मशहूर सितारवादक पंडित रविशंकर की बेटी अनुष्का शंकर ने सोशल मीडिया के जरिये अपनी जिंदगी का एक ऐसा सच बयां किया जिसे सुनकर उनके फैंस हैरान रह गए। 38 वर्ष की अनुष्का ने डबल हिस्टेरेक्टॉमी के जरिये अपना यूट्रस (गर्भाशय) बॉडी से अलग करवा दिया। उन्होंने यह कठोर कदम इसलिये उठाया क्योंकि उनके यूट्रस में कुल 13 ट्यूमर थे, जिसमें से एक ट्यूमर उनकी मांसपेशियों तक जा पहुंचा था। गर्भाशय में इस बड़ी दिक्कत के चलते उनका पेट काफी ज्यादा बढ़ गया था। सर्जरी करवाने से पहले अनुष्का डिप्रेशन में चली गईं थी, मगर बाद में उन्हें लगा कि यह सर्जरी बेहद आसान थी, लेकिन फिर भी इस बारे में खुलकर बात क्यों नहीं की जाती। अनुष्का ने उन महिलाओं और लड़कियों को लेकर चिंता जताई जो बच्चेदानी की तमाम समस्याओं से जूझ रही हैं मगर शर्म या झिझक के कारण अपना दर्द बयां नहीं कर पातीं।
बच्चेदानी यानि यूट्रस निकालने की स्थिति कब आती है, इसके लिये किस तरह की सर्जरी की जरूरत पड़ती है या फिर सर्जरी के बाद महिला को रिकवरी में कितना समय लगता है, इस बारे में जब हमने गाजियाबाद के फेथ इनफर्टिलिटी एंड IVF क्लीनिक के डॉ. अभिषेक सिंह परिहार (कंसलटेंट इन फर्टिलिटी एंड IVF स्पेशलिस्ट) से बात की तो जानें जवाब में उन्होंने क्या बताया...
यूट्रस को सर्जरी द्वारा हटाना आमतौर पर ट्रीटमेंट का आखिरी विकल्प होता है। यूट्रस को तभी निकाला जाता है जब उसमें कैंसर होने के चान्सेस ज्यादा हों। या फिर अगर यूट्रस के अंदर फाइब्रॉएड (गांठें) , गर्भाशय आगे की ओर बढ़ा हुआ, पीरियड्स में हेवी ब्लीडिंग और दर्द या फिर एन्डोमीट्रीओसिस की समस्या हो । यह सर्जरी अधिकतर 40 साल की उम्र की महिलाओं के गर्भाशय को निकालने के लिये की जाती है, जो अपना परिवार पूरा कर चुकी हों।
लैपरोस्कोपी में बड़ा चीरा नहीं लगता। कम ये कम कट लगाए जाने की वजह से पेंशन्ट को कम दर्द होता है और वह जल्दी डिस्चार्ज हो जाता है।
यदि महिला की एंडोस्कोपिक सर्जरी हुई है तो उसे अस्पताल में 24 घंटे रखने के बाद डिस्चार्ज कर दिया जाता है। फिर 7 से 10 दिनों के बाद महिला हल्के फुल्के काम करने लायक हो जाती है।
सर्जरी में आमतौर पर 20-30 हजार से एक लाख रुपये तक खर्च आता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि ऑपरेशन किस अस्पताल में और कौन सा ऑप्रेशन करा रही हैं।
हर तरह की सर्जरी के अपने अलग-अलग जोखिम होते हैं। सर्जरी से पहले पेशंट को एनेस्थीशिया दिया जाता है, जिससे जुड़े कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। इसके अलावा सर्जिकल उपकरण से यूट्रस के आसपास की कोई रक्त वाहिका में क्षति पहुंचने के बाद ब्लीडिंग भी हो सकती है। घाव की जगह पर इंफेक्शन या हर्निया की भी समस्या हो सकती है।
यूट्रस निकाले जाने पर महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन की कमी हो जाती है जिससे मूड में बदलाव होता है। वहीं, कुछ महिलाएं इस बात को सोंच कर कि वह फिर कभी मां नहीं बन पाएंगी, डिप्रेशन में चली जाती हैं। शरीर में गर्भाशय का न होना एक खालीपन जरूर लेकर आता है मगर पति और बच्चों का अगर पूरा सपोर्ट हो तो इस समस्या से मुकाबला करने में आसानी हो जाती है।
डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में सुझाए गए टिप्स और सलाह केवल आम जानकारी के लिए हैं और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जा सकता।
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