नई दिल्ली: इंग्लैंड में शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें पहला सबूत मिल गया है कि एक ड्रग कोरोना वायरस मरीजों की हालत को सुधार सकता है। एक सस्ती व्यापक रूप से उपलब्ध स्टेरॉयड जिसे डेक्सामेथासोन कहा जाता है, गंभीर रूप से बीमार अस्पतालों में एक तिहाई तक मृत्यु को कम करता है। परिणाम मंगलवार को घोषित हुए और शोधकर्ताओं ने कहा कि वह इसे जल्द ही प्रकाशित करेंगे।
अध्ययन एक विशाल और सख्त परीक्षण था, दवाई अचानक 2104 मरीजों को दी गई और उनकी तुलना 4321 मरीजों से की गई, जो सामान्य देखभाल कर रहे हैं। यह दवा या तो मौखिक रूप से या एक ।V के माध्यम से दी गई थी। 28 दिन के बाद इसने उन मरीजों में 35 प्रतिशत की मृत्यु को कम कर दिया था, जिन्हें श्वास मशीनों के साथ इलाज की जरूरत थी और केवल पूरक ऑक्सीजन की आवश्यकता वाले मरीजों में 20 प्रतिशत तक कम किया।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक अश्यनन लीडर पीटर हॉर्बी ने एक बयान में कहा, 'यह स्वागत करने लायक परिणाम हैं। जिन लोगों को ऑक्सीजन उपचार की जरूरत है, उन मरीजों को जीवित रहने का लाभ स्पष्ट व विशाल है। तो डेक्सामेथासोन को अब देखभाल का मानक बनना चाहिए। डेक्सामेथासोन सस्ती है, शेल्फ पर है, और दुनिया भर में जान बचाने के लिए तुरंत इस्तेमाल किया जा सकता है।'
विज्ञान शोध का समर्थन करने वाली ब्रिटीश चैरिटी वेलकम के निक कमाक ने कहा, 'भले ही यह दवाई सिर्फ गंभीर मामलों में मदद करे, वैश्विक स्तर पर असंख्य लोगों की जान बचाई जा सकती है। डेक्सामेथासोन को अब दुनियाभर के हजारों गंभीर रूप से बीमार मरीजों द्वारा रोल आउट और एक्सेस किया जाना चाहिए। यह बजट के अंदर है, आसानी से बनती है, जल्द ही इसकी ज्यादा मात्रा बनाई जा सकती है और इसका छोटा डोज देने की जरूरत है।' बता दें कि कमाक की इस अध्यनन में कोई भूमिका नहीं है।
स्टेरॉयड दवाएं सूजन को कम करती हैं, जो कभी-कभी कोविड-19 के मरीजों में विकसित होती हैं क्योंकि प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमण से लड़ने के लिए बढ़ जाती है। यह अतिरेक घातक साबित हो सकता है, इसलिए डॉक्टर ऐसे मरीजों में स्टेरॉयड और अन्य विरोधी भड़काऊ दवाओं का परीक्षण कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बीमारी के दौरान पहले स्टेरॉयड का उपयोग करने के खिलाफ सलाह दी क्योंकि वे समय को धीमा कर सकते हैं जब तक कि रोगी वायरस को साफ नहीं करते।
शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि यह दवाई श्वास मशीन से उपचार करा रहे प्रति 8 मरीजों पर एक की जान बचाएगी जबकि जो अतिरेक सिर्फ ऑक्सीजन पर निर्भर है, उसमें 25 में से एक की जान बचाएगी।
वैसे, यह वो ही अध्यनन है जो इस महीने की शुरुआत में किया गया था जब कोरोना वायरस के खिलाफ मलेरिया की दवाई हाइड्रोक्लोरोक्वीन कारगर साबित नहीं हुई थी। यह अध्यनन इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, वेल्स और नॉर्दन आयरलैंड के 11,000 से ज्यादा मरीजों पर किया गया था, जिन्हें या तो देखभाल के मानक दिए गए या फिर कई उपचारों में से एक: डेक्सामेथासोन; एचआईवी कॉम्बो दवा लोपिनवीर-रटनवीर, एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसिन; विरोधी भड़काऊ दवा tocilizumab; या उन लोगों से प्लाज्मा जो सीओवीआईडी -19 से उबर चुके हैं, जिसमें वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी होते हैं।
डिस्क्लेमरः कोरोना वायरस की वैक्सीन और दवाई को लेकर कई दावे होते आए हैं और अभी भी दवाईयों को कई चरण से होकर गुजरना है। हम किसी दवाई के कारगर होने का दावा नहीं करते। कोविड-19 के लक्षण दिखने के बाद अपनी मर्जी से दवाई ना लें, तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और टेस्ट करवाएं)