Covid-19: डब्ल्यूएचओ का दावा, स्तनपान कराने से शिशु को नहीं होगा कोरोना होने का खतरा

हेल्थ
एजेंसी
Updated Aug 06, 2020 | 18:33 IST

Coronavirus and Breastfeeding: डब्लूएचओ के मुताबिक स्तनपान कराने से शिशु को कोरोना होने का खतरा नहीं है। साथ ही स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए अपील की है।

Coronavirus and Breastfeeding
स्तनपान कराने से शिशु को नहीं होगा कोरोना होने का खतरा 
मुख्य बातें
  • स्वास्थ्य एजेंसी ने स्तनपान को बढ़ावा देने की अपील की है।
  • शुरुआती 6 महीनों में बच्चों को सिर्फ स्तनपान कराना चाहिए।
  • मां का दूध नहीं मिलने से हर वर्ष आठ लाख 20 हज़ार बच्चों की मौत होती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि स्तनपान कराने से कोविड-19 संक्रमण होने का ख़तरा नगण्य है और इस प्रकार का कोई भी मामला अब तक दर्ज नहीं किया गया है। साथ ही यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने स्तनपान को बढ़ावा देने और ज़रूरी समर्थन जुटाने की पुकार लगाई है। संगठन की ओर से यह अपील ‘विश्व स्तनपान सप्ताह’ के अवसर पर जारी की गई है जिसमें आगाह भी किया गया है कि माँ का दूध ना मिल पाने की वजह से हर वर्ष आठ लाख 20 हज़ार बच्चों की मौत होती है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को 300 अरब डॉलर का नुक़सान होता है।

यूएन एजेंसी में स्वास्थ्य प्रणाली इकाई में भोजन एवं पोषण कार्रवाई की प्रमुख डॉक्टर लॉरेन्स ग्रमर-स्ट्रॉन ने बताया, “WHO ने अपनी सिफ़ारिशों में पूरी तरह स्पष्ट ढँग से कहा है कि स्तनपान कराना जारी रखना चाहिये।” “हमने दुनिया में कहीं भी माँ के दूथ से कोविड-19 के संचारण होने का कोई मामला नहीं देखा है।”

यूएन एजेंसी के मुताबिक जन्म के बाद शुरुआती छह महीनों में सिर्फ़ स्तनपान से ही बच्चों का पोषण सुनिश्चित किया जा सकता है और इससे माँ व शिशु को बहुत से फ़ायदे हैं। उदाहरणस्वरूप, इससे बच्चों को बचपन में होने वाली बीमारियों से बचाने के लिये जीवनदायी रोग प्रतिरोधी क्षमता के तत्व मिलते हैं और ये लाभ कोविड-19 महामारी के दौरान पनपी आशंकाओं और जोखिम से कहीं ज़्यादा हैं।

डॉक्टर ग्रमर-स्ट्रॉन ने बताया कि विश्व भर में बहुत से अध्ययनों में अनेक महिलाओं के दूध का परीक्षण किया गया है और कुछ नमूनों में वायरस ज़रूर था लेकिन जब उसकी संक्रामकता का परीक्षण किया गया तो पता चला कि वह कोई वास्तविक संक्रमण का वाहक वायरस नहीं था। कोई विकल्प नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन लम्बे समय से अन्य विकल्पों के बजाय माँ के दूध को प्राथमिकता दिये जाने का समर्थन  पैरवी करता रहा है।

संगठन ने ज़ोर देकर कहा है कि बच्चों को बाज़ार में मिलने वाले शिशु फ़ार्मूला देना सुरक्षित नहीं है। परिवारों में नवजात शिशुओं को जन्म के बाद आम तौर पर स्तनपान ही कराया जाता है लेकिन यूएन विशेषज्ञ ने सचेत किया है कि महामारी के कारण यह प्रथा कमज़ोर पड़ सकती है। दुनिया भर में स्तनपान कराने वाली महिलाओं को दी जाने वाली सेवाओं में भारी व्यवधान आया है।

