नई दिल्ली: कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले रखा है। कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन के बाद दुनिया भर में अर्थव्यवस्था के साथ शिक्षा जगत की भी कमर टूट गई है। भारत में करीब 6 महीने तक बंद रहने के बाद कई राज्यों ने स्कूलों को खोलने की अनुमति दे दी है। इसके साथ ही सोमवार को कुछ राज्यों में सुरक्षा और बचाव के उपायों के साथ स्कूलों को खोल दिया गया है। लेकिन इन सबके बीच अगर कोई सबसे ज्यादा चिंतित हैं तो वो हैं माता-पिता। कोरोना के मामले भारत के करीब-करीब सभी राज्यों में दोबारा बड़ी तेजी से बढ़ने लगे हैं। ऐसे माहौल में माता-पिता के लिए यह आसान नहीं है कि वो अपने बच्चों को स्कूल भेजने को तैयार हो जाएं।
अनलॉक 4 में केंद्र सरकार ने कहा कि अगर राज्य चाहें तो वो 21 सितम्बर से विद्यालयों को खोल सकते हैं। इसके लिए राज्यों सरकारों पर कोई दबाव नहीं होगा। इसी बीच दिल्ली, उत्तर प्रदेश, और पश्चिम बंगाल ने स्कूलों को खोलने से मना कर दिया है। माता-पिता की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए टाइम्स नाउ डिजिटल ने डॉक्टर तुषार पारीक( सलाहकार बाल रोग विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल, खराड़ी, पुणे) से इस मामले पर विस्तृत बातचीत की। उनसे वो सारे सवाल किये गए जिनका जवाब इन दिनों माता-पिता तलाश रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमें बच्चों को स्कूल भेजना चाहिए यह या नहीं ? बच्चों को स्कूल भजते समय किस तरह की सावधानियां हमें बरतनी होंगी ?
एक्सपर्ट के बहुमूल्य सुझाव
बच्चों को स्कूल भेजने के सवाल पर डॉक्टर तुषार का कहना था कि चूंकि सरकार ने स्कूलों को खोलने की अनुमति दे दी है अगर आप अपने बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं तो पहले इस बात को सुनिश्चित कर लें की स्कूल ने साफ-सफाई और कोरोना से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये हों। पहले माता-पिता को स्कूल पर ऑनलाइन क्लास के लिए दबाव बनाना चाहिए। क्योंकि यह बच्चों के लिए सुरक्षित है। आगे डॉक्टर तुषार कहते हैं कि हर उम्र के इंसान को कोविड का बराबर खतरा है। बच्चे कोरोना करियर का काम कर सकते हैं। जिन बच्चों के अंदर खांसी, कमज़ोरी, दस्त और पेट दर्द। ऐसी बच्चों को स्कूल बिलकुल भी ना भेजें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
यह पूछे जाने पर के बच्चे कोविड-19 को लेकर थोड़ा अलग प्रतिक्रिया क्यों देते हैं ? तुषार कहते हैं बच्चों के अंदर कोविड के मामले बहुत काम देखे जाते हैं। लेकिन इसकी सही वजह का अभी तक पता नहीं चल पाया है। बच्चों के शरीर की कोशिकाओं पर ACE-2 रिसेप्टर उतने विकसित नहीं होते जो कोरोनावायरस के लिए अटैचमेंट पॉइंट का काम करते हैं। इस वजह से कोरोना का खतरा कम हो जाता है। यह भी माना जाता है कि बचपन में बच्चों को बीसीजी और एमएमआर के टिके लगते हैं जिससे इनकी प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। हालांकि बच्चे भी कोरोनावायरस की चपेट में आ सकते हैं या वो घर तक कोरोनावायरस ला सकते हैं। इस वजह से अधिक सावधान रहने की जरूरत है।
बच्चों को स्कूल भेजते समय किन बातों का ख्याल रखें
डॉक्टर तुषार बताते हैं कि बच्चे स्कूल जाने पर एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं, किताबें एक दूसरे को देते हैं, या फिर ऐसे बच्चे से मिलते हैं जिसके अंदर कोरोना के लक्षण हों इससे खतरा दोगुना हो जाता है। बच्चों के अंदर बड़ों के मुकाबले कोरोना के लक्षण कम पाए जाते हैं। वहीं उन्होंने कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें बताई जिसका ख्याल कोरोना महामारी के दौर में हर स्कूल और कॉलेज को रखना चाहिए।
डॉक्टर तुषार का कहना है कि ऐसे मुश्किल समय में माता-पिता को शिक्षकों और स्कूल प्रशासन का साथ देना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए के बच्चे सभी तरह के सुरक्षा उपायों का ध्यान रखें। बच्चों के खानपान और स्वास्थ का पूरा ध्यान रखा जाए।