खतरा देखा जा रहा है, जिसे म्यूकरमायकोसिस भी कहा जाता है। यह एक दुर्लभ किस्म का संक्रमण है, जो म्यूकर फफूंद के कारण होता है। यह आमतौर पर मिट्टी, पौधों, खाद, सड़े हुए फल और सब्जियों में पनपता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह फंगस हवा में और एक स्वस्थ इंसान की नाक और बलगम में भी पाया जाता है।
यह फंगस साइनस, दिमाग और फेफड़ों को प्रभावित करता है। कोविड-19 से पीड़ित डायबिटीज के रोगियों या ऐसे मरीजों में इसका संक्रमण अधिक देखा जा रहा है, जिनकी इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता कैंसर या एचआईवी/एड्स जैसी बीमारियों के कारण पहले ही कमजोर हो चुकी होती है। ऐसे मरीजों के लिए यह फंगस जानलेवा भी हो सकता है। इसमें मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक होने की बात कही जा रही है।
इस बारे में विशेषज्ञों के हवाले से अब तक जो जानकारी सामने आई है, उसके मुताबिक, इस फंगस का संक्रमण तब होता है, जब कोविड-19 से पीड़ित गंभीर मरीजों को बचाने के लिए स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल शुरू किया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, कोविड-19 के गंभीर मरीजों में स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल फेफड़ों में सूजन को कम करने के लिए किया जाता है, लेकिन इससे इम्युनिटी भी प्रभावित होती है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस संबंध में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र भी लिखा है, जिसमें कहा गया है कि इस संक्रमण के उपचार के लिए आंखों के सर्जन, कान-नाक-गला विभाग के विशेषज्ञों, सामान्य सर्जन और अन्य के दृष्टिकोण को शामिल करने की जरूरत है। कंद्र ने इसे महामारी रोग अधिनियम, 1897 के तहत अधिसूच्य बीमारी बताकर राज्यों से ऐसे सभी मामलों की सूचना देने के लिए भी कहा है।
म्यूकरमायकोसिस संक्रमण के प्रमुख लक्षणों में नाक बंद हो जाना, नाक से खून या काला तरल पदार्थ निकलना, आंखों में सूजन और दर्द, पलकों का गिरना, धुंधला दिखना और अंतत: अंधा हो जाना शामिल है। मरीज की नाक के आसपास काले धब्बे भी हो सकते हैं। इसे लेकर आईसीएमआर ने भी एडवाइजरी जारी की है, जिसके अनुसार, इससे संक्रमित मरीजों को बुखार, सिरदर्द, खांसी, सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।