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नई दिल्ली. बच्चों में हकलान की बीमारी के चलते माता-पिता कई बार परेशान हो जाते हैं। दरअसल हकलाने के चलते बच्चों का मजाक उड़ाया जाता है। ऐसे में इससे धीरे-धीरे हीन भावना आने लगती है। वहीं, इसके चलते बच्चे के आत्मविश्वास में भी कमी आती है। हालांकि, ये कोई गंभीर बीमारी नहीं है। ऐसे में इस समस्या से निपटने के लिए माता-पिता को कुछ खास बातों का ध्यान रखना होगा।
क्यों होती है ये समस्या?
हकलाहट या स्टैमरिंग ज्यादातर तीन से पांच साल की उम्र के बच्चों में शुरू हो जाती है। बाद में पांच से नौ साल की उम्र में ये धीरे-धीरे कम हो जाती है और 12-13 साल के बच्चों में लगभग खत्म हो जाती है। वहीं, लड़कियों के मुकाबले लड़कों में यह दोष 5 गुना ज्यादा होता है। बच्चे की भाषा पर अच्छी पकड़ न होना, बहुत ज्यादा भावुक होना, डरना, मानसिक तनाव, एकाग्रता की कमी, असमंजस की स्थिति आदि।
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हकलाहट दूर करने के लिए ध्यान रखें ये बातें
हकलाने के इस परेशानी का इलाज किसी दवा से नहीं, बल्कि स्पीच थेरेपिस्ट और मनोवैज्ञानिक की मदद से किया जा सकता है। सबसे पहले हकलाहट का कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए। बच्चे के मन में किसी प्रकार का भय हो तो उसे दूर करने की कोशिश करें। बच्चे के मन में आत्मविश्वास पैदा करें और दिमाग से यह बात दूर करने के कोशिश करें कि उसके अंदर किसी प्रकार का दोष है।
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जितना हो सके उतना रखें तनावमुक्त
हकलाहट की परेशानी से बचने के लिए बच्चे को जितना हो सकता है उतना ही तनावमुक्त रखें। स्पीच थेरेपिस्ट बच्चों से उन्हीं शब्दों या अक्षरों को बार-बार बुलवाते हैं, जिन्हें बोलने में बच्चे को परेशानी होती है। निरंतर अभ्यास से ये परेशानी दूर हो सकती है। इसके अलावा अगर बच्चा किसी शब्द को बोलते समय अटकता है तो धैर्य से उसकी बात सुनें और उसे ही अपना वाक्य पूरा करने दें। बच्चे का मजाक न उड़ाएं।
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