मातृत्व बाल स्वास्थ्य की देखभाल में जुटी स्वास्थ्य सेवाओं को कोविड-19 कार्रवाई में हाथ बँटाना पड़ रहा है, बहुत से मामलों में परिवार स्वास्थ्य सेवाओं तक जाने में सहज महसूस नहीं करते क्योंकि उन्हें कोविड-19 का ख़तरा होता है और इसलिये वो नियमित स्वास्थ्य देखभाल की ज़रूरतें पूरी करने के लिये भी नहीं आते।”

यूएन एजेंसी के मुताबिक स्तनपान ना कराए जाने से हर वर्ष दुनिया भर में पाँच लाख से कम उम्र के आठ लाख 20 हज़ार बच्चों की मौत होती है।“आर्थिक नज़रिये से, हर वर्ष आर्थिक उत्पादकता में 300 अरब डॉलर का नुक़सान होता है, स्तनपान की कमी के कारण नुक़सान।” माँ और शिशु को लाभ विश्व स्तनपान सप्ताह (1-7 अगस्त) के अवसर पर सरकारों से सुरक्षित स्तनपान के लिये परामर्श सेवाएँ महिलाओं तक पहुँचाने और स्तनपान को बढ़ावा देने का आहवान किया गया है।

डॉक्टर ग्रमर-स्ट्रॉन ने कहा कि स्तनपान कराने से हैज़ा से बचाव होता है जो निम्न आय वाले देशों में मौतों के सबसे बड़े कारणों में है। साथ ही श्वसन तन्त्र के संक्रमणों, मोटापे, ल्यूकेमिया से भी रक्षा करने में मदद मिलती है। स्तनपान कराने वाली महिलाओं की स्तन कैंसर, अण्डाशय कैंसर (Ovarian cancer) और टाइप-2 डायबिटीज़ बीमारियाँ होने से रक्षा होती है। 

यूएन अधिकारी ने कहा कि यह स्पष्टता से दर्शाता है कि स्तनपान से माँ और बच्चे, दोनों का फ़ायदा है और इसे बढ़ावा देने से दुनिया भर में लाखों ज़िन्दगियाँ बचाई जा सकती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष का कहना है कि बाज़ार में माँ के दूध के विकल्पों को बढ़ावा देने वाले उत्पादों से स्तनपान पर दबाव बढ़ रहा है। 

यूएन एजेंसियों के मुताबिक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व स्थानीय निर्माताओं द्वारा उत्पादों का प्रचार चिन्ताजनक है और भ्रामक जानकारियों से अभिभावकों को बचाने के लिये देशों को और ज़्यादा प्रयास करने की ज़रूरत है। “वे कई प्रकार की तिकड़मों का इस्तेमाल करते हैं, अक्सर पहले की तरह यह ज़्यादा खुले रूप से नहीं है क्योंकि उन्हें पता है कि वे पकड़े जा सकते है।” 

194 देशों के विश्लेषण के बाद प्राप्त आँकड़े दर्शाते हैं कि माँ के दूध के विकल्प के रूप में पेश किये जाने वाले उत्पादों के विकल्पों के लिये अन्तरराष्ट्रीय विपणन आचारसंहिता (International Code of Marketing) के तहत 136 देशों में क़ानूनी उपाय हैं। ये विपणन संहिता विश्व स्वास्थ्य एसेम्बली ने पारित की थी. यूएन एजेंसी के मुताबिक केवल 79 देशों में ही स्वास्थ्य केन्द्रों में माँ के दूध के विकल्प के प्रचार पर रोक है जबकि 51 देशों में निशुल्क और कम क़ीमत वाले उत्पादों के स्वास्थ्य प्रणाली द्वारा वितरण में पाबन्दी लगी हुई है।

केवल 19 देशों ने माँ के दूध के विकल्प वाले उत्पाद निर्माताओं द्वारा वैज्ञानिक और स्वास्थ्य पेशेवर एसोसिएशन की बैठकों को प्रायोजित करने पर रोक लगाई हुई है। यूएन एजेंसियों ने अपनी सिफ़ारिश में स्पष्ट किया है कि शिशुओं को जन्म के बाद पहले छह महीनों में सिर्फ़ स्तनपान कराया जाना चाहिये। इसके बाद वे स्तनपान के साथ-साथ अन्य पोषक भोजन का सेवन दो वर्ष की आयु तक कर सकते हैं.

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