भारत अभी कोरोनावायरस के दूसरे लहर से उभरा नहीं है मगर ब्लैक, व्हाइट और येलो फंगस ने भारत की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है। कोविड-19 के साथ यह फंगस कोरोना मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। इसी बीच ब्लैक फंगस के दरों में रोजाना बढ़ोतरी हो रही है। कुछ रिपोर्टस के अनुसार, भारत में ब्लैक फंगस के कुल 11,000 केसेज दर्ज किए गए हैं। ब्लैक फंगस के केसेज कोविड-19 से ठीक हो चुके मरीज या कोविड-19 से ग्रसित मरीजों में पाया जा रहा है। अभी डॉक्टर्स ब्लैक फंगस से आधारित कई शोध कर रहे हैं।
किन वजहों से होता है ब्लैक फंगस?
डॉक्टर्स यह बता रहे हैं कि अधिक स्टेरॉयड का इस्तेमाल करने, ज्यादा दिनों तक अस्पताल में रहने, ऑक्सीजन थैरेपी का उपयोग करने और अन्य बीमारियों से ग्रसित होने के वजह से ब्लैक फंगस होता है।
क्या इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन की वजह से होता है ब्लैक फंगस?
हाल ही में हर जगह यह चर्चा तेज हो गई है कि इंडस्ट्रेयल ऑक्सीजन की वजह से ब्लैक फंगस हो रहा है क्योंकि इसे अनहाइजीनिक तरीके से सप्लाई किया जा रहा है। वहीं मुंबई के कुछ डॉक्टरों के अनुसार, यह कहा जा रहा है कि इंडस्ट्रयिल ऑक्सीजन ब्लैक फंगस का अन्य कारण है और मेडिकल और इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन के उत्पाद में बड़ा अंतर है।
कोरोना महामारी के कारण मरीजों के लिए ऑक्सीजन की जरूरत में बहुत बड़ी कमी दर्ज की गई थी। इस वजह से डॉक्टरों को मरीजों के इलाज के लिए इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन का उपयोग करना पड़ रहा है। आपको बता दें कि, इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन और मेडिकल ऑक्सीजन एक दूसरे से अलग हैं जिसके वजह से ब्लैक फंगस के केसेज में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।
क्या है मेडिकल और इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन में अंतर?
जब मेडिकल ऑक्सीजन को बनाया जाता है तब उसे कई लेवल्स में फिल्टर किया जाता है और फंगस को दूर रखने के लिए कई जरूरी कदम उठाए जाते हैं। लेकिन इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन बनाने के समय इन कदमों को नहीं उठाया जाता है।
अन्य कारण
ह्युमिडिफायर में नॉन-स्टेराइल वॉटर, अरोगाणुरहित इकविपमेंट्स और नॉन-ऑकिसीजन सिलेंडर का उपयोग करना ब्लैक फंगस को बढ़ावा दे सकता है। इंडस्ट्रियल सिलेंडर्स लीक होते हैं तथा उन्हें ट्रक्स और वैंस से सप्लाई किया जाता है जिसके वजह से वह अनहाइजीनिक हो जाता है। एक्सपर्ट्स यह मानते हैं कि मरीजों के लिए उपयोग किए जाने वाले कैन्यूला और ऑक्सीजन मास्क को ना कर देना चाहिए।